Chat GPT : गूगल को खत्म कर सकता है ये सॉफ्टवेयर! लोगों पर तेजी से पड़ रहा प्रभाव
अगर आप भी टेक्नोलॉजी के शौकीन हैं तो चैट जीपीटी (Chat GPT) का नाम जरूर सुना होगा. नहीं भी सुना हो तो कोई बात नहीं, कहा जा रहा है कि यह तकनीक भविष्य में गूगल के सर्च इंजन को खत्म कर सकती है. चैट जीपीटी एक डीप मशीन लर्निंग बॉट है. यानी यह आपके सवालों का जवाब देता है और हर सवाल के बाद सीखता भी है. टेक्नोलॉजी क्षेत्र में रूचि रखने वाले युवा और एक्सपर्ट्स सोशल मीडिया पर आज कल इसी पर चर्चा कर रहे है. आप इसका इस्तेमाल नि:शुल्क कर सकते हैं. इसमें 2021 से पहले तक का ही डेटा फीड है. तो आइए जानते है क्या है चैट जीपीटी कहा से और कब हुई इसकी शुरुआत?
क्या है चैट जीपीटी…
-यह एक सॉफ्टवेयर है, इसका पूरा नाम जेनेरेटिव प्रेट्रेन्ड ट्रांसफॉर्मर (GPT) है. इसे आप एक आधुनिक एनएमस भी कह सकते हैं. यह सॉफ्टवेयर गूगल की तरह आपको सिर्फ रियल टाइम सर्च ही नहीं देता, बल्कि आपके द्वारा पूछे गए सवालों के बेहद साफ और सटीक शब्दों में जवाब भी देता है. यह लोगों के बीच बहुत तेजी से अपनी जगह बना रहा है.
-इसके सीईओ सैम अल्टमैन की मानें तो चैट जीपीटी ने एक हफ्ते से भी कम समय में 10 लाख यानि एक मिलियन यूजर्स तक अपनी पहुंच बना ली. वर्ल्ड स्टेटिस्टिक्स नाम के एक ट्विटर अकाउंट पर दी गई जानकारी की मानें तो नेटफ्लिक्स को यह आंकड़ा छूने में 3.5 साल लग गए थे. वहीं ट्विटर को दो साल और फेसबुक को 10 महीने लग गए थे. जबकि, इंस्टाग्राम को तीन महीने और स्पॉटिफाई को 5 महीने लग गए थे.
कैसे हुआ इसका विकास…
चैट जीपीटी ओपन एआई द्वारा विकसित नैचुरल लैंग्गुएज प्रोसेसिंग मॉडल है. इसे पहली बार 2018 में एक शोध में प्रकाशित किया गया था. इसका निर्माण प्रश्न उत्तर, भाषा अनुवाद और पैराग्राफ निर्माण आदि के लिए किया गया था. चैट जीपीटी के फाउंडर की बात करें तो सैम अल्टमैन और एलन मस्क ने 2015 में इसकी शुरूआत की थी. शुरूआती सालों में ही एलन मस्क ने इस प्रोजेक्ट को छोड़ दिया था. जिसके बाद माइक्रोसॉफ्ट ने इसमें इनवेस्ट किया है और 30 नवम्बर 2022 को एक प्रोटोटाइप के तौर पर इसे लांच किया.
कैसे लोग हो रहे प्रभावित…
चैट जीपीटी के आने से लोग बहुत सारे सवाल चैट जीपीटी से करने लगे हैं. चैट जीपीटी उनका अपने फीड डेटा के अनुसार जवाब दे रहा है. जिससे लोगों को फायदा हो रहा है लेकिन इससे लोगों का करिअर प्रभावित नहीं होगा. ये माना जा सकता है कि एआई सिस्टम कुछ कार्य मानव मस्तिष्क से उच्च क्षमता में कर सकता है लेकिन मनुष्यों के समान समझ और रचनात्मक स्तर इस टूल के पास नहीं हैं.
क्या है इसके नुक्सान…
ये एक लर्निंग मॉडल की तरह है ये सिर्फ उतनाही जवाब दे सकता है जितना इसके अंदर डेटा फीड है. या जिस डेटा पर इसे प्रशिक्षित किया गया है. अगर प्रशिक्षित किए गए डेटा में पूर्वाग्रह हैं तो वह संबंधित सवाल के जवाब में भी दर्शाए जा सकते हैं. इसीलिए मानव मस्तिष्क जितनी समझ इसमें नहीं है. अगर आप इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. तो संबंधित कंटेंट को जांच कर ही इस्तेमाल करें.
Also Read: जापान को पछाड़कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटो बाजार बना भारत, नंबर वन पर है ये देश