‘प्राइवेट संस्थानों को जानकारी साझा करने में दिक्कत नहीं तो सरकार के साथ क्यों ?’

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आधार की अनिवार्यता मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि सरकार के साथ निजी जानकारी साझा करने में क्या दिक्कत है? गुरुवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि अगर लोग प्राइवेट संस्थानों को जानकारी दे सकते हैं तो सरकार से ऐतराज क्यों है। बता दें कि इस मामले में बुधवार से सुनवाई चल रही है। बेंच में सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं। बुधवार को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता श्याम दीवान ने बेंच से कहा था कि आधार को अनिवार्य करना नागरिक अधिकारों की हत्या है।

गोपनीयता प्राइवेट संस्थानों से शेयर कर सकते हैं पर सरकार से नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जब आप फोन खरीदने जाते हैं या बीमा कराने जाते हैं तब प्राइवेट संस्था आपका एड्रेस प्रूफ मांगती है। आपको शेयर करने में कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन जब सरकार वही डिटेल मांगती है फिर लोग यह कहते हुए कदम पीछे खींच लेते हैं कि गोपनीय जानकारी सरकार से क्यों साझा करें।’

प्राइवेट बैंक को सैलरी सौंपने में दिक्कत नहीं

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब आप कहीं नौकरी के लिए आवेदन करते हैं, तब सबसे पहले आपका एड्रेस प्रूफ मांगा जाता है और आपकी सैलरी किसी प्राइवेट बैंक को सौंपी जाती है। जस्टिस ए के सिकरी ने याचिकाकर्ता श्याम दीवान से कहा, “आप का कहना है कि अगर मैं अपनी पासबुक देता हूं तो लोगों को मेरे ट्रांजैक्शन के बारे में पता चल जाएगा। लेकिन मैं ऐसा बिलकुल भी नहीं सोचता।” इसके जवाब में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट सरकार से गोपनीयता की सुरक्षा के प्रावधान के बारे में जानकारी मांगेगा।

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घोटालेबाजों पर नहीं लग रहा लगाम

दीवान ने कहा कि आधार कार्ड बनवाना लोगों के लिए अनैच्छिक रूप से अनिवार्य हो गया है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि बायोमीट्र‍िक सिस्टम की वजह से प्राइवेसी पर खतरा मंडरा रहा है। सरकार द्वारा दिए गए एक बयान में यह कहा गया था कि पिछले छह वर्षों में सरकार ने 34,000 ऑपरेटर्स को ब्लैकलिस्ट किया गया था, जो गोपनीयता से छेड़छाड़ कर रहे थे। 2016 में 1,000 ऑपरेटर्स पर लगाम कसी गई, लेकिन 12 सितंबर 2017 की रिपोर्ट्स में यह कहा गया कि 49,000 ऑपरेटर्स को गोपनीयता में धांधली करने के लिए ब्लैकलिस्ट किया गया।

(साभार- न्यूज18 हिंदी)

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