विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी आज, जानें पूजन विधि और कथा…
आज देश के कई स्थानों पर विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी मनाई जा रही है, हिन्दू पंचांग के अनुसार, विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी आश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन भगवान गणेश को संमर्पित रहती है, इस दिन गणेश जी के लिए व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि, विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी के दिन जो लोग गणेश जी की पूजा व व्रत करते है, उन्हं जीवन में सफलता और समृद्धि हासिल होती है. वही यह भी माना जाता है कि, संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा करने से घर से सभी बुरी ऊर्जा और प्रभाव दूर हो जाते हैं. वही इस दिन व्रती लोग सूर्योदय से चन्द्रमा उदय होने तक लोग उपवास करते हैं.
शुभ मुहूर्त
आश्विन मास की चतुर्थी तिथि 20 सितंबर, कल रात 9 बजकर 15 मिनट पर शुरू हुई है और 21 सितंबर, आज शाम 6 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगी.
श्रीगणेश की पूजा का समय- सुबह 7 बजकर 40 मिनट से सुबह 9 बजकर 11 मिनट तक
शाम की पूजा- शाम 6 बजकर 19 मिनट से रात 7 बजकर 47 मिनट तक
पूजन विधि
इस व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके, साफ सुथरे कपड़े पहनें. अब पूजा घर के ईशान कोण में एक चौकी लगाएं, उसपर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति रखें. फिर, गणेशजी का स्मरण करते हुए व्रत करने का संकल्प लें और फिर गणेश जी को पूजन करने से पहले जल, दूर्वा, अक्षत और पान अर्पित करें. इस दौरान, “गं गणपतये नमः:” मंत्र का जाप करके गणेश जी से अच्छे जीवन की कामना करें. गणेश जी को प्रसाद में पीला मोदक, बूंदी या मोतीचूर के लड्डू चढ़ाएं. वही आखिरी में पूजन करते समय त्रिकोण के अगले हिस्से पर घी का दीया, मसूर की दाल और साबुत मिर्च रखें. वही पूजा संपन्न होने के बाद दूध, चंदन और शहद से चंद्रदेव को अर्घ्य दें और उसके बाद प्रसाद ग्रहण कर पारण करें.
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कथा
पौराणिक कथा में बताते है कि, भगवान गणेश को माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से सृजित किया था और उसके बाद एक दिन उन्हें दरवाजे पर बैठाकर खुद स्नान करने के लिए चली गयी और कहा कि, वे इस दौरान किसी को भी अंदर आने की अनुमति न दें. इतना कहकर वे अंदर चली गयी और गणेश जी उनकी आज्ञा का पालन करने लगें , वही इसी दौरान भगवान शिव वहां पर पहुंचे और अंदर जाने लगे. वही गणेश जी ने माता के आदेश का पालन करते हुए भगवान शिव को अंदर जाने से मना कर दिया और द्वार पर ही रोक दिया. गणेश जी की इस हरकत से भगवान शिव को काफी गुस्सा आया और उन्होने गणेश जी की सर काट दिया.
स्नान करने के बाद माता पार्वती को इस बात का पता चला तो वे बहुत दुखी हो गईं, तब शिवजी ने माता पार्वती को दुखी को दूर करने के लिए गणेश जी पर एक नवजात हाथी का सिर लाकर लगा दिया. कहा जाता है कि उस समय गणेश जी का सिर कटा हुआ चंद्रमा पर गिरा था. इसी कारण चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई. चंद्रमा को संकष्टी चतुर्थी के दिन भी अर्घ्य देना शुभ है.