आखिर क्यों यूपी पुलिस के एनकाउंटर पर उठ रहे है सवाल?

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उत्तर प्रदेश में ऑपरेशन क्लीन के तहत जारी ताबड़तोड़ एनकाउंटर में बेगुनाह भी पुलिस के निशाने पर हैं। प्रमोशन की लालच में पुलिस वाले बेकसूर का भी एनकाउंटर करने में कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। पिछले 14 घंटों में प्रदेश के अलग-अलग जिलों में कुल 8 मुठभेड़ें हुईं हैं। जिनमें 14 अपराधियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। नोएडा में जीतेंद्र यादव का फर्जी एनकाउंटर कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी सुमित गुर्जर के एनकाउंटर को लेकर नोएडा पुलिस पर सवाल उठे थे।

सवालों के घेरे में नोएडा पुलिस

नोएडा पुलिस पर आरोप है कि बीते 3 अक्टूबर की रात सुमित गुर्जर को पुलिस ने उठाया और फर्जी एनकाउंटर में मार गिराया। इसके बाद 5 अक्टूबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यूपी सरकार को नोटिस भेजकर जवाब तलब किया था। 3 फरवरी को नोएडा के सेक्टर 122 में हुए जीतेंद्र यादव के एनकाउंटर पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। आरोप है कि दरोगा विजय दर्शन ने प्रमोशन की लालच में एनकाउंटर को अंजाम दिया। मामले को तूल पकड़ता देख गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लव कुमार ने आरोपी दरोगा को गिरफ्तार करने के साथ ही तीन सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया।

पुलिस की गोली से हो चुकी है मासूम की मौत

पिछले महीने 18 जनवरी को मथुरा में पुलिस और बदमाशों के बीच जारी एनकाउंटर में माधव नाम के बच्चे की मौत हुई थी। आरोप है पुलिस-बदमाशों के बीच गोलियां चल रही थीं। तभी माधव उधर से निकलने की कोशिश कर रहा था कि पुलिस की एक गोली उसके सिर में जा लगी, जिससे उसकी मौत हो गई।

10 महीनों में 1142 एनकाउंटर

योगी सरकार के दस महीनों में बदमाशों के साथ प्रदेश भर में पुलिस के 1142 एनकाउंटर हुए जिनमें 34 से ज़्यादा कुख्यात बदमाश मारे गए। वहीं एनकाउंटर के दौरान चार पुलिसकर्मी भी शहीद हुए। सबसे ज़्यादा एनकाउंटर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए। 2744 अपराधियों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। इन अपराधियों में 1853 अपराधी इनामी रहे। इसके अलावा पुलिस ने अब तक कुल 167 अपराधियों के खिलाफ रासुका लगाई है। 169 अपराधियों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के अन्तर्गत कार्रवाई करते हुए एक अरब 46 करोड़ 79 लाख 49,779 रुपए की संपत्ति भी जब्त की है। योगी शासन के एनकाउंटर
मेरठ में 449
आगरा में 210
बरेली में 196
कानपुर जोन में 91
वाराणसी में 73
इलाहाबाद में 54
लखनऊ में 38
गोरखपुर जोन में 31

नए डीजीपी को 27 एन्काकउंटर का सलाम

नए डीजीपी ओपी सिंह के आते ही पुलिस ने 10 दिनों के अंदर उन्हें 27 एनकाउंटरों की सलामी दी। जबकि इस बीच लखनऊ का मलिहाबाद, काकोरी सहित ग्रामीण इलाके डकैतों की दहशत में रात भर जाग रहे थे। बीते चार दिनों की बात करें तो यूपी के शामली में चार मुठभेड़, बुलंदशहर में तीन, लखनऊ, कानपुर नगर, मुजफ्फरनगर, मेरठ व सहारनपुर में दो-दो और गोरखपुर, गौतमबुध्द नगर, हापुड़, चित्रकूट, बागपत, कन्नौज में एक-एक मुठभेड़ हुई है।

एनकाउंटर के चलते योगी सरकार की आलोचना

योगी सरकार में एक तरफ जहां एनकाउंटर होते रहे, तो दूसरी तरफ़ प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बढ़ी डकैती और हत्याओं की वारदातें क़ानून व्यवस्था को चुनौती दे रहीं थीं और कासगंज की घटना ने तो विरोधियों को सरकार को घेरने का पूरा मौक़ा दे दिया। 19 मार्च 2017 से लेकर 4 फरवरी तक संगीन अपराधों के आंकड़ों को देखें तो 2882 ह्त्या और 4039 बलात्कार की घटनाएं हुईं हैं। हालांकि योगी पर इन आलोचनाओं का कोई असर नहीं है। वो अपनी पुलिस के साथ खड़े हैं। योगी आदित्युनाथ ने कहा कि जीने का अधिकार सभी को है, लेकिन जिंदगी छीनने का किसी को नहीं है। जाहिर है उन्होंने एनकाउंटरों का पूरी तरह समर्थन किया है।

एनकाउंटर में पुलिसकर्मियों को हो चुकी है सजा

यूपी पुलिस का रिकॉर्ड एनकाउंटर को लेकर बहुत अच्छा नहीं है। पीलीभीत जिले में 1991 में पटना साहिब और दूसरे तीर्थ स्थलों से लौट रहे यात्रियों के एक जत्थे को रोककर पुलिस 12 लोगों को अपने साथ ले गई थी। पुलिस ने सभी को आतंकवादी बताते हुए उन्हें अलग-अलग एनकाउंटर में मार गिराया था। जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में 47 पुलिसकर्मियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी।

फर्जी एनकाउंटर में सबसे आगे है यूपी पुलिस

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से जारी किए गए आंकड़ों में यह खुलासा हुआ है कि फर्जी एनकाउंटर मामलों की शिकायतों में यूपी पुलिस देश में नंबर वन है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 12 सालों में यूपी पुलिस पर सबसे ज्यादा फर्जी एनकाउंटर के आरोप लगे और सबसे ज्यादा पुलिस अभिरक्षा में मौतें भी हुईं। मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में भी यूपी पुलिस की लापरवाही नंबर वन है।

आरटीआई में हुआ खुलासा

आरटीआई कार्यकर्ता लोकेश खुराना ने एक जनवरी 2005 से लेकर अक्तूबर 2017 तक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से देश के सभी राज्यों की पुलिस पर लगे फर्जी एनकाउंटर के आरोप, पुलिस अभिरक्षा में मौतें और थर्ड डिग्री देने को लेकर सूचनाएं मांगी थीं। जो रिपोर्ट राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भेजी है वो चौंकाने वाली है।

फर्जी एनकाउंटर की शिकायतों में नंबर वन है यूपी पुलिस

पूरे देश में पिछले 12 साल में कुल 1241 फर्जी एनकाउंटर की शिकायतें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचीं। इनमें से अकेले 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ थे। यूपी पुलिस फर्जी एनकाउंटर की शिकायतों में दिल्ली और बिहार से कहीं आगे है। मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में भी यूपी पुलिस सबसे आगे है। पिछले 12 सालों में यूपी पुलिस के खिलाफ 2.62 लाख शिकायतें मिली हैं। ये आंकड़े पूरे देश में सर्वाधिक हैं।

क्यों उठते हैं एनकाउंटर पर सवाल

पुलिस की सबसे सख़्त कार्रवाई को एनकाउंटर के तौर पर जाना जाता है। आम धारणा है एनकाउंटर का मतलब है बदमाशों का मारा जाना। और पुलिस ये रास्ता तब अख्तियार करती है जब अपराध को रोकना असंभव सा लगता है। वैसे ज्यादातर पुलिस कप्तान इसके पक्ष में नहीं रहते हैं। 2000 से पहले एनकाउंटर नाम मात्र के ही होते थे और इसकी हनक भी होती थी। 2004 में एनकाउंटर तब फैशन में आया जब बदमाशों को मुठभेड़ में मारने वाले पुलिसकर्मियों को आउट ऑफ टर्म प्रमोशन का लालीपॉप दिखाया गया। साथ ही बदमाशों को मारने वाले इंस्पेक्टरों को मनचाहे थानों की पोस्टिंग मिलने लगी। ऐसे में प्रमोशन को लेकर भी पुलिस ने खूब बदमाशों को मार गिराया और अपना स्टार बढ़ाया, लेकिन लालच की वजह से पुलिस पर निर्दोषों के भी मारे जाने के आरोप लगने लगे। लिहाजा 2013-14 में हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से आउट ऑफ टर्म प्रमोशन पर रोक लगी। जिसके बाद से एनकाउंटर की स्पीड कम हो गयी।

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