स्विट्जरलैंड ने छीना भारत से MFN का दर्जा, जानें व्यापार और निवेश पर क्या होगा असर..?

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बिजनेस जगत में भारत को स्विट्जरलैंड ने बड़ा झटका देते हुए उससे मोस्ट-फेवर्ड-नेशन (MFN) का दर्जा छीन लिया है. स्विट्जरलैंड भले ही काफी छोटा देश है लेकिन इंवेस्ट के मामले में वहां से भारत में काफी इवेस्टमेंट आता है और भारत की भी कई सारी कंपनियां है जो स्विट्जरलैंड में काम करती है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट के बाद स्विट्जरलैंड ने यह बड़ा फैसला लिया है और भारत से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि, आखिर इस देश ने सुप्रीम कोर्ट के किस फैसले पर यह फैसला लिया है, साथ ही मोस्ट फेवर्ड नेशन क्या होता है और साथ इस फैसले का हमारे देश अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा….

स्विट्जरलैंड सरकार ने दिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला

स्विट्जरलैंड ने अपने हालिया कदम के संदर्भ में नेस्ले से जुड़े एक मामले में भारत के सुप्रीम कोर्ट के 19 अक्टूबर 2023 के फैसले का उल्लेख किया है. इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि आयकर अधिनियम के तहत अधिसूचना जारी किए बिना दोहरा कराधान बचाव समझौता (DTAA) लागू नहीं किया जा सकता है. DTAA दो या अधिक देशों के बीच एक समझौता है, जिसका उद्देश्य करदाताओं को एक ही आय पर दोहरी कराधान से बचाना है. उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति विदेश में व्यवसाय करता है और उससे हुई कमाई पर दो देशों में कराधान का सामना करता है—पहला, जहां उसका व्यवसाय स्थित है, और दूसरा, जहां वह निवासी है—तो इस स्थिति में DTAA कर राहत प्रदान करता है. इसके तहत करदाता से केवल एक बार कर लिया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का निहितार्थ यह था कि नेस्ले जैसी स्विस कंपनियों को भारत में लाभांश पर अधिक कर देना होगा. नेस्ले और अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने दलील दी थी कि उन्हें DTAA के तहत केवल 5% की कर दर का लाभ मिलना चाहिए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया.

स्विटजरलैंड के इस फैसले से कैसे प्रभावित होगी भारतीय कंपनियां

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, स्विट्जरलैंड ने एक बयान जारी करते हुए भारत और स्विस परिसंघ के बीच दोहरा कराधान बचाव समझौते (DTAA) में सबसे पसंदीदा राष्ट्र (MFN) प्रावधान को निलंबित करने का निर्णय लिया है. इस कदम का सीधा असर स्विट्जरलैंड में काम कर रही भारतीय कंपनियों पर पड़ेगा. रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय कंपनियों को स्विट्जरलैंड में अर्जित आय पर 1 जनवरी 2025 से अधिक कर का भुगतान करना होगा.

MFN दर्जा वापस लेने का अर्थ है कि स्विट्जरलैंड में भारतीय कंपनियों को अब लाभांश पर 10% की दर से कर देना होगा.‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्विट्जरलैंड का यह कदम भारतीय बाजार में स्विस निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. इसके चलते यूरोपीय फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA) के तहत 15 वर्षों में प्रस्तावित 100 अरब डॉलर के निवेश पर भी असर पड़ सकता है. उल्लेखनीय है कि EFTA यूरोप के चार देशों—आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड—का एक क्षेत्रीय व्यापार संगठन और मुक्त व्यापार क्षेत्र है.

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क्या होता है MFN ?

मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) एक विशेष दर्जा है, जिसे व्यापार और टैरिफ से जुड़े सामान्य समझौते (GATT) 1994 के अनुच्छेद 1 के तहत परिभाषित किया गया है. इस प्रावधान के अनुसार, प्रत्येक वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) सदस्य देश के लिए यह आवश्यक है कि वह अन्य सभी सदस्य देशों को MFN का दर्जा प्रदान करे. MFN का दर्जा मिलने का मतलब है कि उस राष्ट्र को आश्वासन दिया जाता है कि उसके साथ व्यापार में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा. WTO के नियमों के तहत, ऐसे दो देश जो MFN के तहत आते हैं, वे एक-दूसरे के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकते है. साथ ही, यदि किसी व्यापारिक साझेदार को कोई विशेष दर्जा दिया जाता है, तो WTO के सभी सदस्य देशों को समान स्तर पर यह दर्जा प्रदान किया जाना चाहिए.

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