खुद के बलबूते राजस्थान चुनाव में जीते बीएसपी के उम्मीदवार

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राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस बार बीएसपी को 2013 में 3 के मुकाबले इस बार 6 सीटें मिलीं लेकिन राज्य में पार्टी को नया जीवन मिलने के लिए यह नाकाफी है। न सिर्फ सीटें बल्कि 2013 के मुकाबले, बीएसपी का वोट शेयर भी 3.37 फीसदी से 4 फीसदी तक बढ़ गया लेकिन फिर भी यह 2008 के आंकड़ों से कम ही है।

2008 में बीएसपी ने 6 सीटें जीती थीं जबकि वोट शेयर काफी प्रभावी 7.6 फीसदी था। पूर्व सांसद और राजस्थान में बीएसपी इनचार्ज मुनकाद अली ने कहा कि पार्टी ने सीटों के हिसाब से 2008 में प्रदर्शन की बराबरी की है। उन्होंने कहा, ‘हमें और सीटें भी जीतनी चाहिए थीं लेकिन यहां कुछ कमियां थीं जिन्हें हम आने वाले लोकसभा चुनाव में दूर करेंगे। लोकसभा में हम सभी 25 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।’

बता दें कि बीएसपी ने राजस्थान की 199 सीटों में से 189 सीटों में चुनाव लड़ा था। इसमें बीएसपी ने अलवर और भरतपुर जिले में दो-दो सीटें जीतीं जबकि करौली और झुंझुनू से एक-एक सीट जीतने में कामयाब हुई। एक राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र सिंह के अनुसार, ‘बीएसपी की 6 सीटों पर जीत का श्रेय पार्टी के राजनीतिक आधार से ज्यादा उम्मीदवारों के व्यक्तिगत प्रभाव को जाता है।’

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उन्होंने कहा, ‘गौर करने वाली बात यह है कि जीते हुए कुछ उम्मीदवारों ने कांग्रेस और बीजेपी से टिकट न मिलने के बाद बीएसपी का रुख किया था। जबकि कुछ उम्मीदवारों ने 2013 में किरोड़ी लाल मीणा की पार्टी एनपीईपी के टिकट से चुनाव लड़ा था।’ बीएसपी के टिकट से तिजारा से जीतने वाले संदीप कुमार बीजेपी के बागी नेता हैं।

दीप चंद ने इस बार बीएसपी के टिकट से चुनाव लड़ा

वह कांग्रेस के दुरु मियां को हराकर पहली बार विधायक बने हैं। इसी तरह उदयपुरवटी (झुंझुनू) से विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने 2013 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा था। इसके अलावा कांग्रेस के एक और पूर्व नेता दीप चंद ने इस बार बीएसपी के टिकट से चुनाव लड़ा। करौली से लखन सिंह और नागर सीट से वाजिब अली ने 2013 में एनपीईपी के टिकट से चुनाव लड़ा था।

वहीं बीएसपी के पूर्व साथी जोगिंदर सिंह अवाना ने नदबई सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए। तिजारा विधायक संदीप कुमार ने कहा, ‘इस चुनाव में, हमारी पार्टी के सभी विजेताओं का एक व्यक्तिगत वोटर बेस था।’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन पार्टी के काडर ने भी हमें सहयोग दिया। पार्टी का वर्चस्व हर जाति में खासकर अनुसूचित जाति और मुस्लिमों के बीच बढ़ा है।’साभार

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