वाराणसी: लक्खा मेला में शुमार काशी की नाग नथैया लीला कल, श्रीकृष्ण करेंगे कालिया नाग का मर्दन

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वाराणसी:  विश्व प्रसिद्ध और काशी के लक्खा मेले में शुमार नाग नथैया की लीला 5 नवंबर को तुलसीघाट पर होगी. कार्तिक शुक्ल चतुर्थी मंगलवार की शाम तुलसीघाट पर भगवान श्रीकृष्ण की नागनथैया लीला सजेगी. लीला में ठीक शाम 4:40 बजे प्रभु कदंब की डाल से कूदेंगे और कालिया नाग को नाथकर उसके फन पर नृत्य मुद्रा में बांसुरी बजाते हुए श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे. नाग नथैया लीला के दौरान कृष्णऔ कदंब के पेड़ से गंगा रूपी यमुना में लगाते हैं. यह भक्ति और भाव का ही प्रभाव है कि काशी का तुलसी घाट गोकुल और उत्तरवाहिनी मां गंगा यमुना के रूप में बदल जाती हैं. अखाड़ा गोस्वामी तुलसीसदास की ओर से आयोजित लीला को देखने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है.

प्राचीन परंपरा आज भी है कायम

तुलसीदास द्वारा शुरू की गई इस 22 दिनों की लीला की परंपरा आज भी कायम है. इसमें भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव से लेकर पूतना वध, कंस वध, गोवर्धन पर्वत सहित कई लीलाएं होती हैं. बता दें कि नागनथैया लीला की परंपरा गोस्वामी तुलसी दास के जमाने से करीब पांच सौ वर्षों से अनवरत चली आ रही है. लीला के दिन भोर में ही संकटमोचन मंदिर के बगीचे से कदंब का पेड़ काटा जाता है. सबसे पहले कदंब के वृक्ष की पूजा की जाती है. इसके बाद पेड़ को ऐसे काटा जाता है जिस पर चढ़कर भगवान श्रीकृष्ण यमुना रूपी गंगा में कूद सकें. एक वृक्ष काटने के फलरूप कई वृक्ष लगाए जाते हैं. यही कारण है कि पूरा बगीचा आज जंगल का रूप ले चुका है.

संकटमोचन के महंत निभा चुके हैं कृष्ण की भूमिका

दूसरी ओर लगभग 20 फुट लंबा नाग कपड़े की खोली में पुआल भरकर बनाया जा रहा है और मुंह पर सात फन वाले नाग का ढांचा भी बैठाया जाता है. फन और धड़ बनाने की तैयारी पूरे जोर-शोर से चल रही है. पेड़ गंगा के किनारे लगाने के बाद नाग को पानी में डुबो दिया जाता है. नाग की रस्सी घाट पर गड़े खूंटे से बंधी रहती है और उसे कमल वाले बांस के सहारे बांध दिया जाता है. नागनथैया के दिन कृष्ण के पात्र का चयन भी लीला के दिन सुबह ही किया जाता है. संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र ने बताया वह खुद आठ सालों तक नागनथैया के कृष्ण की भूमिका निभा चुके हैं.

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उन्होंने बताया कि यह परंपरा गोस्वामी तुलसीदास के जमाने से चली आ रही है. लीला के लिए पेड़ काटने के बाद भक्त अपने कांधे पर लादकर तुलसी घाट लाते हैं. जहां से वृक्ष काटा जाता है, उसी दिन वहां एक और कदंब का नया पौधा लगा दिया जाता है. इसके साथ ही लगभग एक हजार पौधे भी लगाए जाते हैं. इसके बाद सुबह ही गंगा में दो बांस धंसाकर दो कमलपुष्प के प्रतीक रूप में उसी बांस के सहारे पेड़ लगा दिया जाता है. यह लीला 5 मिनट की होती है. इस 5 मिनट की लीला के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश के साथी विदेश से भी पहुंचते हैं. आज भी पुरानी परंपरा का निर्माण इस रूप में किया जा रहा है जिस रूप में पहले होता था.

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