कैसे अपने भाई को पछाड़ एशिया में सबसे पैसे वाले बन गए मुकेश
मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी सगे भाई हैं, लेकिन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है और यह अंतर वक्त के साथ-साथ और बड़ा होता जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में इन दोनों भाइयों की संपत्ति में 40 अरब डॉलर (करीब 29 खरब रुपये) का अंतर आ चुका है।
ब्लूमबर्ग में प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर आइए जानते हैं देश के सबसे अमीर घराने के इन दोनों भाइयों के कारोबारी जीवन के उतार-चढ़ाव की कहानी…
मुकेश का डंका
61 वर्ष के मुकेश अंबानी चीन के अलीबाबा ग्रुप के मालिक जैक मा को पछाड़कर एशिया के सबसे धनवान शख्स बन चुके हैं। मुकेश ने रिलायंस जियो लॉन्च कर देश में इंटरनेट क्रांति ला दी, साथ ही उनकी रिलायंस इंडस्ट्रीज लि. भी 100 अरब डॉलर क्लब में शामिल हो गई। ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स के मुताबिक, मुकेश की व्यक्तिगत संपत्ति 43.1 अरब डॉलर (31 खरब रुपये) के पार कर गई है। जैक मा की संपत्ति उनसे 5.2 अरब डॉलर (करीब 4 खरब रुपये) कम है।
मुश्किल में अनिल
वहीं, बड़े भाई मुकेश से महज दो वर्ष छोटे अनिल अंबानी कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। उनका कुछ कारोबार कानूनी और फंड की कमी की समस्या से जूझ रहा है। उनकी कंपनी के शेयर के भाव गिर रहे हैं। ब्लूमबर्ग इंडेक्स के मुताबिक, उनकी व्यक्तिगत संपत्ति 1.5 अरब डॉलर (110 अरब रुपये) कम हो गई है।
16 साल पहले शुरू हुई कहानी
दोनों भाइयों की संपत्ति में अंतर का आगाज 16 साल पहले हुआ, जब उनके पिता धीरूभाई अंबानी बिना वसीयतनामा लिखे स्वर्ग सिधार गए। उनके निधन के बाद मुकेश और अनिल के बीच मतभेद शुरू हो गए, जिसका असर कारोबार पर पड़ने लगा। वर्ष 2005 में मां कोकिलाबने की दखलअंदाजी से दोनों के बीच का विवाद सुलझ पाया। मुकेश के हिस्से ऑइल रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल्स बिजनस आया जबकि अनिल को पावर जेनरेशन और फाइनैंशल सर्विसेज जैसा नया कारोबार दिया गया। साथ ही, टेलिकॉम बिजनस पर भी उन्होंने ही कब्जा जमाया, जिसे मुकेश के अधीन तेज गति से विस्तार मिल चुका था।
दोनों भाइयों की किस्मत
मुकेश ने ही ग्राहकों को बेहद कम कीमत पर मोबाइल हैंडसेट और सिम कनेक्शन साथ-साथ देकर देश में मोबाइल क्रांति ला दी थी। तब वायरलेस डिविजन अनिल के लिए बड़े अवसर का मुहाना खोलता दिख रहा था। वहीं, 2005 में कच्चे तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी थी। यह मुकेश अंबानी के लिए चिंता का सबब थी क्योंकि उनकी रिफाइनरी कंपनियों का मार्जिन घटने का डर था।
शर्त खत्म और प्रतिस्पर्धा शुरू
फिर देश में मोबाइल फोन मार्केट तेजी से बढ़ने लगा। लेकिन, बंटवारे के करार के मुताबिक मुकेश ऐसा कोई बिजनस शुरू नहीं कर सकते थे जिससे छोटे भाई अनिल के किसी बिजनस को टक्कर मिले। हालांकि, दोनों भाइयों के बीच नॉन-कंपीट क्लाउज (प्रतिस्पर्धा नहीं करने की शर्त) 2010 में खत्म हो गई। मुकेश ने तुरंत मोबाइल मार्केट में उतरने का फैसला किया और इसकी तैयारी में अगले सात साल में उन्होंने 2.5 लाख करोड़ रुपये लगा दिए और नई कंपनी रिलायंस जियो इन्फोकॉम के लिए हाई स्पीड 4G वायरलेस नेटवर्क तैयार हो गया।
मुकेश का बड़ा दांव
एक्सपर्ट्स का मानना है कि मुकेश ने मोबाइल नेटवर्क पर बहुत बड़ा दांव खेला था। निवेशकों को पता था कि मुकेश अंबानी मौजूदा बिजनस की आमदनी नई कंपनी में लगा रहे हैं, इसलिए वे अनिश्चतता के दौर से गुजर रहे थे। इसका असर हुआ कि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर रिलायंस के शेयर पिछले दशक की ज्यादातर अवधि में कमजोर ही रही। लॉन्चिंग के दो वर्ष से कुछ पहले ही 2016 में रिलायंस जियो को 22 लाख 70 हजार ग्राहक मिल गए और कंपनी ने मुनाफा कमाने लगी। प्रतिस्पर्धी टेलिकॉम कंपनियां बेहाल हो गईं क्योंकि मुकेश ने महज 99 रुपये का मंथली प्लान लाकर बड़ा प्राइस वॉर छेड़ दिया।
अनिल की स्थिति बिगड़ी
तब तक अनिल की स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि अपनी कुछ कंपनियों के कर्जे उतारने के लिए उन्होंने संपत्तियां बेचनी शुरू कर दी। परिमाण यह हुआ कि उनकी कंपनी के शेयर गिरने लगे। दरअसल, सरकारी बैंक बैड लोन के बोझ तले दब गए, तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कड़ाई कर दी और जिन कंपनियों को बड़े पैमाने पर छूट मिली हुई थी, वे अचानक जमीन सूंघने लगीं।
हर ओर मायूसी का आलम
अनिल की कंपनी रिलायंस नेवल ऐंड इंजिनियरिंग लि. के शेयर में इस वर्ष 75 प्रतिशत की सबसे बड़ी गिरावट आई। अनिल ने इसे 2015 में खरीदी थी। उनकी दूसरी कंपनियां भी कठिनाइयों के दौर से गुजर रही हैं। अनिल अंबानी की एक और डिफेंस कंपनी फ्रांस से किए गए राफेल सौदे को लेकर विवादों में है। वहीं, मुंबई की पहली मेट्रो लाइन तैयार करनेवाली उनकी रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लि. अगस्त में महीने में बॉन्ड पेमेंट से चूक गई। उसे अपनी पावर ट्रांसमिशन ऐसेट्स गौतम अडानी को बेचकर पैसे मिलने की उम्मीद थी। अब अनिल अंबानी की योजना है कि वह अगले वर्ष तक पूरी तरह कर्ज मुक्त हो जाएं।
मुकेश ने बचाई अनिल की इज्जत
अनिल की ग्रुप कंपनियों में एक रिलायंस पावर लि. के शेयर भी रिकवरी नहीं कर पा रहे हैं। इतना ही नहीं, मुनाफे में रही कंपनी रिलायंस कैपिटल लि. के शेयर भी इस वर्ष टूट गए। लेकिन, अनिल के सामने सबसे बड़ी चुनौती बड़े भाई के कारोबर ने खड़ी की। जियो के प्राइस वॉर में अनिल की कभी फ्लैगशिप कंपनी रही रिलायंस कम्यूनिकेशन लि. धराशायी हो गई।
पिछले महीने आरकॉम ने 1 लाख 78 हजार कि.मी. फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क 30 अरब रुपये में बेच दिया। इसे किसी और ने नहीं, बल्कि बड़े भाई मुकेश की कंपनी रिलायंस जियो ने ही खरीदा। अब अनिल मोबाइल फोन बिजनस से पूरी तरह अलग होने की योजना पर आगे बढ़ रहे हैं। इस तरह, दोनों भाइयों की कहानी जियो के हाथों ऑरकॉम की बिक्री तक रुकी है। आगे का अध्याय क्या होगा, इसका इंतजार हमसबको है। NBTसाभार
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