…ताकि नन्हें हाथों में न लगे शादी की हथकड़ियां
कभी परिवार के कमजोर हालात तो कभी बोझ समझ लड़कियों की कम आयु में ही शादी कर दी जाती है। देश में कई जगह अब भी लड़कियां बाल विवाह का दंश झेल रही हैँ। बाल विवाह किसी अभिशाप से कम नहीं है। इस अभिशाप को देश से जड़ से मिटाया जा सके, इसके लिए अनूठी पहल की जा रही है। इस पहल के तहत अब शादी के कार्डों में आयु और जन्मतिथि लिखना होगा।
पिछडेपन का दंश तराई की बेटियां झेलती है
ये पहल यूपी के श्रावस्ती डीएम दीपक मीणा की तरफ से की जा रही है। उम्मीद है कि डीएम दीपक की इस अनोखी तरकीब से समाज में व्याप्त इस कुप्रथा की बलि चढ़ने से मासूम बच्चियों को बचाया जा सकेगा। शैक्षिक, सामाजिक व आर्थिक पिछड़ेपन का दंश तराई की बेटियां झेलती हैं।
बाल विवाह की कुप्रथा वर्षों से चली आ रही है
पढऩे व खेलने की उम्र में दुल्हन बनाकर उन्हें घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। तमाम प्रयासों के बाद भी इस भयावह स्थिति पर विराम नहीं लग पा रहा है। समस्या को जड़ से मिटाने के लिए डीएम दीपक मीणा ने नई तरकीब निकाली है। अब शादी के कार्ड पर प्रिंटिंग प्रेस संचालकों को वर-वधू की जन्मतिथि भी अंकित करनी होगी। इतना ही नहीं प्रिंटिंग प्रेस संचालक को वर-वधू की आयु प्रमाण पत्र से संबंधित अभिलेख भी अपने पास सुरक्षित रखने होंगे। इसके लिए प्रिंटिंग प्रेस संचालकों के साथ बैठक कर दिशा-निर्देश दिए जाएंगे।हिमालय की तलहटी में स्थित श्रावस्ती जिले में बाल विवाह की कुप्रथा वर्षों से चली आ रही है।
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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस)- 4 के आंकड़े बताते है कि यहां 70 प्रतिशत से भी अधिक बेटियों का बचपन में ही विवाह कर दिया जाता है। ग्रामीण अंचलों की 70.6 प्रतिशत और शहरी इलाके की 68.5 फीसद बेटियों का बाल विवाह होता है। इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र की 7.5 फीसद और शहरी क्षेत्र की 7.0 प्रतिशत बेटियां 15 से 19 वर्ष की आयु वर्ग में ही मां बन जाती हैं।बाल विवाह के अधिकांश मामले सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों में देखे जाते हैं। ऐसे परिवार बेटी के बड़े हो जाने पर अपनी आर्थिक स्थिति के अनुकूल योग्य वर पाने में खुद को अक्षम महसूस करता है। वर पक्ष को भी डर रहता है कि बेटा बड़ा हो गया तो उसके उम्र की दुल्हन आसानी से ढूढ़े नहीं मिलेंगी।
शादी अनुदान योजनाएं चलाई जा रही हैं
समाज में बीमारी की तरह मजबूती से बैठ बनाए बैठी दहेज जैसी कुप्रथा भी बाल विवाह के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। गरीब बेटियों के हाथ पीले करने में पैसों की कमी आड़े न आए इसके लिए सरकार की ओर से मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना, शादी अनुदान आदि योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसके बावजूद बाल विवाह रुक नहीं रहा है। वैवाहिक आयोजनों के लिए कार्ड छपना व वितरित होना प्राथमिक आवश्यकता मानी जाती है।
इसके लिए प्रिंटिंग प्रेस की मदद ली जाती है। प्रिंटिंग प्रेस संचालक विवाह के कार्ड पर वर-वधू की जन्मतिथि अथवा आयु अंकित करेंगे। आयु प्रमाण पत्र के तौर पर उन्हें मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड अथवा अन्य सरकारी अभिलेख जिसमें उम्र अंकित हो उसे अपने पास रखना होगा। यदि नाबालिग बेटी अथवा बेटे के विवाह का कार्ड छपवाने के प्रयास होते हैं तो प्रिंटिंग प्रेस संचालक इसकी सूचना प्रशासन को देंगे। जिला प्रोबेशन विभाग इन गतिविधियों पर पैनी नजर रखकर बाल विवाह रुकवाएगा। इसके लिए प्रिंटिंग प्रेस संचालकों के साथ बैठक कर उन्हें विस्तृत दिशा-निर्देश दिए जाएंगे।
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