मिट्टी की रोटीयां खाने को मजबूर हैं यहां के लोग, दो वक्त की रोटी को तरसता हैं पूरा गांव…

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गरीबी इंसान से क्या क्या नहीं करवाती है. दुनियाभर में कई ऐसे देश हैं जो सालों से गरीबी की वजह से जानवरों जैसी जिंदगी जीने पर मजबूर हैं. आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां लोग रोटी तो खाते हैं लेकिन वो आटें की नहीं बनी होती है बल्कि मिट्टी की बनी होती हैै.‘मिट्टी की रोटी’ खाने की यहां कोई पंरपरा नही हैं, और न ही किसी को ‘मिट्टी की रोटी’ खाना अच्छा लगता हैं. इस देश के लोग मिट्टी की रोटी खाने पर मजबूर हैं. जी हां.. हैती कैरीबियाई देशों में से एक देश है.  2010 में वहां भयंकर भूकंप आया था.  जिसमें ढाई लाख के करीब लोगों की जान चली गई थी. वहीं 30 लाख से ज्यादा लोग उस भूकंप से प्रभावित हुए थे. हैती अब भी उससे उभरने की कोशिशों में लगा हुआ है।

भूख के लिए कुछ भी करने को तैयार…

दरअसल हैती कैरीबीयन देश है , जहाँ के गरीब लोग अपना पेट भरने के लिए ‘मुड कुकीज़ ‘ का सहारा लेते हैं, जो उन्हें बीमारियों की गिरफ्त में ही ले जाने का काम कर रही है. लेकिन कहते है न कि पेट भरने के लिए या फिर पेट की भूख को शांत करने के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. यूनाइटेड नेशन्स के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन के अनुमान के अनुसार, करीब 1.3 टन खाने योगय चीज़ें कचरे में फेंक दी जाती हैं. और ये दुनियाभर में कई करोड़ लोगों का पेट भर सकती है।

80 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है

हैती कैरेबियाई का तीसरा सबसे बड़ा और गरीब देश है. इसे पहाड़ों का देश भी कहा जाता है. भुखमरी और गरीबी यहां की दीर्घकालिक समस्या है. इसे अनाथ बच्चों का भी देश कहा जाता है. हैती की 80 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है. कभी इस पर अमेरिका का कब्जा था. लेकिन अब यह स्वतंत्र देश है. यहां 30 लाख लोगों के पास आज भी भोजन उपलब्ध नहीं है।

मिट्टी को खुद के लिए समझते है वरदान…

हैती के लोग पहाड़ी मिट्टी को खुद के लिए वरदान समझते हैं. क्योंकि उनके पास हैल्थी चीज़ें खाने के लिए पैसे जो नहीं होते. इसलिए वे इसी पहाड़ी मिट्टी में पानी व वनस्पति तेल मिलाकर एक लेप तैयार करते हैं और फिर उसे बिस्कुट का आकार देकर धूप में सुखाकर उससे अपनी व अपने बच्चों की भूख को शांत करने का काम करते हैं. यही कारण है कि वहां के लाखों लोग कुपोषण के शिकार हैं।

मिट्टी के बिस्कुट खाकर गुजारा…

किसी के पास खाने के लिए ढेरों चीज़ें होती हैं. और कई बार वे उसमें से चूज़ करने में भी कन्फूज़ हो जाते हैं. और किसी को अपने पेट की भूख को शांत करने के लिए सिर्फ मिट्टी के बिस्कुट से ही गुजारा चलना पड़ता है. भला कौन गंदगी में अपना जीवन गुज़ारना चाहता है. लेकिन हैती वासियों को जीना है. तो ऐसे ही अपना जीवन वयतीत करना होगा. क्योंकि उनके पास अन्य चीज़े खाने के लिए पैसे जो नहीं होते।

हेतिवासियो के लिए दाल,सब्ज़ियां सपने जैसे…

फल, दूध, दही, दाल, सब्ज़ियां जिनमें विटामिन्स, मिनरल्स , प्रोटीन भरपूर मात्रा में होते हैं और हर पेरेंट्स अपने व अपने बच्चों को हैल्थी फ़ूड देने की इच्छा रखते हैं , क्योकि इससे शरीर की सभी जरूरतें जो पूरी होती है. लेकिन हेतिवासियो के लिए तो पौष्टिकता का मतलब ही कीचड़ के बिस्कुट से होता है।

क्यों खाई जाती है मिट्टी की रोटी…

बता दे  कि हैती कैरीबियाई देशों में से एक है. 2010 में वहां भयंकर भूकंप आया था, जिसमें ढाई लाख के करीब लोगों की जान चली गई थी. वहीं 30 लाख से ज्यादा लोग उस भूकंप से प्रभावित हुए थे. हैती अब भी उससे उभरने की कोशिशों में लगा हुआ है।

पिछड़े इलाकों में इससे भी बुरा हाल …

हालांकि, वहां गरीबी पहले से है, वहां के पिछड़े इलाकों में तो हाल बहुत ही खराब है. 2008 में खबर आई थी. कि वहां के लोग खाने की कीमतों में आए उछाल की वजह से मिट्टी की कुकीज बनाकर खाने लगे थे. दरअसल, उनपर खाना खरीदने तक के पैसे नहीं थे, ऐसे में वे वहां की पीली मिट्टी का इस्तेमाल करके कुकीज बनाने लगे।

भारतीय क्रिकेट ने की लोगों से अपील…

भारतीय क्रिकेट टीम के मास्टर स्टोक माने जाने वाले पूर्व क्रिकेटर विरेंद्र सहवाग हमेशा सोशल मीडिया में बने रहते हैं। कुछ समय पहले उन्होंने एक भावुक कर देने वाला वीडियो पोस्ट किया जिसमें लोग मिट्टी से बनी रोटी खाने को मजबूर है ऐसा दिखाया गया है। इस वीडियो को अपने ट्वीटर में शेयर करते हुए विरेंद्र सहवाग ने लिखा कि एक ऐसा भी देश है जहां खाने के लिए खाना नहीं है जिसके कारण यहां के लोग मिट्टी की रोटियां खाने के लिए मजबूर है।

खाना को बर्बाद न करने की गुजारिश…

साथ ही उन्होने लिखा कि मै सभी से खाना को बर्बाद न करने की गुजारिश करता हूं। गरीबी इंसान से क्या क्या नहीं करवाती। जिस चीज की हम परवाह नहीं करते ओर सोचते हैं कि यह तो हमारी है वह असल में हमारी नहीं होतो वह सिर्फ हमारी सोच होती है। इन्हीं सब बातो को लिखते हुए सहवाग ने लिखा कि आपके लिए जो फालतू खाना हो उसे गरीबों तक पहुंचाए

30 करोड़ से भी अधिक लोग बेहद गरीब…

तीन साल पहले यानी 2015 में आई एक रिपोर्ट पर गौर करें तो देश में 30 करोड़ से भी अधिक लोग बेहद गरीब हैं. दुनिया भर में भुखमरी के शिकार लोगों की आबादी में एक चौथाई हिस्सा भारत का है. तकरीबन 20 करोड़ लोगों को जरूरत के मुताबिक पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता. भारत में पांच साल की उम्र के 50 फीसदी बच्चों की मौत भुखमरी और कुपोषण से होती है, जबकि पांच करोड़ से अधिक लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. ऑस्ट्रेलिया में जितना गेंहू उत्पादन होता है, भारत में उससे अधिक यानी 2 करोड़ 10 लाख टन बर्बाद कर दिया जाता है. जरा सोचिए भविष्य में यह संकट और कितना गहरा होगा. 2030 तक भारत की आबादी 145 करोड़ तक पहुंचने की संभावना जताई गई है. उस स्थिति में यह समस्या और अधिक बढ़ जाएगी।

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