भारत में पत्रकारिता की शुरुआत
भारत में पत्रकारिता की शुरुआत 1780 में हुई जब प्रथम मुद्रित अंग्रेजी समाचार ‘कलकत्ता जेनरल एडवरटाइजर’ का प्रकाशन आरम्भ हुआ। इस पत्र की शुरुआत जेम्स ऑगस्टस हिक्की नाम के अंग्रेज ने की थी और उसी के नाम से इसका नाम ‘हिक्की गजट’ पड़ गया। 1780 से 1818 तक भारतीय पत्रकारिता पर केवल अंग्रेज ही छाये रहे और इस अवधि में जितने पत्र निकले वे सभी अंग्रेजी में ही थे।
समाचार पत्रों का इतिहास
भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों का इतिहास 1818 से प्रारम्भ होता है। भारतीय भाषाओं के पत्रों में निकले ‘दिग्दर्शन’ और ‘समाचार दर्पण’। ये दोनों बंगला समाचार पत्र थे। ‘दिग्दर्शन’ मासिक था जबकि ‘समाचार दर्पण’ साप्ताहिक। बांग्ला के बाद गुजराती भाषा की शुरुआत हुई। पहला गुजराती पत्र ‘बंबई समाज’ था जो 1823 में प्रकाशित हुआ। हिन्दी का प्रथम पत्र 1826 में निकला जिसका नाम ‘उदन्म मार्तण्ड’ था। मराठी का पहला पत्र ‘बम्बई दर्पण’ 1832 में निकला। भारत में फारसी-पत्रकारिता की शुरुआत 1818 में हुई थी। बताया जाता है कि बंगला साप्ताहिक ‘समाचार दर्पण’ का एक फारसी संस्करण भी इसी के साथ निकला था।
नये अध्याय की शुरुआत
स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय पत्रकारिता जनता के प्रति उत्तरदायित्व की भावना को लेकर नये युग में प्रवेश करती है। जनता और शासक के बीच विरोध खत्म हुआ। इससे सरकार और प्रेस के सम्बन्धों का नया अध्याय शुरू हुआ। 1956 में राज्य पुर्नगठन कमीशन की रिपोर्ट के बाद प्रादेशिक भाषा-भाषी पत्रों की संख्या और प्रभाव में भी अभिवृद्धि हुई। विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में अमृत बाजार पत्रिता, मलयालम मनोरमा, महाराष्ट्र टाइम्स, प्रजावाणी, तांती, हिंद समाचार आदि उत्कृष्ट कोटि के पत्र प्रकाशित हो रहे थे।
समाचार पत्रों ने ली खुली हवा में सांस
आजादी की लड़ाई के अंतिम चरण में खासतौर पर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय प्रेस इमरजेंसी अधिनियम तथा युद्धकालीन आदेशों के अंतर्गत राष्ट्रीय समाचार पत्रों को बुरी तरह कुचला गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय समाचार पत्रों ने खुली हवा में सांस ली। तब से भारतीय पत्रकारिता में अबाध गति से उन्नति हुई है। प्रारम्भ में विकास की धारा विच्छिन्न थी। कई कठोर नियम उस समय उठा लिए गये थे। कागज आरम्भ से उपलब्ध होने लगे थे। मगर इस प्रगति के बाद भी यह स्पष्ट था कि प्रेस का पूरा प्रभाव जम नहीं पाया था, क्योंकि वर्षों तक उसकी व्यवहारिक क्षमताएं तथा तकनीकी उपलब्धियां विकसित नहीं हो पाई थीं।
जांच समिति की नियुक्ति
1952-54 में बने प्रेस कमीशन द्वारा छोटे समाचार-पत्रों की जांच समिति भी नियुक्त की गई। प्रेस कमीशन की रिपोर्ट प्रत्येक भारतीय पत्रकार के लिए धर्मग्रन्थ की तरह महत्वपूर्ण सिद्ध हुई। उसमें भारतीय प्रेस के अनेक पहलुओं पर विचार किया गया। छोटे पत्रों की जांच समिति ने 1966 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 1972 में भारतीय समाचार पत्रों की अर्थ व्यवस्था के सभी व्यवस्था के सभी तथ्यों की जांच करने के लिए एक और समिति गठित की गई। उसने सात मार्च 1975 को संसद में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
प्रेस कमीशन के सुझाव
प्रेस कमीशन के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जी0 एस0 राजाध्यक्ष थे। प्रथम कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये। उसमें मुख्य यह थे कि भारतीय प्रेस अनेक स्वामित्वाधिकारों के अंतर्गत विकसित हो। प्रेस रजिस्ट्रार की नियुक्ति की जाए, जो भारतीय समाचार पत्रों के कामों का सर्वेक्षण करे। तथा एक प्रेस कौंसिल की नियुक्ति की जाए। कुल मिलाकर कमीशन के सुझाव एक स्वास्थ्य प्रेस के विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने गये।
अखबारी कागज की कमी
प्रेस कमीशन और छोटे पत्रों की जांच समिति ने प्रशंसनीय कार्यों के बाद भी भारतीय प्रेस सहमे से थे। अखबारी कागज की कमी ने प्रेस के विकास में बड़ा अवरोध उत्पन्न किया। हालांकि इधर कागज अधिक प्राप्त होने के कारण यह स्थिति कुछ भी हो गई थी।