Varanasi Birthday: श्रद्धा और आस्था का केंद्र है वाराणसी, आज 67वां जन्मदिवस

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Varanasi Birthday: दुनिया के सबसे पुराने शहरों में शामिल वाराणसी को ये नाम आज ही के दिन 67 साल पहले मिला था.

 

शहर के “वरूणा’ और “अस्सी’ नाम की नदियों के बीच में बसने के कारण ही इस नगरी का नाम वाराणसी पड़ा।

24 मई, 1956 को प्रशासनिक तौर पर इसका वाराणसी नाम स्वीकार किया गया।

 

“जिसने भी छुआ वो स्वर्ण हुआ, सब कहें मुझे मैं पारस हूं, मेरा जन्म महाश्मशान मगर मैं जिंदा शहर बनारस हूं”बनारस की बात होती है तो चंद्रशेखर गोस्वामी की लिखी ये लाइनें एक ऐसी परिभाषा के तौर पर सामने आती हैं जो सीधे दिल में उतरती है. कभी काशी कहा गया, कभी बनारस और फिर एक पुख्ता नाम मिला- वाराणसी. आज इस नाम को मिले पूरे 67 साल हो गए हैं. इसी के चलते कह सकते हैं कि आज रंग, संस्कृति और मस्ती में सराबोर रहने वाला यह शहर अपना जन्मदिन मना रहा है।

 

24 मई 1956 को मिला था नाम– वाराणसी 24 मई 1956 से पहले वाराणसी शहर का कोई एक स्थायी नाम नहीं था. कोई बनारस कह देता, कोई काशी. इसके बाद जब नाम पर विचार शुरू हुआ तो”वरूणा’ और “अस्सी’ नदी के किनारे बसे इस शहर का नाम वाराणसी रख दिया गया. 24 मई को ही ये नाम आधिकारिक किया गया था।

 

वाराणसी का नाम काशी और बनारस भी क्यों है…

 

कई बार ये सवाल उठता था कि जब वाराणसी का लोकप्रिय नाम बनारस है तो इसका आधिकारिक नाम वाराणसी क्यों हो गया. इसका काशी नगरी से क्या रिश्ता है. ये भी बहस होती थी कि दुनियाभर में इस शहर को बनारस के नाम से जानते हैं तो आधिकारिक तौर पर इस नाम पर यहां ना तो स्टेशन है और ना ही कोई चीज. ले-देकर बस यहां के विश्वविद्यालय का नाम जरूर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जरूर है।

 

वाराणसी में वाराणसी कैंट और काशी के नाम से दो रेलवे स्टेशन भी हैं लेकिन बनारस के नाम से कोई स्टेशन भी नहीं. लंबे समय से हो रही इस मांग के बाद शहर के मड़वाडीह नाम से बने स्टेशन का नाम अब बनारस कर दिया गया है. इसके साथ बनारस के नाम को एक खास मान्यता भी सरकार ने दे दी है।

 

इन 20 नामों से जानी गई काशी…

 

काशी के इतिहास की बात करें तो इसे 18 नामों से जाना गया है। सबसे पहले अविमुक्त, आनंदवन, रुद्रवास के से इसे प्राचीन काल में पहचना गया। इसका उल्लेख पुराणों समेत अन्य धार्मिक ग्रंथों में पाया गया है। इसके अलावा काशी, फो लो – नाइ (फाह्यान द्वारा प्रदत्‍त नाम), पो लो – निसेस (ह्वेनसांग द्वारा प्रदत्‍त नाम), बनारस (मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्‍त), बेनारस, अविमुक्त, आनन्दवन, रुद्रवास, महाश्मशान, जित्वरी, सुदर्शन, ब्रह्मवर्धन, रामनगर, मालिनी, पुष्पावती, आनंद कानन और मोहम्मदाबाद आदि नाम से भी काशी को जाना गया।

 

बनारस, काशी या वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। एक बार एक अंग्रेजी लेखक मार्क ट्वेन ने लिखा था कि बनारस इतिहास और परंपरा से भी पुराना है, यहां तक कि किंवदंतियों से भी पुराना है।

 

 

आज हम वाराणसी की बात इसलिए कर रहे हैं कि क्योंकि आज वाराणसी का जन्मदिन है। 24 मई 1956 को वाराणसी का आधिकारिक नाम स्वीकार किया गया था। उससे पहले वाराणसी को बनारस, काशी अस्सी के नाम से जाना जाता था।

 

वाराणसी का नाम भी दस्तावेज में दर्ज होने के बाद से आधिकारिक हुआ। हांलाकि अभी भी लोगों की जुबां पर काशी और बनारस का नाम चढ़ा है लेकिन जिले का आधिकारिक नाम वाराणसी ही है।

 

यहां मिलती है जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति…

 

देवाधिदेव महादेव और पार्वती का निवास, वाराणसी की उत्पत्ति के बारे में अभी तक किसी के पास सटीक जानकतारी नहीं है। लेकिन ये मान्यता है कि काशी की धरती पर मरने वाला जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त करता है। बनारस

3000 से अधिक वर्षों से सभ्यता का केंद्र है… 

 

संस्कृत, योग, अध्यात्मवाद और हिंदी भाषा फला फूला

विश्वप्रसिद्ध सारनाथ के बारे में कौन नहीं जानता। भगवान बुद्ध ने आत्मज्ञान के बाद पहला उपदेश यहीं दिया था। वाराणसी शिक्षा का भी केंद्र रहा है। यहां संस्कृत, योग, अध्यात्मवाद और हिंदी भाषा फला फूला है। नृत्य और संगीत के लिए भी बनारस दुनिया में जाना जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध सितार वादक रविशंकर और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान (प्रसिद्ध शहनाई वादक) सभी इसी शहर के पुत्र हैं।

 

 

घूमने नहीं बनारस को जीने आते हैं लोग…

वाराणसी यानी बनारस’ एक ऐसा नाम, जिसे सुनते ही मंदिर, मस्जिद, गंगा, घाट, पान, साड़ी आदि नामों का जेहन में आना आम बात है। अल्हड़ बनारस अपनी बेफिक्री और फक्कड़पन के लिए दुनियाभर में मशहूर है। लोगों का ऐसा विश्वास है कि यहां मरने पर मोक्ष मिलता है। पर ज्यादा लोगों का यकीन है कि यहां आने के बाद फिर कहीं और जाने की इच्छा की नहीं रह जाती। काशी से जुड़े लोग कहते हैं की लोग बनारस घूमते नहीं जीते हैं।

 

लाखों दीवाने हैं इस शहर के….

 

वाराणसी के दीवानों की फेहरिस्त पूरी दुनिया मदन है। यहां आने के बाद पर्यटक जैसे जस शहर को दिल देकर चला जाता है। जाए के बाद सालों तक लोग इस शहर को अपनी यादों में बसा जाते हैं। बनारस देखना है तो घाटों पर समय बितायें और पक्के महाल जाएं। श्रीकाशी विश्वनाथ के दर पर जाकर शीश नवायें। सड़क किनारे चाय की बैठकी में शामिल हों। फूलों का व्यापार हो या साड़ियों और मोतियों का, बनारसी कला की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। केवल भारत नहीं, दुनिया भर में मशहूर है इस शहर का खानपान। कोई गली कचौड़ी जलेबी के लिए प्रसिद्ध है तो कोई मलाईयों के लिए। कहीं रस मलाई तो कहीं चटपटी चाट। व्यंजनों के मामले में हर गली-मोहल्ले खास हैं।

लेखक : सोनाली,

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