कई असफलताओं के बाद भी खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी

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बिजनेस एक छोटे बच्चे की तरह होता है जिसकी देखभाल अगर अच्छे से नहीं करेंगे तो बच्चों की तरह बिजनेस भी बिगड़ सकता है और आने वाला समय बिजनेस के लिए बुरा साबित हो सकता है। बिजनेस में इसांन को धैर्य रखने की जरुरत होती है क्योंकि जल्दबाजी में किए गए किसी भी काम का परिणाम अच्छा नहीं होता। धैर्य औऱ मेहनत के साथ किया गया काम हमेशा कुछ न कुछ जरुर देता है। अगर हम मेहनत के साथ किए गए काम में सफलता नहीं पाते हैं तो इतना जरुर है कि उस काम से हमें कुछ अनुभव मिलता है।

तमाम असफलताएं भी प्रकाश को डिगा नहीं सकीं

आज हम आप को एक ऐसे इंसान के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने असफलताओं का एक ऐसा दौर देखा है जिसमें उसने करीब दर्जनों असफलता के मंजर को देखा। लेकिन इन असफलताओं ने इस इंसान को झुका नहीं सकीं। एकदिन ऐसा आया कि सफलता को हारकर उनके कदमों में सजदा करना ही पड़ा। आज के समय में वही असफल इंसान करोड़ों का मालिक बना बैठा है।

इंदौर में पिता मोमबत्ती बनाते थे

प्रकाश अग्रवाल मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के रहने वाले हैं इंदौर में ही इनका बचपन गुजरा। बचपन में प्रकाश देखते थे कि उनके पिता दो वक्त की रोटी के लिए किस तरह से पूरे दिन जद्दोजेहद करते थे, तब जाकर कहीं शाम को उनकी थाली में रोटियां आती थीं। उनके पिता मोमबत्ती बनाने का काम करते थे। उनके पिता खुद अपने हाथों से मोमबत्ती बनाते थे ताकि जो बचत हो वो उनके पास ही रहे। मोमबत्ती बनाने के बाद उनके पिता दिल्ली खुद ही बेंचने जाया करते थे। कुछ समय बाद जब हालात सुधरने लगे तो उत्पादन बढ़ाने के लिए मजदूर रकने लगे।

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स्कूल से आकर पिता के काम में हाथ बंटाते थे प्रेम

प्रकाश और उनके भाई भी स्कूल से आकर अपने पिता के काम में हाथ बंटाते थे। प्रकाश जब थोड़ा बड़े हुए तो परिवार की आय को बढ़ाने के लिए कुछ और भी करने का फैसला किया और एक कपड़े की दुकान पर काम करने लगे। लेकिन बाद में प्रकाश को लगा कि इस काम से कुछ होने वाला नहीं है इसलिए काम छोड़ दिया।

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डिटर्जेंट बनाने के काम में भी असफलता मिली

फिर प्रकाश ने डिटर्जेंट बनाने का काम शुरू किया, लेकिन कुछ समय बाद ये बिजनेस भी फ्लॉप हो गया। इस तरह से उन्हें कई बार असफलताओं का सामना करना पड़ा। लेकिन प्रकाश ने हार नहीं मानी और अपनी मुश्किलों से संघर्ष करते रहे। करीब 7-8 बिजनेस कर चुके प्रकाश को किसी में भी सफलता हाथ नहीं लगी। लगातार असफल होने के कारण लोग भी उनका मजाक बनाने लगे, लेकिन प्रकाश ने उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।

पत्नी के साथ मिलकर शुरू किया अगरबत्ती का काम

साल 1991 में उनके एक मित्र ने सलाह दी कि बैंगलोर में तमाम अगरबत्ती बनाने वाली कंपनियां हैं जिनसे वो फ्रेंचाइजी लेकर काम कर सकते हैं। अब प्रकाश के सामने कोशिश करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा था। इसलिए उन्होंने फ्रेंचाइजी लेने के बजाए खुद की कंपनी खोलने का निर्णय लिया और अपनी पत्नी के साथ एक छोटी सी पूंजी से अपने घर के गैराज में ही अगरबत्ती बनाने का काम शुरु कर दिया।

2 करोड़ रोज बनती हैं अगरबत्तियां

प्रकाश ने अपनी कंपनी का नाम जेड-ब्लैक रखा। यहीं से प्रकाश की जिंदगी में एक ऐसा बदलाव आया कि उनकी किस्मत का पहिया इतनी तेजी से दौड़ने लगा कि उसके बाद कबी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज के समय में प्रकाश की कंपनी में प्रतिदिन 2 करोड़ अगरबत्तियां बनती हैं और भारत का दूसरा सबसे बड़ा ब्रांड बन गया है। इनकी कंपनी में इस समय 1 हजार लोग काम करते हैं जिनमें से अधिकतर महिलाएं हैं।

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