गरीब बच्चों की जिंदगी रौशन कर रहे ‘साइकिल गुरु’
जरुरी नहीं होता है कि आपके पास जब अथाह पैसे हों तभी आप किसी गरीब की मदद कर सकते हैं या फिर समाज के लिए कुछ ऐसा करें जिससे समाज आगे बढ़े। अगर आप इस देश और समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो बस सिर्फ उस काम करने के लिए जुनून होना चाहिए, उस रास्ते पर चलने का हौसला होना चाहिए रास्ते आपने आप बनते चले जाएंगें। कुछ ऐसी ही कहानी है हमारे आज के हीरो की, जिसने खुद के परिवार के छूट जाने के गम लिए हुए समाज में शिक्षा की अलख जगाने का काम कर रहे हैं। समाज को बदलने की चाहत दिल में लिए नौनिहालों की जिंदगी संवार रहे हैं।
आदित्य ने 20 साल पहले शुरू किया था अभियान
हम बात कर रहे हैं आदित्य कुमार की जो अपनी जिंदगी के करीब 20 साल देश के बच्चों को शिक्षित करने में लगा दिए। आप को बता दें कि जब आदित्य कुमार(Aditya Kumar) ने देश के गरीब बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की लौ जलाने की सोची तो उन्हें शायद पता नहीं था कि इस काम में उनका परिवार पीछे छूट जाएगा। लेकिन आदित्य ने बिना किसी की परवाह किए अपने रास्ते पर निकल पड़े।
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परिवार छूट गया पीछे
इस राह पर चलते हुए आदित्य ने रास्ते में अपने मां-बाप भाई सब रिश्तों को खत्म कर दिया। लेकिन समाज के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत के आगे उनके लिए ये रिश्ते भी छोटे पड़ गए। लेकिन आज वही परिवार आदित्य(Aditya Kumar) के इस नेक काम पर गर्व कर रहे है। आपको जानकर हैरानी होगी कि एक इंसान जिसने भारत के गरीब नौनिहालो का भविष्य उज्ज्वल करने के लिए जो अभियान चलाया वो भारत के उन्नत भविष्य का निर्माण कर रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली प्रसिद्धि
आज आदित्य का ना लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ,गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्ड सहित 21 बार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दर्ज हो चुका है। आदित्य को आज पूरी दुनिया साइकिल गुरु के नाम से जानती है। फर्रुखाबाद के सलेमपुर गांव में जन्में आदित्य(Aditya Kumar) एक मजदूर परिवार से संबंध रखते हैं। बचपन में आदित्य ने गरीबी का वो दौर देखा जिसने शिक्षा के प्रति उनके दिल में एस ऐसी आस्था पैदा कर दी कि बस उन्होंने सोच लिया कि किसी गरीब बच्चे को पैसे की वजह से अशिक्षित नहीं रहना पड़ेगा।
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1995 में शुरू किया अभियान
आदित्य ने साल 1995 में अकेले ही गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए निकल पड़े। ट्यूशन पढ़ा-पढ़ा कर उन्होंने पैसे जोड़े और फिर उसी पैसे से उन्होंने झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को पढ़ाने लगे। आपको बता दें कि इसकी शुरूआत उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चारबाग स्टेशन से की। आदित्य के इस नेक इरादों से लोग जुड़ते गए और सहयोग देने लगे। देखते ही देखते इनके इस अभियान ने एक बड़ा रुप ले लिया। आदित्य(Aditya Kumar) कहते हैं कि आज उनके पढ़ाए बच्चे ऊंची-ऊंची पोस्ट पर पहुंच गए हैं और वो भी अब उनका सहयोग करने लगे हैं।
‘आओ भारत को साक्षर बनाएं’ का दिया नारा
12 जनवरी 2015 को महज जेब में 500 रुपए का नोट लेकर ‘आओ भारत को साक्षर बनाएं’ के नारे के साथ साइकिल यात्रा पर निकले आदित्य(Aditya Kumar) आज बड़ी-बड़ी टीमें बना रहे ताकि गांव और शहर में शिक्षा की रौशनी पहुंचा सकें। आदित्य के इस अभियान के लिए यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।
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