मुस्लिम मुल्कों समेत देश में आज मनाया जा रहा ईद-उल-अजहा का त्यौहार….

जानें इसका इतिहास और महत्व...

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Eid al-Adha 2024: मुस्लिम मुल्कों समेत देशभर में आज ईद-उल-अजहा का त्यौहार मनाया जा रहा है. इस पर्व को लेकर मुस्लिम धर्म के लोगों की मान्यता है कि, ईद-उल-अजहा पर बकरे की बली हजरत इब्राहिम की याद में दी जाती है. यही वजह है कि, इस त्यौहार को बकरीद, ईद उल अजहा, ईद उल जुहा, बकरा ईद अथवा ईद उल बकरा आदि कई नामों से जाना जाता है. मुस्लिम धर्म में ईद-उल-अजहा के मौके पर नमाज पढ़ने के अलावा जानवरों की कुर्बानी भी दी जाती है. इस्लाम धर्म के अनुयायी इस कुर्बानी को अल्लाह की रजा मानते है.

कुर्बानी का मुस्लिम धर्म में महत्व

कुर्बानी को मुस्लिम धर्म को बेहद खास बताया गया है, कुरान में कहा गया है कि, अल्लाह ने एक बार हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही थी, जिसके लिए उन्होने हजरत इब्राहिम से कहा गया कि, वह उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दे दे. इस पर हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत ईस्माइल से सबसे अधिक प्रेम था. इसलिए उन्होने अल्लाह की आज्ञा पर अपने बेटे हजरत ईस्माइल की कुर्बानी देने का फैसला किया. वही आपको बता दें कि, यह काम हजरत के लिए बेहद मुश्किल था क्योंकि हजरत इब्राहिम को 80 वर्ष की उम्र में औलाद की प्राप्ति हुई थी और फिर उसकी कुर्बानी देना मुश्किल था. लेकिन हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की आज्ञा मानते हुए बच्चे की कुर्बानी देने का फैसला कर लिया.

इसके बाद हजरत इब्राहिम ने कुर्बानी के लिए अपने बेटे को बैठाया और आंख बंद करके अल्लाह का नाम लेते हुए बेटे के गले पर छूरी चला दी, लेकिन जब उन्होने अपनी आंख खोली तो, जो देखा तो दंग रह गए. उन्होने देखा कि, उनका बेटा सुरक्षित उनके बगल में जिंदा खड़ा है और बलि की स्थान पर एक बकरे की शक्ल वाला कोई जानवर कटा हुआ पड़ा है. इस घटना के बाद से ही अल्लाह की राह में कुर्बानी की शुरूआत हुई.

आज के दिन क्यों दी जाती है कुर्बानी ?

हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ईद-उल-अजहा मनाया जाता है, यही वजह है कि, इस त्यौहार के दिन इस्लाम धर्म के अनुयायी आज कुर्बानी देते हैं. इस्लाम में कुर्बानी सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से की जा सकती है. वही कुर्बानी का गोश्त अपने परिवार को अकेले नहीं रख सकता है, इसके तीन भाग किए जाते है. जिसमें से पहला हिस्सा गरीब का, दूसरा भाग दोस्त और रिश्तेदार का और तीसरा व अंतिम भाग अपने परिवार के लिए रखा जाता है.

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कितने लोग मिलकर देते है कुर्बानी ?

कुर्बानी के लिए जानवरों को चुनने के कई पहलू हैं, बड़े जानवरों, जैसे भैंस, में सात भाग होते हैं, लेकिन छोटे जानवरों, जैसे बकरे, में सिर्फ एक भाग होता है. मतलब साफ है कि भैंस या ऊंट की कुर्बानी में सात लोग शामिल हो सकते हैं. वह सिर्फ एक व्यक्ति के नाम पर करता है, इस्लाम में स्वस्थ जानवरों की ही कुर्बानी जायज मानी जाती है. यदि जानवर को कोई बीमारी या तकलीफ होती है, तो अल्लाह ऐसे जानवर को कुर्बानी देने से मना नहीं करते है.

 

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