अंतर्राष्ट्रीय फ्रेंडशिप-डे पर खास, जाने द्वापर युग के सच्चे मित्र की कहानी

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दोस्ती का रिश्ता वास्तव में बहुत ही खास होता है. इसी खास रिश्ते को और भी खास बनाने के लिए हर साल 30 जुलाई के दिन कई सारे देशों में अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस यानी International Friendship Day के रूप में मनाया जाता है. यह दिन जीवन में दोस्तों के महत्वों को याद करने के लिए मनाया जाता है. दोस्ती के रिश्ते को और भी मजबूत करने पर फोकस देता है. दोस्त एक-दूसरे को याद करते हैं. ऐसे आज एक सच्चे दोस्त के बारे में जानेंगे ,जिन्होंने मित्रता की सही परिकल्पना अपने जीवन में अपनाई और लोगों के लिए सच्ची मित्रता का उदाहरण दिया.

कृष्ण और सुदामा की मित्रता 

दोस्ती का रिश्ता दुनिया में सबसे खूबसूत माना जाता है. इस रिश्ते की कहानी द्वापर युग से चलती आ रही है. इस युग में कृष्ण और सुदामा की मित्रता एक मिसाल है, जिसे लोग आज भी याद करते हैं. दूसरी ओर जब भी इनकी दोस्ती की चर्चा होती है तो एक अलग भाव मन में पैदा हो जाता है. जब कृष्ण बचपन में ऋषि संदीपन के आश्रम शिक्षा ग्रहण करने पहुंचे थे तभी उनकी दोस्ती सुदामा से हुई थी. वहां कृष्ण एक राजपरिवार से तो सुदामा एक ब्राह्मण परिवार से थे. शिक्षा के दौरान दोनों की मित्रता हुई. जिसकी गुणगान पूरी दुनिया आज भी करती है.

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शिक्षा पूरी करने के बाद द्वारिकाधीश बने कृष्ण

गुरुकुल आश्रम से शिक्षा ग्रहण करने के बाद कृष्ण और सुदामा अपने घर चले गए. इसके बाद सुदामा वेद का पाठ करने लगे और भिक्षा मांगकर जीवन जीने लगे. वहीं, कृष्ण राजनीतिज्ञ के द्वारा द्वारिकाधीश बन गए और प्रजा की सेवा करने लगे.

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कृष्ण से मिलने पहुंचे सुदामा

सुदामा भिक्षा लेते थे लेकिन उनको अपने मित्र की याद भी आया करती थी. बचपन के दिनों में ही कृष्ण ने सुदामा को वचन देते हुए कहा था कि मित्र जब भी तुम संकट में खुद को पाओ मुझे याद करना और मैं जरूर अपनी मित्रता निभाऊंगा. एक दिन सुदाम अपने मित्र से मिलने द्वारिका पहुंच गए. सुदामा का नाम सुनते ही कृष्ण दौड़कर राजद्वार पर पहुंचे . उन्होंने अपने बचपन के मित्र को गले लगाया और महल में आने का अनुरोध किया. राजा को फटेहाल गरीब आदमी को गले लगाते देख सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए.

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कृष्ण के व्यवहार से मित्र हुआ भावुक

मित्र को भिक्षुक के रूप में देखकर कृष्ण रो पड़े. सुदामा के साथ ईश्वरीय व्यवहार करने के लिए अपने हाथों से उनके पैर धोए. कृष्ण ने अपनी दासियों से कहा कि वे सुदामा के सभी फटे हुए कपड़े उतार दें और उन्हें शाही कपड़े पहना दें ताकि उन्हें अधिक आराम महसूस हो. उधर सुदामा अपने मित्र कृष्ण द्वारा ऐसा अप्रत्याशित शाही व्यवहार देखकर रोने लगे.

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भेंट के बदले दी दो लोक की संपत्ति

घोर गरीबी में जीवन जी रहे सुदामा ने अपनी पत्नी से पूछा कि क्या वह अपने मित्र से मिलने पर उसे उपहार के रूप में कुछ दे सकते हैं. वह द्वारका ले जाने के लिए उनके लिए चार मुट्ठी चावल ले आई, जिसे सुदामा ने मित्र कृष्ण को भेट किया. इस चावल को बड़े ही प्रेम-भाव और सम्मान के साथ कृष्ण ने खाया. इस भेंट के बदले कृष्ण ने सुदामा के लाए हुए दो मुट्ठी चावल खाकर, उन्हें दो लोक की संपत्ति दे दी.

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