काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मामला : अदालत ने खारिज की स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की अपील

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ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वमनाथ मंदिर मामले में जैसे-जैसे अदालत की कार्यवाही आगे बढ़ती जा रही है, पक्षकार बनाने और नए वाद दाखिल करने के मामले सामने आ रहे हैं। इस बीच मामले में पक्षकार बनाने की अपील करने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को सोमवार को अदालत से बड़ा झटका लगा। अदालत में सुनवायी के दौरान स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की याचिका खारिज कर दी गई। सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) आशुतोष तिवारी की अदालत में प्रार्थना पत्र देकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने वादमित्र के रुप में पक्षकार बनाने की पूर्व में अपील की थी।

अदालत ने नहीं मानी वादी की दलील-

इससे पूर्व स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की ओर से अधिवक्ता चंद्रशेखर सेठ ने दलील दी थी कि प्रतिनिधित्व वाद में कोई भी व्य क्ति पक्षकार बन सकता है। वादी (देवता) पक्ष का बेहतर प्रतिनिधित्व हो और भक्तों को जल्द पूजा-पाठ का अधिकार मिले। इसी नीयत से वादमित्र के तौर पर पक्षकार बनाने के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की ओर से प्रार्थना पत्र अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। रामजन्मभूमि मुकदमा मामले में भी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पक्षकार थे और अदालत में उनकी ओर से कई महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत किए गए थे। इसी मामले में सोमवार को अदालत में सुनवायी के दौरान स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की याचिका को वादमित्र के रूप में पक्षकार बनाने की अपील को खारिज कर दिया गया।

साल 1937 में आया था यह फैसला-

काशी विश्वनाथ विवाद में जो मुकदमा अभी चल रहा है उसकी शुरुआत साल 1991 में हुई थी, यानी ये लगभग 30 साल पुराना मुकदमा है। लेकिन ये कानूनी विवाद कई दशक पुराना है। स्वतंत्रता से पहले साल 1936 में भी ये मामला कोर्ट में गया था। तब हिंदू पक्ष नहीं, बल्कि मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की थी। ये याचिका दीन मोहम्मद नाम के एक व्यक्ति ने डाली थी और कोर्ट से मांग की थी कि पूरा ज्ञानवापी परिसर मस्जिद की जमीन घोषित की जाए। इसके बाद साल 1937 में इस पर फैसला आया, जिसमें दीन मोहम्मद के दावे को खारिज कर दिया गया, लेकिन विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई।

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