42 साल पहले हुआ था बालासोर से भी बड़ा ट्रेन हादसा, मौन था रेलवे, जानिएं भारतीय रेलवे का खौफनाक इतिहास

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भारतीय रेलवे ने समय की मांग और विकास की ओर बढ़ते हुए नई तकनीकियों को अपनाया है। इनमें कुछ विदेशी तकनीकि तो स्वदेशी तकनीकि शामिल हैं। यही वजह है कि ट्रेनों में पहले की तुलना आज यात्रा अधिक सुविधाजनक है। मगर, 2 जून को हुए बालासोर ट्रेन हादसे के बाद रेलवे की सुरक्षा तकनीकि पर सवाल उठ रहे हैं। मालूम होगा कि रेलवे ने ट्रेनों की सुरक्षा व ट्रेनों को टकराने की स्थित से बचाने के लिए ‘टीसीएस कवच’ का अविष्कार किया था। लेकिन बालासोर रूट पर कवच नहीं था, जिसको हादसे की वजह माना जा रहा है। बालासोर ट्रेन हादसे को भले ही सबसे बड़ा हादसा बताया जा रहा है, लेकिन 42 साल पहले इससे भी बड़ा ट्रेन हादसा हुआ था। कुछ ही सेकेंड में नदी में कई कोच समा गए थे और 800 लोगों की मौत हुई थी। तब से लेकर अब तक कई बड़े ट्रेन हादसे हो चुके हैं, जिनका स्पष्टीकरण आज तक रेलवे नहीं दे पाया है…

बालासोर में पहले भी टकराई हैं ये ट्रेनें

इससे पहले भी कई ट्रेनें टकरा चुकी हैं। इनमें 1995 में हुए ट्रेन हादसे में 300 से अधिक लोग मारे गए थे, जब पुरुषोत्तम एक्सप्रेस मध्य उत्तर प्रदेश राज्य में एक स्थिर ट्रेन से टकरा गई थी। 2016 में इसी राज्य में एक पैसेंजर ट्रेन के पटरी से उतर जाने से 152 लोगों की मौत हो गई थी।

भारतीय ट्रेनों का खौफनाक़ इतिहास

1. 1981 में हुआ था सबसे बड़ा हादसा

भारतीय रेलवे के इतिहास में सबसे बड़ा रेल हादसा साल 1981 में हुआ था। इस हादसे में करीब 800 लोगों की जान चली गई थी। बात 6 जून, 1981 की है, जब बरसात के मौसम में शाम को यात्रियों से खचाखच भरी एक 9 बोगियों वाली पैसेंजर ट्रेन मानसी से सहरसा के लिए रवाना हुई थी।

इस रूट में बदला घाट और धमारा घाट स्टेशन के बीच बागमती नदी पड़ती थी। ट्रेन जब नदी पर बनें पुल संख्या-51 से गुजर रही थी कि तभी अचानक ट्रेन की कई बोगियां नदी  में जा गिरी। ट्रेन के पिछले 7 डिब्बे ट्रेन से अलग होकर नदी में गिर गए। बरसात का मौसम था तो बागमती का जलस्तर भी काफी बढ़ा हुआ था, इसलिए पलक झपकते ही ट्रेन नदी में समा गई। ट्रेन के उन 7 डिब्बों में सवार लोगों को बचाने वाला वहां कोई नहीं था। इससे पहले कि आसपास के लोग नदी के पास पहुंचते, तब तक सैकड़ों लोग नदी में डूबकर मर चुके थे।

2. विश्व का दूसरा तो भारत का था पहला बड़ा हादास

1981 में हुए इस ट्रेन हादसे को भारत का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा बताया जाता है। हादसे के कई दिनों बाद तक सर्च ऑपरेशन चला। गोताखोरों ने 5 दिनों तक कड़ी मशक्कत की ओर नदी से 200 से भी ज्यादा लाशें निकाली।  इस रेल हादसे में करीब 800 से 900 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।

3. पहले कमजोर थी रेलवे की तकनीकि 

कमजोर तकनीकि की वजह से उस दौरान यह ट्रेन हादसा कैसै हुआ था, इसकी जानकारी न ट्रेन चालक दे पाया और न ही रेलेव प्रशासन दे पाया था। किसी ने कहा कि तेज हवा के चलते हुआ तो किसी ने कहा कि नदी में बाढ़ आने से हादसा हुआ था।  इसके अलावा कुछ लोग यह भी बताते हैं कि पुल पर आई एक गाय को बचाने के लिए लोको पायलट ने ट्रेन में अचानक तेज ब्रेक लगा दिए थे, जिस वजह से ट्रेन के पिछले 7 डिब्बे पलट गए और वो पुल तोड़कर नदी में जा गिरे।

भारत में हुए बड़े रेल हादसे

  • 19 अगस्तल 2017: उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फ़रनगर में खतौली के पास कलिंग-उत्कल एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए थे। यह ट्रेन पुरी से हरिद्वार जा रही थी। इस घटना में 23 लोगों की मौत हुई थी।
  • 22 जनवरी 2017: आंध्र प्रदेश के विजयनगरम ज़िले में हीराखंड एक्सप्रेस के आठ डिब्बे पटरी से उतरने की वजह से क़रीब 39 लोग मारे गए।
  • 20 नवंबर 2016: कानपुर के पास पुखरायां में एक बड़ा रेल हादसा हुआ जिसमें कम से कम 150 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई। पटना-इंदौर एक्सप्रेस के 14 कोच पटरी से उतर गए थे।
  • 20 मार्च, 2015: देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी. इस हादसे में 34 लोग मारे गए थे।
  • 4 मई, 2014: दिवा सावंतवादी पैसेंजर ट्रेन नागोठाने और रोहा स्टेशन के बीच पटरी से उतर गई थी. इसमें 20 लोगों की जान गई थी और 100 अन्य घायल हुए थे।
  • 28 दिसंबर 2013: बेंगलूरु-नांदेड़ एक्सप्रेस ट्रेन में आग लग गई थी और इसमें 26 लोग मारे गए थे। आग एयर कंडिशन कोच में लगी थी। उसी साल 19 अगस्त को राज्यरानी एक्सप्रेस की चपेट में आने से बिहार के खगड़िया ज़िले में 28 लोगों की जान चली गई थी।
  • 30 जुलाई 2012: भारतीय रेलवे के इतिहास में साल 2012 हादसों के मामले से सबसे बुरे सालों में से एक रहा. इस साल लगभग 14 रेल हादसे हुए। इनमें पटरी से उतरने और आमने-सामने टक्कर दोनों तरह के हादसे शामिल हैं। 30 जुलाई 2012 को दिल्ली से चेन्नई जाने वाली तमिलनाडु एक्सप्रेस के एक कोच में नेल्लोर के पास आग लग गई थी जिसमें 30 से ज़्यादा लोग मारे गए थे।
  • 07 जुलाई 2011: उत्तर प्रदेश में ट्रेन और बस की टक्कर में 38 लोगों की मौत हो गई।
  • 20 सितंबर 2010: मध्य प्रदेश के शिवपुरी में ग्वालियर इंटरसिटी एक्सप्रेस एक मालगाड़ी से टकराई। इस टक्कर में 33 लोगों की जान चली गई और 160 से ज़्यादा लोग घायल हुए।
  • 19 जुलाई 2010: पश्चिम बंगाल में उत्तर बंग एक्सप्रेस और वनांचल एक्सप्रेस की टक्कर हुई। 62 लोगों की मौत हुई और डेढ़ सौ से ज़्यादा घायल हुए।
  • 28 मई, 2010: पश्चिम बंगाल में संदिग्ध नक्सली हमले में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पटरी से उतरी। इस हादसे में 170 लोगों की मौत हो गई।
  • 21 अक्तूबर, 2009: उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास गोवा एक्सप्रेस का इंजन मेवाड़ एक्सप्रेस की आख़िरी बोगी से टकरा गया. इस घटना में 22 मारे गए जबकि 23 अन्य घायल हुए।
  • 14 फ़रवरी 2009: हावड़ा से चेन्नई जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस के 14 डिब्बे ओडिशा में जाजपुर रेलवे स्टेशन के पास पटरी से उतरे। हादसे में 16 की मौत हो गई और 50 घायल हुए।
  • अगस्त 2008: सिकंदराबाद से काकिनाडा जा रही गौतमी एक्सप्रेस में देर रात आग लगी। इसके कारण 32 लोग मारे गए और कई घायल हुए।
  • 21 अप्रैल 2005: गुजरात में वडोदरा के पास साबरमती एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी की टक्कर में कम से कम 17 लोगों की मौत हो गई और 78 अन्य घायल हो गए।
  • फ़रवरी 2005: महाराष्ट्र में एक रेलगाड़ी और ट्रैक्टर-ट्रॉली की टक्कर में कम से कम 50 लोगों की मौत हो गई थी और इतने ही घायल हुए थे।
  • जून,2003: महाराष्ट्र में हुई रेल दुर्घटना में 51 लोग मारे गए थे और अनेक घायल हुए।
  • 2 जुलाई, 2003: आंध्र प्रदेश में हैदराबाद से 120 किलोमीटर दूर वारंगल में गोलकुंडा एक्सप्रेस के दो डिब्बे और इंजन एक ओवरब्रिज से नीचे सड़क पर जा गिरे। इस दुर्घटना में 21 लोगों की मौत हुई।
  • 15 मई, 2003: पंजाब में लुधियाना के नज़दीक फ़्रंटियर मेल में आग लगी,इसमें कम से कम 38 लोग मारे गए।
  • 9 सितंबर,2002: हावड़ा से नई दिल्ली जा रही राजधानी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हुई, इसमें 120 लोग मारे गए।
  • 22 जून, 2001: मंगलोर-चेन्नई मेल केरल की कडलुंडी नदी में जा गिरी, इसमें 59 लोग मारे गए।
  • 31 मई, 2001: उत्तर प्रदेश में एक रेलवे क्रॉसिंग पर खड़ी बस से ट्रेन जा टकराई, हादसे में 31 लोग मारे गए।
  • 2 दिसंबर, 2000: कोलकाता से अमृतसर जा रही हावड़ा मेल दिल्ली जा रही एक मालगाड़ी से टकराई, हादसे में 44 की मौत और 140 घायल हुए थे।
  • 3 अगस्त, 1999: दिल्ली जा रही ब्रह्पुत्र मेल अवध-असम एक्सप्रेस से गैसल, पश्चिम बंगाल मे टकराई, हादसे में 285 की मौत और 312 घायल हुए थे।
  • 26 नवंबर, 1998: फ्रंटियर मेल सियालदाह एक्सप्रेस से खन्ना, पंजाब में टकराई, इसमें 108 की मौत, 120 घायल हुए थे।
  • 14 सितंबर,1997: अहमदाबाद-हावड़ा एक्सप्रेस बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में एक नदी में जा गिरी, इसमें 81 की मौत, 100 घायल हुएं।
  • 18 अप्रैल, 1996: एर्नाकुलम एक्सप्रेस दक्षिण केरल में एक बस से टकराई, इसमें 35 की मौत, 50 घायल हुए थे।
  • 20 अगस्त, 1995: नई दिल्ली जा रही पुरुषोत्तम एक्सप्रेस कालिंदी एक्सप्रेस से फ़िरोजाबाद, उत्तर प्रदेश में जा टकराई थी। हादसे में 250 की मौत, 250 घायल हुए थे।
  • 21 दिसंबर,1993: कोटा-बीना एक्सप्रेस मालगाड़ी से राजस्थान में टकराई, इसमें 71 की मौत और अनेक घायल हुए थे।
  • 16 अप्रैल, 1990: पटना के पास रेल में आग लगी, इसमें 70 की मौत हुई थी।
  • 23 फरवरी, 1985: राजनांदगाँव में एक यात्री गाड़ी के दो डिब्बों में आग लगी। इस हादसे में 50 की मौत और अनेक घायल हुए थें।
  • 6 जून,1981: बिहार में तूफान के कारण ट्रेन नदी में जा गिरी थी। इस हादसे में 800 की मौत और 1000 से अधिक घायल हुए थे। यह देश का पहला सबसे बड़ा हादसा है। इसके बाद बालासोर ट्रेन हादसे का नंबर आता है।
  • भारतीय रेलवे ने तकनीकि में किये ये बड़े बदलाव

रेलवे ट्रेन हादसे रोकने के लिए यूं तो समय-समय पर नई तकनीकियों को प्रयोग में लाता रहता है। 2020 में भारतीय रेलवे ने ट्रेनों के हादसों की संख्या को कम करने के लिए ट्रेनों में ट्रेन कालिजन अवायडेंस सिस्टम (टीसीएएस) कवच लगाने की तैयारी की थी। साल 2022 में मध्य रेलवे के रूटों में यह कवच सिस्टम लगा भी दिया गया था। यह सिस्टम ट्रेन सुरक्षा में इस सदी का सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है। इस तकनीक से ट्रेनें कभी भी लाल (Red) सिग्नल पार नहीं करेंगी। मेक इन इंडिया के तहत रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्स आर्गेनाइजेशन (आरडीएसओ) ने इसे विकसित किया है। इस तकनीक का इस्तेमाल ट्रेन और स्टेशन दोनों स्थानों पर हुआ है। इस कवच सिस्टम की खासियत ये है कि कवच सिस्टम से घने कोहरे में लाल सिग्नल न देख पाने की समस्या खत्म होगी। ट्रेनों की लेटलतीफी कम होगी और ट्रेनों की टकराहट शून्य स्तर पर पहुंच जाएगी। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कभी ट्रेन बेपटरी हुई तो ट्रेन के इंजन रुकते ही 10 सेकेंड के अंदर एक आपात मैसेज प्रसारित होगा। यह मैसेज तीन किमी के दायरे में प्रत्येक ट्रेनें में पहुंच जाएगा, जिससे संबंधित लाइन पर आ रही ट्रेनें तत्काल जहां होंगी रोकी जा सकेंगी।

रेलवे ट्रेनों को ऐसे मिलता है सिगनल 

भारतीय रेलवे का देशभर में करीब 68 हजार किलोमीटर लंबा नेटवर्क है। ऐसे में ट्रेनों को सही तरीके से संचालित करने लिए पटरियों पर लगे सिग्‍नल और संकेतों का अहम योगदान होता है। लोको पायलट को इन्ही सिग्नलों के माध्यम से पता चलता है कि कब गाड़ी को बढ़ाना है और कब रोकना है। जबकि हरा सिग्‍नल होने पर ही गाड़ी आगे बढ़ती है. कई बार येलो सिग्‍नल देकर भी गाड़ी को आगे बढ़ाया जाता है।

कवच से पहले भी हुए कई तकनीकि बदलाव

पीएम मोदी ने साल 2019 में रेलवे की सुरक्षा की दिशा में कदम उठाया था। वर्ष 2019 में कई अंडरपास बनाए गए और अधिक सिग्नल कंडक्टर लगाए गए। जिससे रेल हादसों में कमी आई है। रेलवे लाइन को खंडों या ब्लॉकों में बांटा गया है। प्रत्येक सेक्शन के अंत में स्वचालित ब्लॉक सिग्नलिंग एक्सल काउंटर स्थापित किए गए हैं जो ट्रेन की उपस्थिति का पता लगाते हैं और सिग्नल को नियंत्रित करते हैं जो ट्रेन को अगले सेक्शन में सुरक्षित रूप से प्रवेश करने देते हैं। स्वचालित ब्लॉक सिग्नलिंग (ABS) प्रणाली का उपयोग रेलवे में यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि ट्रेनें आपस में टकराए नहीं और भारतीय रेलवे को एक ही ट्रैक पर अधिक ट्रेनें चलाने की अनुमति देता है।

बालासोर रेलवे लाइन से गुजरती हैं कई ट्रेनें

बालासोर रेलवे स्टेशन दक्षिण पूर्व रेलवे के हावड़ा-चेन्नई मुख्य लाइन पर एक महत्वपूर्ण स्टेशन है। कोलकाता की दूरी लगभग 254 किमी है, जबकि भुवनेश्वर की दूरी लगभग 206 किमी है। बारीपदा के लिए एक शाखा लाइन बालासोर के पास रूपसा से शुरू होती है। बालासोर ट्रेनों के माध्यम से भारत के विभिन्न हिस्सों से जुड़ा हुआ है।

 

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