दुनिया में इको फ्रेंडली हुआ अंतिम संस्कार का तरीका, जानें कैसे ?
कहते हैं देर आए लेकिन दुरूस्त आए… धीरे – धीरे ही सही लेकिन लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहे हैं. कहीं ई रिक्शाै तो कहीं ई – कार का प्रयोग कर पर्यावरण को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसे में अब अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव करते हुए उसे भी इको फ्रैंडली बनाएं जाने का प्रयास किया जा रहा है.
बाहर के देशों में ईसाई धर्म के लोग सालों साल बहस के बाद आज अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए साथ आए हैं. ऐसे में लोग अंतिम संस्कार के धार्मिक, व्यावहारिक और पारंपरिक तरीकों को ध्यान में रखकर इस बात पर विचार कर रहे हैं जो इको फ्रेंडली या प्रदूषण रहित हो. अब आप सोच रहे होगें की आखिर ऐसा कहां हो रहा है, जहां लोग पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी परंपरा तक को बदलने को तैयार हैं तो, आइए जानते हैं …
केपटाउन किया गया पहली बार ऐसे अंतिम संस्कार
ब्रिटने में चर्च ऑफ इंग्लैंड के साथ प्रमुख ईसाइ धर्म के चर्च में आयोजित होने वाली आम जनसभाओं में ईसाई धर्म में मृतक के शव को जलाने या दफनाने के बजाय पानी से डिकंपोज या खाद बनाने को लेकर चर्चा की जा रही है. इसके साथ ही अंतिम संस्कार के पर्यावरण अनुकूल विधियों के विकल्प खोजे जा रहे हैं. वही सभा में शामिल हुए आर्क विशप डॉकचिन का कहना है कि, ”अंतिम संस्कार की नई विधियों पर हिचक जरूर है, लेकिन किसी तरह की गलतफहमी नहीं है.
वे कहते हैं- रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता और केप टाउन के आर्कबिशप डैसमंड टूटू ने साल भर पहले ही अपने शरीर का एक्वामेशन कराया था. दुनिया भर में ईसाई धर्म के अनुयायी करीब 240 करोड़ हैं. यह दुनिया की आबादी का 30% हैं. इसके आगे उन्होने कहा है कि, करीब एक साल पहले केपटाउन के आर्कबिशप डैसमंड टूटू के शरीर का एक्वामेशन कराया गया था. अब इसी तरीके को अपनाने पर विचार किया जा रहा है.”
क्या होती है एक्वामेशन प्रक्रिया ?
विश्वभर में पर्यावरण प्रदूषण से बचाव के लिए एक्वामेशन के माध्यम से अंतिम संस्कार किए जाने की शुरूआत की गयी है. इसको यदि आसान भाषा में समझें तो पानी के माध्यम से अंतिम संस्कार प्रक्रिया को करना होता है. इस विधि में पोटैशियम हाइड्रोक्साइड जैसे एल्केसी मिले हुए पानी में एक सिलेंडर के अंदर शव को रखा दिया जाता है, इसके बाद इस सिलेंडर के ऊपर दबाव बढाया जाता है और इस पानी का तापमान 150 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है.
जिसके बाद इस सिलेंडर के अंदर सिर्फ हड्डियां ही बचती हैं. इसके बाद हड्डियों को ओवन में रखकर राख में बदल दिया जाता है और इस राख को परिवार को दिया जाता है. इसके बाद खत्म हुए पानी को सीवेज में मिला दिया जाता है, हालांकि, शुरूआती दौर में इसका कई समुदाय और कंपनियों ने विरोध किया था, लेकिन पानी में डीएनए न मिलने के बाद इसकी इजाजत दे दी गयी थी. इसके अलावा भी अंतिम संस्कार की एक प्रक्रिया है जिसको फॉलो किया जा रहा है वो है टेरामेशन प्रक्रिया …
क्या होती है टेरामेशन प्रक्रिया ?
शव को मिट्टी में बदल देने की क्रिया को टेरामेशन प्रक्रिया कहा जाता है, यह भी एक्वामेशन की तरह ही एक इको फ्रेंडली अंतिम संस्कार की प्रक्रिया है. जिसका प्रयोग किया जा रहा है. इस प्रक्रिया में शव को एक बक्शे में रखा जाता है और शरीर में लगे पेसमेकर जैसे बाहरी इक्कीपमेंट्स को निकाल दिया जाता है. इसके बाद लकड़ी के चिप्स और दूसरे जैव पदार्थ के साथ गर्म हवा अपघटन तेज कर देती है और तीस दिन में हड्डियां और दांत मिट्टी का रूप ले लेते है. इस प्रक्रिया में शव से एक घन तक मीटर मिट्टी तैयार होती है. जो एक उपजाऊ खाद का काम करती है.
ईसाई समुदाय की परंपरा क्यों बदल रही है?
ईसाई समुदाय पर्यावरण को बचाने के लिए यह बड़ा बदलाव करने वाला है, उन्होंने कहा कि, अंतिम संस्कार के धार्मिक, व्यावहारिक और पारंपरिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए ऐसा मार्ग अपनाने के लिए तैयार हैं. दुनिया भर में पर्यावरण को ध्यान में रखने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है, जिनमें से एक्वामेशन और टेरामेशन दोनों आम हैं. टेरामेशन के माध्यम से मृत शरीर को खाद में बदल दिया जाता है. विशेषज्ञों का माना है कि इंसान के शरीर को ऐसी प्रक्रिया से गुजारा जाता है कि रोगों को बढ़ावा देने वाले सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं. इसे प्रक्रिया को ह्यूमन कम्पोजिटिंग भी कहते हैं.
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दाह संस्कार का पर्यावरण पर क्या होता है असर ?
अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में मृत शरीर को ताबूत में जलाने से नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं, जो कार्बन पदचिह्न होता है. दाह संस्कार करने से लगभग 245 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है, जो लगभग 29,000 बार फोन चार्ज करने के बराबर है.
पारंपरिक दफ़नाने का पर्यावरण पर भी बुरा असर होता है. शव लेप लगाने के दौरान उपयोग किए गए रसायन लीक हो सकते हैं, जो आसपास की मिट्टी और जलमार्गों को प्रदूषित कर सकते हैं. कब्रगाहों के लिए पर्याप्त जगह खोजने की तार्किक समस्या भी नहीं उठाई जाती. उचित पर्यावरणीय विकल्पों की मांग स्पष्ट है, इस सप्ताह यूके में 4,987 वयस्कों पर YouGov सर्वेक्षण में पाया गया कि, ”44 प्रतिशत शायद या निश्चित रूप से मरने के बाद खाद में तब्दील होने पर विचार करेंगे”