46 वर्षीया इस आदमी के नाम है 26 बार एवरेस्ट चढ़ाई करने का रिकॉर्ड
वाराणसी: 46 साल के नेपाली पसांग दावा शेरपा ने रिकॉर्ड बनाया है. उन्होंने माउंट एवरेस्ट को 26वीं बार फतह करके रविवार को इतिहास रच दिया. पसांग ने पहली बार 1998 में 8,849 मीटर ऊंचे एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी. इसके बाद लगभग हर साल वो दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचकर उसे फतह करते हैं. जीवन के इस पड़ाव भी इनका जोश और जुनून लोगों को प्रेरित करता है और बताता है उम्र महज एक संख्या से ज्यादा कुछ भी नहीं.
एवरेस्ट फतह करने वालों के रिकॉर्ड पर गौर करेंगे तो पाएंगे शेरपा इसमें माहिर होते हैं. जानिए, आखिर कौन हैं शेरपा और कैसे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचकर रिकॉर्ड बना लेते हैं.
कौन हैं शेरपा…
शेरपा एक खास समुदाय है जो हिमालय के बर्फीले इलाकों में रहने के लिए जाना जाता है. ये खासतौर पर नेपाल और तिब्बत के हिमालय क्षेत्र में रहते हैं. ये विशेषतौर पर पर्वतारोहियों को रास्ता दिखाने के साथ उनकी मदद करने का काम करते हैं. इनकी आजीविका का साधन ही यही होता है. अब तक कई ऐसे शेरपा हुए हैं जो एवरेस्ट को फतह करके रिकॉर्ड बना चुके हैं.
शेरपाओं को खासतौर पर ऊंची चढ़ाई चढ़ने के लिए जाना जाता है. देशी-विदेशी पर्यटकों की मदद करना ही इनकी कमाई का मुख्य स्रोत है. हिमालयन डेटाबेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सर एडमंड हिलेरी और शेरपा तेनजिंग ने 1953 में पहली बार एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी.
शेरपा एवरेस्ट फतह करके कैसे रिकॉर्ड बनाते हैं…
-सबसे बड़ा सवाल है कि आम इंसान के लिए दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को फतह करना मुश्किल होता है, वहां ये शेरपा इतिहास कैसे रच देते हैं. दुनिया की सबसे ऊंची चोटी तक पहुंचने के सफर में सबसे मुश्किल स्थिति होती है ऑक्सीजन का कम होना. सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां पहुंचने वाले मात्र 6 फीसदी लोग ही ऐसे होते हैं जिन्हें अलग से ऑक्सीजन देने की जरूरत नहीं पड़ती.
-पर्वतारोही जैसे-जैसे ऊंचाई तक पहुंचते हैं वो एल्टीट्यूड सिकनेस यानी ऊंचाई पर पहुंचने वाली दिक्कतों से जूझने लगते हैं. लेकिन शेरपाओं के मामले में ऐसा नहीं होता. सदियों से ऐसी जगह पर रहने के कारण उनका शरीर ऊंचाई पर रहने और यहां चढ़ाई चढ़ने के लिए तैयार हो गया है. जेनेटकली इनका शरीर इसके लिए तैयार हो चुका है.
-ये इतने पावरफुल क्यों होते हैं, इसे समझने के लिए 2013 में 180 पर्वतारोहियों पर रिसर्च की गई. इसमें 116 मैदानी इलाकों के पर्वतारोही ओर 64 शेरपाओं को शामिल किया गया. इन्हें एवरेस्ट बेस कैंप में भेजने की योजना बनाई की. 5300 मीटर की चढ़ाई के दौरान सभी शरीरिक क्षमता को समझा गया.
-रिसर्च रिपोर्ट कहती है, इंसान जब सांस लेता है तो एनर्जी जनरेट होती है. ऐसा शरीर में मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया के कारण होता है. रिसर्च में सामने आया कि शेरपा का माइटोकॉन्ड्रिया दूसरे पर्वतारोहियों के मुकाबले ज्यादा बेहतर काम करता है. इनका शरीर इन्हें अधिक एनर्जी देता है. यह प्रॉसेस बिल्कुल वैसी ही है जिसे एक बेहतर ऐवरेज देने वाली कार. यही वजह है कि इन्हें कम ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है और ज्यादा एनर्जी मिलती है.
-शेरपाओं पर हुईं दूसरी रिसर्च में पाया गया कि अधिक ऊंचाई पर आमतौर पर दूसरे पर्वतारोहियों में ब्लड सर्कुलेशन घटने लगता है, लेकिन शेरपाओं के साथ ऐसा नहीं होता.
Also Read: रूस-यूक्रेन का समझौता चाहता है चीन, चार बिंदुओं में जानें ड्रैगन का शांति प्लान