40 कंपनियों से रिजेक्टेड एक इंजीनियर की कहानी
कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद सभी नवयुवकों की आंखों में दुनिया में छा जाने के सपने होते हैं और इसी के साथ ही अपना भविष्य संवारने की उम्मीदें लिए निकल पड़ते हैं। जिसमें कुछ देश की प्रतिष्ठित कंपनियों में नौकरी करेंगे तो कुछ अपना खुद का बिजनेस करके देश की अर्थव्यव्था को सुधारने की कोशिश करेंगे।
जब हम कॉलेज की दुनिया से सच्चाई के धरातल पर पांव रखते हैं तब पता चलता है कि हकीकत क्या है। तब समझ में आता है कि दुनिया में छा जाना और इसे बदलना इतना आसान नहीं होता। कुछ ऐसी ही कहानी है मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुके सुशांत झा की।
40 कंपनियों ने कर दिया रिजेक्ट
सुशांत कॉलेज कू पढ़ाई पूरी करने के बाद निकल पड़े शहरों की गलियों में नौकरी ढूंढने के लिए। लेकिन सुशांत को नौकरी ढूंढने में जो संघर्ष करना पड़ा वो आसान नहीं था। सुशांत बताते हैं इसके पीछे एक कमजोरी थी कि उनके ऊपर के होंठ कटे हुए थे। जिसकी वजह से वो बोलने में तोड़ा सहज महसूस करते थे। जिसकी वजह से उन्हें कई कंपनियों ने रिजेक्ट कर दिया।
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ग्रेजुएट सुशांत ने सोचा हो सकता है कि वो पोस्ट ग्रेजुएट हो जाएं तो स्थितियां बदल जाएं। इसी सोच के साथ ही उन्होंने एमबीए करने की सोची और दाखिला ले लिया। लेकिन स्थितियां तब भी नहीं बदलीं। सुशांत बताते हैं कि उन्होंने करीब 40 कंपनियों में इंटरव्यू दिया लेकिन सभी ने एक ही जवाब दिया।
सब जगह से मिली निराशा
अब ऐसे में सुशांत के सामने कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। दो साल गुजर चुके थे। एक मध्यमवर्गीय परिवार से नाता रखने वाले सुशांत के सपने बड़े नहीं थे, वो केवल एक छोटी-मोटी नौकरी चाहते थे जिससे वो अपने परिवार का गुजारा कर सकें। चारों तरफ से मिली निराशा के बाद उन्होंने खुद का बिजनेस करने का निर्णय किया।
खुद का बिजनेस करने का प्लान
सुशांत का किताबों से हमेशा से लगाव था। इसी लगाव ने सुशांत के मन में एक विचार जागृत किया। सुशांत ने अपने भाई के साथ मिलकर एक बिजनेस प्लान बनाया। सुशांत का बिजनेस प्लान ये था कि अक्सर वो देखते हैं कि इंजीनियरिंग के दिनों में स्टूडेंट अपनी किताबों को सेमेस्टर या दूसरे सेमेस्टर के बाद रद्दी के भाव बेंच देते हैं, तो क्यों न इन रद्दी किताबों से ही बिजनेस शुरू किया जाए।
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बोधि ट्री नॉलेज की शुरूआत
दोनों भाइयों ने इसी आइडिया के साथ पढ़ेगा इंडिया पढ़ेगा इनिशिएटिव के तहत साल 2014 में बोधि ट्री नॉलेज नाम से एक कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया। सुशांत ने अपना काम दिल्ली से शुरू किया। जिसमें उन्होंने महंगी किताबों सेकेंड हैंड सस्ते दामों में मिलने लगीं। धीरे-धीरे उन्होंने कागज के कम उपयोग करने पर भी लोगों को जागरुक करने की सोटी। जिसके बाद उन्होंने एक वेबसाइट भी लांच किया, जिसका नाम उन्होंने ग्रीन काउंट रखा।
यह ग्रीन काउंट जैसे ही पुरानी किताब खरीदी जाती थी या बदला जाता था। सभी ग्रीन काउंट 10 किलो कागज के बचत के बराबर होती थी। साथ ही किताबों की पैकिंग के समय ये ध्यान दिया जाता था कि पैकिंग में किसी कागज का इस्तेमाल न हो। इसकी शुरूआत भी इन लोगों ने जीरो इंवेस्टमेंट के साथ शुरू की। इस काम के लिए शुरू में उन्होंने आसपास के बुक स्टॉल से संपर्क किया।
ग्राहक किताबों का मूल्य तबतक नहीं देता था जब तक वो किताबों की क्वालिटी से संतुष्ट नहीं हो जाता था। फिलहाल पढ़ेगा इंडिया इनिशिएटिव अभी दिल्ली और एनसीआर में ही चल रहा है लेकिन आने वाले समय में वो बेंगलुरू में खोलने का प्लान बना रहे हैं।
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