2015 में आए ‘क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट’ को लागू करने में उत्तराखंड को लगे पांच साल
साल 2010 में केंद्र सरकार द्वारा पारित क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट को साल 2015 में पूरे देश में लागू किया गया था। इस एक्ट से छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम को काफी राहत मिली। केंद्र सरकार ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट को स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और बेहतरीन व्यवस्थाओं के उद्देश्य से लाया गया था। साथ ही इस एक्ट को लागू करना राज्य सरकारों के लिए कम्पलसरी किया गया। लेकिन उत्तराखंड सरकार ने तब क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर मुहर नहीं लगाई थी। अब पांच साल बाद उत्तराखंड सरकार ने इस एक्ट को लागू करने के लिए मुहर लगाई है। आईए जानते हैं कि क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट क्या है और इस एक्ट से किन संस्थाओं को लाभ पहुंचता है।
क्या है ‘क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट’
‘क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट’ केंद्र सरकार द्वारा देश में सभी नैदानिक (स्वास्थ्य) संस्थानों के पंजीकरण और विनियमन के लिए लाया गया है। अस्पतालों और नर्सिंग होम द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं और सेवाओं के न्यूनतम मानकों को निर्धारित करने के उद्देश्य से यह अधिनियम पारित किया गया। यह अधिनियम एकल चिकित्सक क्लीनिक सहित चिकित्सा की सभी मान्यता प्राप्त प्रणालियों से संबंधित सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के सभी प्रकार (चिकित्सीय और नैदानिक प्रकार दोनों) के नैदानिक प्रतिष्ठानों पर लागू होता है। इस अधिनियम के तहत सभी नैदानिक संस्थानों को इसमें पंजीकरण कराना अनिवार्य है। इसमें संस्थानों द्वारा संचालित स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में पारदर्शिता आता है।
पांच साल बाद उत्तराखंड ने लगाई मुहर
बता दें, पांच साल के बाद उत्तराखंड सरकार ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर मुहर लगा दी है। जिससे अब राज्य के छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम को बड़ी राहत मिलेगी। उत्तराखंड सरकार को इस एक्ट को लागू करने में पूरे पांच साल लग गए। जबकि क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट को केंद्र सरकार ने साल 2010 में ही पारित कर दिया था। इसके बाद इसे साल 2015 में लागू किया गया। फिर भी उत्तराखंड इस एक्ट को लागू करने में आनाकानी करता रहा। 2015 में एक्ट लागू करने के बाद से ही उत्तराखंड में इस एक्ट का विरोध शुरू हो गया था। हालांकि विरोध से पहले कुछ स्वास्थ्य इकाइयों ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर पंजीकरण भी करा लिया था। बाद में संशोधन की मांग करते हुए उन्हें भी रद्द कर दिया गया।
उत्तराखंड में हुआ था एक्ट का विरोध
साल 2015 में एक्ट लागू होने बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) ने इसके कुछ मानकों में संशोधन की मांग की। आइएमए का कहना था कि 50 से कम बेड वाले अस्पतालों को इससे छूट दी जाए। आइएमए ने कहा कि एक्ट में जिस तरह के कड़े प्राविधान हैं, छोटे-छोटे क्लीनिक, नर्सिंग होम एक-एक कर बंद हो जाएंगे। उनके लिए ईटीपी, एसटीपी सहित अन्य मानक पूरा करना अत्यंत मुश्किल है। इसे लेकर सरकार, शासन व विभाग स्तर पर कई बार बातचीत कर समझौता करने का प्रयास किया गया।
उत्तराखंड सरकार ने दी स्वीकृति
वहीं अब उत्तराखंड सरकार ने ‘क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट’ पर स्वीकृति दे दी है। इसके साथ ही आइएमए की मांगों को भी ध्यान में रखते हुए राज्य कैबिनेट ने 50 बेड तक के अस्पताल और नर्सिंग होम से पंजीकरण शुल्क ना लेने का निर्णय का लिया है। जिसपर आइएमए ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। लेकिन निजी चिकित्सकों का कहना है कि उनकी असल मांग 50 बेड तक के अस्पतालों को एक्ट से बाहर रखने की थी।
क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट से खुश नहीं संस्थान
इस संबंध में डा. अजय खन्ना, प्रांतीय महासचिव आइएमए ने कहा कि क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के नियमों के चलते छोटे अस्पतालों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इन व्यवहारिक दिक्कतों को देखते हुए ही 50 बेड से कम वाले अस्पतालों को एक्ट से बाहर रखने की मांग की जा रही है। कई राज्यों में इस तरह की रियायत दी गई है। सरकार ने पंजीकरण शुल्क माफ कर एक पहल जरूर की है, पर छोटे अस्पतालों की दिक्कतों को समझते हुए सरकार उन्हें एक्ट से बाहर रखने का भी फैसला लें।
उत्तराखंड सरकार देगी ये सुविधाएँ
- राज्य कैबिनेट ने 50 बेड तक के अस्पताल और नर्सिंग होम से पंजीकरण शुल्क ना लेने का निर्णय का लिया है।
- 50 से अधिक बेड वाले अस्पताल और नर्सिंग होम के लिए भी पंजीकरण शुल्क में 90 प्रतिशत तक की कमी की गई है।
- हालांकि क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
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