चीन-रूस के बढ़ते संबंध करेगा नए शीतयुद्ध का आगाज! विशेषज्ञ ने जताई चिंता
हमेशा से ही पश्चिम देशों में चीन और रूस की गठजोड़ को लेकर चिंता जताई जाती है. रूस यूक्रेन युद्ध जहां दुनिया में भूरणनीतिक और भूराजनैतिक स्तर पर कई तरह के क्रांतिकारी समीकरण बनाने वाला साबित हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ चीन और रूस के गहरे हो रहे संबंध को एक बड़े मोड़ के रूप में देखा जा रहा है. दोनों ही देश अमेरिका के घुर विरोधी हैं. दोनों के संबंधो को देखते हुए अमेरिका और दुनिया के लिए कितना खतरा है इसको लेकर मंथन शुरू हो चुका है. कई विशेषज्ञ ने इसको लेकर यह तक आशंका जताने लगे है कि दुनिया में नए शिट युद्ध का आगाज होने वाला है.
शीत युद्ध के वापसी के संकेत…
रूस और चीन की जुगलबंदी को अमेरिका लोकतंत्रों के लिए खतरे के तौर पर देखता है. अमेरिका की दलील है कि चीन रूस को युक्रेन के खिलाफ समर्थन देकर अंतरराष्ट्रीय असंतुलन पैदा कर रहा है. द कंवर्सेशन के लेख के मुताबिक चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात रूस चीन गठबंधन के साथ ही शीत युद्ध की वापसी का भी संकेत है.
किसे कहते शीत युद्ध…
शीत युद्ध के नाम का जन्म द्वितीय युद्ध के बाद से हुआ था जब संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वर्चस्व के लिए हथियारों के बजाय एक प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई थी. जिसमे खुदको हर क्षेत्र में बेहतर करने के लिए दूसरे देशों को अपने प्रभाव में लाकर अपने खेमे में लाने का ज्यादा प्रयास होता था. यह प्रतिस्पर्धा हथियारों के उत्पादन से लेकर अंतरिक्ष और यहां तक कि ओलंपिक खेलों तक में साफ तौर पर दिखाई देती थी.
दो विपरीत विचारधारा…
भूराजनैतिक स्तर पर ये दोनों विपरीत ध्रुव कई लिहाज से अलग थे. जहां अमेरिका पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता था, वहीं सोवियत संघ साम्यवाद का प्रधिनिधित्व करता था. पूर्व और पश्चिम के तौर पर जाने वाले इन खेमों में जर्मनी के भी दो हिस्से थे. लेकिन इस शीत का सबसेअमे खतरनाक पहलू हथियारों की होड़ थी और दोनों पक्षों में कभी भी परमाणु युद्ध के होने का खतरा दुनिया पर मंडराता रहता था.
शीत युद्ध के बाद…
1980 के दशक के अंत तक सोवियत संघ के बिखरने और जर्मनी के दोनों हिस्सों के एक होने से शीत युद्ध को औपचारिक तौर पर खत्म मान लिया गया. इसके बाद अमेरिका दुनिया का एकमात्र आर्थिक महाशक्ति रह गया और अमेरिका के बाद रूस हथियारों के मामले में ही महाशक्ति बन कर गया. इससे यही हुआ कि अमेरिका दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश हो गया और वह लोकतंत्र का पैरोकार बन गया.
आज क्या हो गया है…
पेंच यहीं आता है कि सोवियत संघ खत्म होने से साम्यवाद पूरी तरह से खत्म तो नहीं हुआ, लेकिन रूस और चीन में यह कायम रहा. इसी बीच 2010 के दशक में चीन तेजी से एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरने लगा जिससे अमेरिका को सीधी चुनौती मिलने लगी. वहीं नाटो का पूर्वी यूरोप में विस्तार रूस “चिंतित” होने लगा और जब उसकी सीमा से लगे यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने का इरादा जताया तो रूस को यह नागवार गुजरा जिसका नतीजा रूस यूक्रेन युद्ध है.
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