वाराणसी : BHU आईआईटी ने विकसित की नैनोमेडिसिन, मिले दो पेटेंट

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वाराणसी : आईआईटी (बीएचयू) के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रदीप पाइक और उनकी अनुसंधान टीम ने ड्रग रेजिस्टेंट इंफेक्शियस डिजीज के प्रबंधन के लिए कम लागत वाली नैनोमेडिसिन विकसित की है. इन नैनो मेडिसिन्स को कठोर परिस्थितियों (अत्यधिक तापमान) में भी स्थिर पाया गया है. ये सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोकने में प्रभावी हैं, जो वर्तमान वैश्विक एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध संकट का समाधान कर सकती हैं.

इस सम्बन्ध में जानकारी देते हुए डॉ. प्रदीप पाइक ने बताया कि आक्रामक बैक्टीरियल और फंगल संक्रमणों ने स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में समस्याओं को और बढ़ा दिया है. इसने विशेष रूप से उन रोगियों को प्रभावित किया है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है. ये सूक्ष्मजीव मेजबान के बाह्यकोशिकीय मैट्रिक्स (प्रोटीन और अन्य अणुओं का एक बड़ा नेटवर्क जो शरीर में कोशिकाओं और ऊतकों को घेरता है, समर्थन करता है और संरचना प्रदान करता है) की नकल करते हैं, जिससे संक्रमित रोगियों के शरीर तंत्र के भीतर उनकी आंतरिकता बढ़ जाती है. ये सूक्ष्मजीव मौजूदा दवाओं के खिलाफ आसानी से प्रतिरोध विकसित कर कॉलोनी विकसित करते हैं. इससे मौजूदा एंटीबायोटिक्स कुछ खुराक के बाद काम करना बंद कर देती है. दूसरी ओर पारंपरिक एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते प्रतिरोध ने संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने के लिए नए एंटीबायोटिक दवाओं की मांग को जन्म दिया.

विभिन्न रोगजनकों के खिलाफ करेगा यह खोज

प्रोफेसर पाइक के अनुसंधान समूह ने संक्रमणों के व्यापक स्पेक्ट्रम की चुनौतियों से निपटने का एक नया तरीका खोज लिया है. यह नई खोज विभिन्न रोगजनकों के खिलाफ नए एंटीमाइक्रोबियल एजेंट के रूप में सामने आई है. यह नैनो एंटीमाइक्रोबियल तत्व अकार्बनिक धातुय यौगिक हैं, जिनमें नैनोमेडिसिन कणों का आकार 3-5 नैनोमीटर है. ये कण उन सूक्ष्मजीवों के विषाणु प्रोटीन को लक्षित करते हैं जो संक्रमण के लिए जिम्मेदार होते हैं. इसके तत्व 200 डिग्री सेल्सियस तक स्थिर रहते हैं और इनके निर्माण की लागत बहुत कम है. इस नैनोमेडिसिन को प्रीक्लिनिकल चूहों में अध्ययन में परीक्षण किया गया है और इसकी उत्कृष्ट चिकित्सीय क्षमता की पुष्टि की गई है. इस नई खोज से संक्रामक रोगों से निपटने के लिए नए एंटीबायोटिक्स की मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा.

परिणाम है उत्साहजनक

प्रो. पाइक ने बताया कि उनकी टीम द्वारा विकसित नैनोमेडिसिन्स के विभिन्न संयोजन संभावित एंटी-माइक्रोबियल एजेंट के रूप में उपयोगी हो सकते हैं और यह अस्पताल-जनित संक्रमणों के उपचार में मददगार साबित हो सकते हैं. इन नैनोमेडिसिन्स की प्रभावशीलता को 30-40 रोगियों से प्राप्त एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट रोगजनकों के खिलाफ परखा गया है और परिणाम उत्साहजनक है. इस परियोजना में आईएमएस, बीएचयू के वरिष्ठ माइक्रोबायोलॉजिस्ट और सह-अन्वेषक प्रो. (डॉ.) रागिनी तिलक (एमडी) ने सहयोग किया है।

डॉ. पाइक ने बताया कि उनके अनुसंधान समूह के सदस्य डॉ. मोनिका पांडे (पीएचडी), डॉ. मोनिका सिंह (पीएचडी), सुकन्या पात्रा (बायोमेडिकल, पीएचडी), दिव्या पारीक (बायोमेडिकल, पीएचडी) और अनिकेत दयानंद लोखंडे (बायोमेडिकल, आईडीडी-एम.टेक.) ने इस खोज में योगदान दिया है.

बाजार में मिलेंगे सस्ते दामों पर

ये उत्पाद जल्द ही भारत के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सस्ती कीमत पर बाजार में उपलब्ध होंगे. आईआईटी (बीएचयू) के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग स्कूल में प्रोफेसर पैक और उनके अनुसंधान समूह द्वारा आविष्कृत इन उत्पादों को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा दो पेटेंट प्रदान किए गए हैं.

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क्यों आवश्यक हुआ ये शोध

पत्रिका ‘द लांसेट’ (नवंबर 2021) के अनुसार, 2000 और 2018 के बीच वैश्विक एंटीबायोटिक खपत दरों में 46% की वृद्धि हुई है, और निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 76% की वृद्धि देखी गई है. इसके परिणामस्वरूप, एंटीबायोटिक प्रतिरोध के मामलों की संख्या अमेरिका में 2.8 मिलियन/वर्ष, चीन में 3.8 मिलियन/वर्ष और भारत में 5 मिलियन/वर्ष है. भारत में एंटीबायोटिक खपत लगभग 6.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो विश्व में सबसे अधिक है, और मौजूदा दवाओं के प्रतिरोध के कारण वैश्विक मृत्यु दर लगभग 13.7 मिलियन/वर्ष है.

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