वाराणसी: क्लाइमेट एजेंडा की रिपोर्ट, दिवाली के बाद जहरीली हुई आबोहवा

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दिवाली पर्व पर हुई आतिशबाजी के बाद अब यूपी के वाराणसी की आबोहवा जहरीली हो गई है. वाराणसी में AQI का स्तर 180 तक पहुंच गया है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. क्लाइमेट एजेंडा की ओर से हर वर्ष की तरह 7वीं बार इस वर्ष भी दिवाली पर वाराणसी में वायु प्रदूषण की एक विस्तृत रिपोर्ट 26 अक्टूबर, 2022 को दोपहर 01:00 बजे जारी की गई थी. रिपोर्ट के अनुसार, काशी में ग्रीन पटाखे और जिला प्रशासन की ओर से हुई अपील इस बार पुनः बेअसर साबित हुई. कोविड 19 के साथ साथ अन्य श्वसन सम्बन्धी संक्रमण के खतरों के मद्देनजर, बनारस में वायु गुणवत्ता ठीक रखने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष के लिए जारी एनजीटी के दिशा-निर्देशों की खुल कर अवहेलना हुई और जिला प्रशासन हर वर्ष की तरह इस बार भी मूकदर्शक बना रहा.

रात्रि 10:00 के बाद पूर्ण रूप से पटाखा प्रतिबंध के लिए जारी आदेश को ताक पर रखते हुए काशीवासियों ने जहां एक तरफ जम कर पटाखे बजाये, वहीं दूसरी ओर इन पटाखों से शहर में पी एम 2.5, पी एम 10 और वायु गुणवत्ता सूचकांक का स्तर भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), दोनों के ही मानकों की तुलना में काफी खराब हो गया.

 

प्राप्त आंकड़ों से यह साफ़ जाहिर है कि न केवल बच्चे, बूढ़े बल्कि कोविड समेत अन्य संक्रामक बीमारियों से कमजोर हो चुके फेफड़ों की चिंता से मुक्त होकर काशीवासियों ने अपने शहर को एक गैस चेंबर में तब्दील कर दिया. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, वाराणसी के अलग-अलग इलाके में एयर क़्वालिटी 160 से 183 के बीच रहा. अर्दली बाजार में 172, भेलूपुर में 185, बीएचयू 163, मलदहिया 178 और निराला नगर 168 रहा. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

Varanasi Climate Diwali
Varanasi Climate Diwali

शहर के 12 विभिन्न इलाकों में वायु गुणवत्ता जांच की मशीने लगा कर दिवाली की अगली सुबह 03:00 बजे से 08:00 बजे तक यह आंकड़े एकत्र किये गए. प्राप्त आंकड़ों के बारे में मुख्य अभियानकर्ता एकता शेखर ने बताया

‘शहर में पी एम 10 मुख्य प्रदूषक तत्व रहा. इंगलिशिया लाइन, पांडेयपुर और आशापुर सबसे अधिक प्रदूषित रहा, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक विश्व स्वास्थ्य संगठन की तुलना में 6 गुणा अधिक प्रदूषित रहा, जबकि भारत सरकार द्वारा घोषित मानकों की तुलना में उपरोक्त तीनों स्थान 3 गुणा अधिक प्रदूषित पाए गये. लहुराबीर, आशापुर और मैदागिन क्षेत्र भी कमोबेश एक जैसे ही पाए गये जहां का वायु गुणवत्ता सूचकांक डब्लूएचओ के मानकों की तुलना में लगभग 5 गुणा अधिक प्रदूषित रहा, जबकि भारत सरकार के मानकों की तुलना में 2.5 गुणा अधिक प्रदूषित रहा.’

ज्ञात हो कि डब्ल्यूएचओ के मानको के अनुसार, जब वायु गुणवत्ता सूचकांक 45 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से ऊपर जाए तो हवा को प्रदूषित मानते हैं, जबकि भारत सरकार के द्वारा तय मानकों के अनुसार जब यह आंकड़ा 100 के पार पहुंचे तब शहर को प्रदूषित माना जाता है. लम्बे समय से डब्ल्यूएचओ का यह आग्रह है कि वैश्विक स्तर पर जन स्वास्थ्य सुरक्षा का ध्यान रखते हुए सभी देश उनके द्वारा घोषित मानदंड का ही अनुपालन सुनिश्चित करें.

Varanasi Climate Diwali
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कोविड संक्रमण के कारण पहले से ही लाखों लोगों के कमजोर हो चुके फेफड़ों समेत बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों व पहले से ही अन्य किसी बीमारियों से ग्रषित व्यक्तियों के समक्ष आसन्न खतरों के बारे में एकता शेखर ने कहा

‘विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा जारी अध्ययनों के अनुसार हवा में बढ़ते हुए प्रदूषण से उपरोक्त सभी किस्म के व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. इन्ही अध्ययनों का संज्ञान लेते हुए माननीय राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने अत्यधिक प्रदूषित हवा वाले शहरों में पटाखे के क्रय विक्रय पर कुछ शर्तों के आधार पर  प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया था. इसके अनुपालन की जिम्मेदारी राज्य शासन ने सम्बंधित जिला प्रशासनों को दी थी, लेकिन उक्त आदेश की अवहेलना करने वालों के सामने जिला प्रशासन बौना साबित हुआ. इससे न केवल शहर की आबोहवा खराब हुई, बल्कि श्वांस संबंधी रोगों का उपचार कराने वाले सहित अन्य बच्चे, बूढ़े व कोविड 19 के शिकार रह चुके व्यक्तियों के सामने बारम्बार यह विकट परिस्थिति पैदा हुई है. प्रशासन ने जिम्मेदारी का परिचय दिया होता, तो ऐसा होने से रोका जा सकता था.’

हालांकि, दिवाली के समय खराब हुई आबोहवा के लिये पटाखों के साथ-साथ शहर की बेहद खराब कचरा प्रबंधन व्यवस्था भी जिम्मेदार है. शहर के विभिन्न इलाकों में दिवाली के समय हुई घरों की साफ़ सफाई के बाद कचरे का जलाया जाना भी वायु प्रदूषण को काफी हद तक बढाता है. क्लाइमेट एजेंडा ने हमेशा यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि प्रदूषण नियंत्रण किसी एक विभाग की जिम्मेदारी नहीं हो सकती, बल्कि नगर निगम, परिवहन, पीडब्ल्यूडी समेत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और आम नागरिकों को अपनी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने से ही प्रदूषण नियंत्रण संभव हो सकेगा.

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