Ambedkar Jayanti 2023: बाबा साहेब के वो संघर्ष जो आज के समय में भी देतें है बड़ी सीख

0

किसी भी व्यक्ति की महानता का अगर पता करना हो तो कैसे करेंगे? क्या आप ये देखेंगे की वो किन उचाईयों को छू पाया है नहीं, बल्कि हम ये देखेंगे की वो इंसान दुसरो के लिए किस तरह से जिया, उसके लिए उन्होंने क्या अपनाया और किस चीज का त्याग किया और ये सब गुण मिलके उन्हें महान और शिक्षाप्रद बना देता है. ऐसी ही कुछ कहानी थी, ‘बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर’ की जिन्होंने अपने जीवन में जातिवाद व बहुत से चुनौतियों का सामना कर उच्च शिक्षा हासिल की, लेकिन उसके पश्चात उन्होंने अपना सारा जीवन पिछड़े और वंचित तकबे के लोगों के लिए लगा दिया. उनको मानाने वाले उन्हें भगवान का दर्जा देते है और पूजते हैं. आज यानी 14 अप्रैल को उनकी 132वीं जयंती है जिसे पूरा देश मना रहा है. उनका पूरा जीवन अपने आप में एक प्रेरणा है.

भेदभाव से भरा था जीवन…

भीमराव रामजी अंबेडकर का जन्म 6 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू में हुआ था. वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14वीं और अंतिम संतान थे. उनका परिवार महाराष्ट्र रत्नागिरी जिले के आंबडवे गांव के रहने वाला, मराठी मूल का था. वैसे तो पिता की नौकरी की वजह से बहुत ही गरीब परिवार के नहीं थे, लेकिन अछूत माने जाने वाली हिंदू महार जाति से होने के उन्हें बचपन से ही भेदभाव और सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था.

शिक्षा में थी रूचि…

बाबा शाहब पढाई में बहुत ही तेज बुद्धि वाले थे. उन्होंने ने बंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1912 तक, वे बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में भी कला स्नातक बने. 1913 से 1916 के बीच में उन्होंने न्यूयार्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री प्राप्त की. फिर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उन्होंने अपनी डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की.

वकील व अर्थशास्त्री के प्रोफेसर…

बाबा शाहब अपने शुआती करियर में एक अर्थशास्त्री प्रोफेसर और वकील थे. अपने करियर की शुरूआती दौर व पढाई के दौरान उन्हें खुद ही जातिवाद का सामना करना पड़ा था, जिसके पश्चायत उन्होंने ने छुआछूत की सोच का पूरा जोरोशोर से इसका विरोध किया. दलित अधिकारों की रक्षा के लिए, उन्होंने समता, प्रबुद्ध भारत मूकनायक, बहिष्कृत भारत, और जनता जैसी पांच पत्रिकाएं निकाली. जिनमें उनके लेखों ने हर वर्ग के लोगों को प्रभावित किया.

साइमन कमीशन के लिए किया नियुक्त…

बहुत से लोगों को नहीं पता होगा कि 1925 में उन्हें बंबई प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन कमीशन में काम करने के लिए नियुक्त किया गया. इस आयोग में भारत भर में विरोध प्रदर्शन इस आधार पर हुए कि इसमें कोई भारतीय नहीं था. लेकिन डॉ अम्बेडकर ने अपनी तरफ से कई संवैधानिक सुधारों के लिए सिफारिशें भेजी थीं.

पिछड़े वर्ग के लिए समर्पित…

अमेरिका और लंदन से पढ़ने के बाद भी डॉ अंबेडकर ने समाज दलितों के प्रति भेदभाव को मिटाने के लिए कार्य किए. उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के जरिए, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिए खुलवाने के प्रयास किए. तो वहीं उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिए कड़ा संघर्ष भी किया.

कांग्रेस से लेकर गांधी तक का विरोध…

1930 में चार साल की राजनैतिक और सामाजिक सक्रियता के बाद अम्बेडकर एक बड़ी हस्ती बन चुके थे उनके विचार दलितों के साथ दूसरे वर्गों को भी प्रभावित कर रहे थे. उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की और कांग्रेस से लेकर महात्मा गांधी तक को नहीं बक्शा और आरोप लगाया कि गांधी जी दलितों को करुणा की वस्तु के रूप में प्रस्तुत करते रहे.

अंबेडकर हर स्थिति में दलितों के लिए एक प्रभावी आवाज बने रहे इसके लिए भले ही उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया लेकिन अपने विरोधियों से समझौता करने या उनके साथ आने में भी वे कभी नहीं सकुचाए. अपने सिद्धांतों के लिए उन्होंने गांधी जी का विरोध किया तो दलितों के लिए ही उनसे समझौता भी किया. उन्होंने संविधान सभा में कांग्रेस के खिलाफ जाकर बहसें भी कीं तो नेहरू केबिनेट में कानून मंत्रालय कि जिम्मा भी लिया.

Also Read: Covid19: नहीं थम रही रफ्तार, 24 घंटे में अकड़ा 11 हजार के पार

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More