नहाय खाय के साथ महापर्व छठ पूजा आरंभ हो गया है। धर्म नगरी वाराणसी में भी छठ की छटा देखने की मिल रही है। छठ की व्रती महिलाओं से बाजार पटे पड़े हैं। खरीददारी अंतिम दौर में है। गंगा घाटों को भी आकर्षक तौर पर सजाया गया है।
खरना पर बनाया गया प्रसाद-
शुक्रवार को छठ का दूसरे दिन खरना है।
इस दिन प्रसाद बनाया जाता है।
व्रती महिलाओं ने प्रसाद बनाया।
खासतौर से प्रसाद के रूप में पर ठेकुआ बनाया जाता है।
दीपावली के छठे दिन पड़ने वाला यह बहुत ही कठिन व्रत होता है।
कल यानि शनिवार की शाम डूबते सूर्य को और परसों सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महिलाओं का व्रत पूरा होगा।
इन सब के बीच धर्म नगरी काशी में भी इस महापर्व को लेकर तैयारियां अब अंतिम चरण में है।
बनारस के डीएलडब्ल्यू में सूर्य सरोवर घाट पर महिलाएं घाटों पर वेदियां बनाकर उस पर अपना और अपने परिवार के लोगों का नाम लिखती हैं।
प्रकृति से जुड़ने का पर्व-
छठ पर्व प्रकृति से जुड़ने और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है।
इसलिए सदियों से इस पर्व को नदी, तालाब और जल क्षेत्र के आस-पास मनाने की परंपरा रही है।
प्राचीन काल में लोग छठ से एक महीना पहले ही नदी के तट पर आकर कल्पवास किया करते थे और यहीं कार्तिक मास की साधना करते हुए छठ पर्व मनाते थे।
नदी के तट पर ही गेहूं को धोकर और सूखाकर प्रसाद तैयार करते थे।
लेकिन अब स्थिति बदल गई है लेकिन अब भी बहुत से छठ व्रती रात भर छठ घाट पर रहकर रात्रि जागरण किया करते हैं।
घाट का विशेष महत्व-
दरअसल छठ पूजा में घाट का सबसे अधिक महत्व है।
अगर गंगा नदी का घाट हो तो इसका महत्व और अधिक हो जाता है।
अन्य नदियों और तालाबों के तट पर घाट बनाकर छठ मैय्या को अर्घ्य देना भी परम कल्याणकारी माना गया है।
छठ पर्व के विषय में मान्यता है कि जो व्यक्ति छठ मैय्या के लिए घाट निर्मित करता है माता उसे आरोग्य और सुख संपत्ति से निहाल कर देती हैं।
इसलिए दीपावली के अगले दिन से ही लोग नदी, तालाब, पोखर के आस-पास घाट निर्माण करने में जुट जाते हैं।
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