महागठबंधन ने पटना को ऐसे ही नहीं चुना, यहीं से उन अटकलों की शुरुआत हुई जिसने देश में क्रांति ला दी

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लखनऊ: पटना या यूं कहें कि पूरे बिहार की जमीन आंदोलनों के मामले में काफी उपजाऊ है. आजादी से पहले और बाद में इसी धरती से शुरू हुए कई आंदोलन निर्णायक रहे. सीएम, पीएम तक की कुर्सी चली गई. बिहार की इसी धरती से शुरू हुए जेपी आंदोलन के बाद इंदिरा गांधी की कुर्सी चली गई थी, तो अब करीब डेढ़ दर्जन राजनीतिक दलों ने इसी धरती से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटाने का बिगुल फूंक दिया है. इसकी पहली औपचारिक बैठक 23 जून को पटना में हुई. सभी ने एकजुट होकर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया.

इस राजनीतिक आंदोलन का नतीजा 2024 में ही आएगा. उससे पहले भी इसमें कई बाधाएं हैं, जिन्हें सभी विपक्षी दलों को मिलकर सुलझाना होगा. आइए इसी बहाने जानते हैं बिहार के उन आंदोलनों के बारे में जो इतिहास में दर्ज हो गए और उनका असर देशव्यापी हुआ.

अग्निपथ योजना के ख़िलाफ़ छात्र आंदोलन…

जैसे ही 2022 नया साल शुरू हुआ था. केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ बिहार के युवाओं ने झंडा बुलंद किया. उन्हें पूरे विपक्ष का भी समर्थन मिला. देखते ही देखते आंदोलन ने तोड़फोड़ और आगजनी का रूप ले लिया. कई ट्रेनें भी जला दी गईं. इस आंदोलन को तब और गति मिली जब आरआरबी, एनटीपीसी के नतीजों से नाराज छात्र, युवा भी कूद पड़े.

इसका असर पटना से निकलकर लगभग पूरे बिहार और देश के अन्य हिस्सों तक फैल गया. करोड़ों रुपये की राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान हुआ. पुलिस ने बहुत सख्ती बरती, लेकिन चूंकि राजनीतिक दल भी इसमें शामिल हो गये, इसलिए इसका स्वरूप बिगड़ता चला गया. करीब दो महीने तक चले इस आंदोलन का कोई नतीजा नहीं निकला. अग्निपथ योजना के तहत भारतीय सेना के तीनों अंगों में भर्तियां की गई हैं. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद युवा देश सेवा में जुट गए हैं. इसके साथ ही यह आंदोलन इतिहास के पन्नों में भी दर्ज हो गया है.

मंडल आयोग की रिपोर्ट…

वर्ष 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की. इसका पूरे देश में विरोध हुआ, लेकिन बिहार के ऊंची जाति के युवाओं ने ऐतिहासिक आंदोलन किया. भारी मात्रा में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया. आंदोलन हिंसक था इसलिए आगजनी आम बात थी. गुस्सा इतना था कि युवा खुद को भी आग के हवाले कर रहे थे. किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थी. आंदोलनकारियों की मांग थी कि सरकार जातीय आरक्षण खत्म कर इसे आर्थिक आधार पर लागू करे. इस आंदोलन में भी युवाओं का साथ राजनीतिक दलों ने दिया. उनकी एंट्री के साथ ही आंदोलन का रूप व्यापक हो गया और इसकी गूँज देश भर में सुनी गयी.

जेपी आंदोलन…

आपातकाल के खिलाफ यह बिहार की धरती से शुरू हुआ एक ऐसा आंदोलन था, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है. यह आंदोलन किताबों में दर्ज हो गया क्योंकि इसका देशव्यापी असर हुआ. छात्रों ने भी ये आंदोलन शुरू किया था. कोई नेता नहीं था. पुलिस ने उसकी पिटाई कर दी. जेल भेज दिया गया. बाद में समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण ने कुछ शर्तों के साथ इसका नेतृत्व किया और जल्द ही यह आंदोलन देश के कई हिस्सों तक पहुंच गया. इंदिरा गांधी को पीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी. इस आन्दोलन को सम्पूर्ण क्रांति नाम मिला. आपातकाल से त्रस्त भारत की जनता ने कांग्रेस को सत्ता से हटा दिया.

नेहरू को आना पड़ा…

बात साल 1955 की है. बिहार के छात्रों ने जबरदस्त आंदोलन किया था. इसकी गूंज दिल्ली तक पहुंची. तमाम कोशिशों के बावजूद जब आंदोलन रुका नहीं, बल्कि बढ़ता ही गया तो पीएम नेहरू पटना आए. लेकिन बात नहीं बनी. छात्र बस टिकट के मुद्दे पर भड़के हुए थे. आंदोलन इतना बढ़ गया कि एक छात्र की मौत हो गई.

बाद में तत्कालीन परिवहन मंत्री महेश सिंह के इस्तीफा देने पर मामला शांत हुआ. इस आंदोलन में वे खलनायक बनकर उभरे, नतीजा यह हुआ कि उन्हें मंत्री पद गंवाना पड़ा और बाद में वे चुनाव भी हार गये. साल 1967 में एक और छात्र आंदोलन में सीएम रहे केबी सहाय को इस्तीफा देना पड़ा और इन छात्रों को जिगर का टुकड़ा कहने वाली महामाया सिन्हा की सीएम पद पर ताजपोशी हुई. आंदोलन के बाद केवी सहाय चुनाव तक हार गये.

बिहार ने बहुत बलिदान दिया है…

आजादी के लिए भी बिहार ने खूब कुर्बानियाँ दी हैं. भारत छोड़ो का नारा यहीं से शुरू हुआ और पूरे भारत में गूँज उठा. गांधी के नेतृत्व में चंपारण सत्याग्रह ने भी पूरे देश में अपनी छाप छोड़ी. इस तरह बिहार की धरती को आंदोलनों की धरती कहना उचित होगा. बिहार के छात्र, किसान, मजदूर तक ने आंदोलन जब भी किया, उसे देश ने सुना. सत्ता प्रतिष्ठान हिला. चाहे सरकार अंग्रेजों की रही हो या आजादी के बाद अपनों की, बिहार ने धूल सबको चटाई.

अब देखना यह है कि उसी बिहार की धरती से वहीं के सीएम नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की जो शुरुआत की है, वह क्या गुल खिलाएगी? क्या वाकई मोदी सत्ता से दूर होंगे या विपक्ष चुनाव के पहले ही बिखर जाएगा? अगर समूचा विपक्ष एक रहा और चुनाव मिलकर लड़ा तो पीएम पद का दावेदार कौन होगा? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब चुनाव से पहले और चुनाव के बाद तक मिलता रहेगा.

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