कभी उसकी पेशी में गायब हो जाते थे गवाह, अपनी ही गवाही की गुहार लगाते मर गया मुख्तार अंसारी
गैंगवॉर का दशक, लंबी कद-काठी और मूंछों पर ताव के साथ अचूक निशानेबाज़ माफिया डॉन मुख्तार अंसारी समेत उसका शरीर मिट्टी में मिल चुका है . ऐसे में जब भी बात दुर्दांत अपराधियों के कहानियों की हो तब एक समय था जब उत्तरप्रदेश के अंडरवर्ल्ड के सिग्नल मुख्तार अंसारी के घर “बड़े फाटक” ग़ाज़ीपुर से निकलते थे. बड़े भाई का राजनैतिक करिअर और छोटे भाई की ताकत ने ग़ाज़ीपुर और मऊ में ही नहीं बल्कि प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक में अंसारी परिवार के वर्चस्व को कायम रखने में मदद की है.
यूथ आइकान कैसे बना दुर्दांत अपराधी
लंबी चौड़ी पर्सनैलिटी और शूटिंग चैम्पियन रहे लंबू नाम से चर्चित मुख्तार ने धीरे-धीरे अपराध जगत में अपने जवानी के दिनों से ही पैर पसारने शुरू कर दिए थे. देखते-ही-देखते पता ही नहीं चला की एक यूथ आइकान कब औरे कैसे दबंग से प्रदेश का दुर्दांत अपराधी बन गया.
क्रांतिकारियों के घर हुआ था जन्म
1963 में ग़ाज़ीपुर के यूसुफपुर मोहम्मदाबाद में मुख्तार का हुआ था जन्म. क्रांतिकारी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ.मुख्तार अहमद अंसारी का पोता था मुख्तार अंसारी. उसका घर आजादी की लड़ाई लड़ रहे नेताओं की शरणस्थली थी. लेकिन अपनी जवानी लांगते ही मुख्तार अंसारी ने उस घर को बना दिया अपराधियों का पनागाह. हालांकि इसपर यकीन कर पाना बेहद कठिन होगा कि जिसके दादा ब्रिटिश हुकूमत में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हो, जिसके पिता ग़ाज़ीपुर में कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे हो, यही नहीं मुख्तार के नाना महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान रहे हो, उसी घर मे पैदा हुआ और जन्मा पूर्वांचाल का सबसे खूंखार अपराधी मुख्तार अंसारी. शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि मुख्तार अंसारी रसुकदारों की बिगड़ी हुई औलाद थी.
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बुलेटप्रूफ गाड़ियां, फोन और बंदूक का शौकीन था मुख्तार
मुख्तार अंसारी के शौक इतने बड़े थे जिसकी कोई पूछ न हो. 90 के दशक में मुख्तार अंसारी बुलेटप्रूफ गाड़ियों से चला करता था. कालेज के जमाने में निशानेबाज रहा मुख्तार अंसारी शार्प शूटर था. उसके लिए कहा जाता है कि हवा में उड़ने वाले परिंदे को पलक झपकते ही वह मार सकता था. ऐसे में उसके असलहों के शौक उसकी कहानियों मे और जान डाल देते हैं. मुख्तार अंसारी कुछ ऐसा शौकीन था जिसके पास सैकड़ों की संख्या में गनर थे, लेकिन अपनी ही शौक का मुरीद मुख्तार खुद अपने हाथ में लेटेस्ट राइफल लेकर चलता था. आमतौर पर एक बाहुबली अपने साथ पिस्टल लेकर चलता है क्योंकि वह छोटी होती है और उसे छुपाया जा सकता है, लेकिन मुख्तार का बाहुबल और उसकी दबंगई ने इन सब व्याख्या पर पूर्ण-विराम लगा दिया था. वह हमेशा अपने साथ अपनी खुद की अत्याधुनिक राइफल लेकर चला करता था.
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‘फाटक’: क्रांतिकारियों से लेकर अपराधियों तक का घर
ग़ाज़ीपुर के यूसुफपुर मोहम्मदाबाद इलाके में “फाटक” के नाम से जानने जानी वाली हवेली की कहानी कई मोड़ से होकर आती है. कभी यह क्रांतिकारियों की शरणस्थली हुआ करती थी, लेकिन ‘फाटक’ की यह छवि मात्र कुछ ही सालों की रही. मुख्तार ने जैसे-जैसे होश संभाला वैसे-वैसे अपराध की क्रूर दुनिया में उसके परिवेश के साए ने पूर्वांचल में उसे बाहुबली बना दिया. यह वही फाटक हैं जिसमे कभी क्रांतिकारियों का जन्म हुआ था. मुख्तार के दादा मुख्तार अहमद अंसारी ब्रिटिश राज में कांग्रेस के प्रेसीडेंट थे. वहीं मुख्तार के पिता सुभानुल्लाह अंसारी ग़ाज़ीपुर में कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेता थे. ऐसा मानने में मुश्किल होगा कि देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं के घर पैदा हुआ था अपराध जगत का सबसे खूंखार अपराधी मुख्तार अंसारी.
MAS aka मुख्तार अतिक और शहबुद्दीन
मुख्तार अंसारी की मौत से आखिरकार उत्तरप्रदेश में बाहुबलियों की यह तिकड़ी अब खत्म हो चुकी है. मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद की मौत एक साल के भीतर ही हो गई है. अतीक और उसके भाई अशरफ को प्रेस के सामने ही अज्ञात लड़कों ने गोली मार दी थी, वहीं सरकारी बुलेटिन के अनुसार मुख्तार की मौत हार्ट अटैक से हुई. दूसरी इस तिकड़ी के तीसरे बाहुबली मोहम्मद शहबुद्दीन की मौत कोरोना संक्रमण से 1 मई 2021 में दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में हो गई थी. ऐसा भी कहा जाता है कि इन तीनों ने क्राइम की दुनिया को अपनी निजी जागीर बना ली थी. विवादास्पद तरीके से इन तीनों की मौत अस्पताल परिसर में ही हुई. बिहार के शाहबुद्दीन, पूर्वांचल से मुख्तार और अतीक के आतंक का अब अंत हो चुका है.
मुख्तार के शौक ऐसे कि आम आदमी सोच न सके
मुख्तार अंसारी रसूखदारों के परिवार से आता था. लंबा कद, मूछों पर ताव और सत्ता के साथ ने उसे बड़ा बनने मे बहुत मदद की. व्याख्या ग़ाज़ीपुर जेल की है. मुख्तार मछली खाने का शौकीन था. ग़ाज़ीपुर जेल मे अपनी सज़ा काट रहे मुख्तार ने अपने इस शौक को पूरा करने के लिए जेल में ही प्राइवेट तालाब खुदवाया जिससे वह ताजी मछलिया खा सकें. इतना ही नहीं मुख्तार अंसारी को मुर्गे लड़वाने का शौक था, बेहद हट्टे-कट्टे मुर्गे वो अपने घर में पाला करता था और अपने मनोरंजन के लिए उन्हें लड़वाता था. यह सब ऐसे किस्से हैं, जिससे पता चलता है कि मुख्तार के शौक उसकी दबंगई के साथ उसे कैसे लोगों के बीच एक आईकान बनने में मदद करते रहें.
राजनीतिक संरक्षण से बनता चल गया मसीहा
बनारस के काशी हिंदू विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में अपनी पैठ जमाए मुख्तार ने 1996 में बहुजन समझ पार्टी के टिकट पर मऊ विधानसभा सीट से विधायक बना. अब धीरे-धीरे मुख्तार माफिया डॉन से ‘माननीय’ बनता चल गया. 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों में उसने निर्दलीय चुनाव जीता. लगातार 5 बार के विधायक मुख्तार ने 2017 में मऊ विधानसभा सीट अपने बेटें अब्बास अंसारी के लिए छोड़ी. इसके बाद अब्बास अंसारी मऊ की सीट से सुहेलदेव भारतीय समाज समाज पार्टी के बैनर तले चुनाव जीतकर विधायक बना.
बदला इतिहास, गवाही के लिए तरसता मर गया मुख्तार
अंसारी एक ऐसा माफिया डॉन था जिसके केस में अक्सर करके गवाह गायब हो जाते थे. साल 2002 के दौरान मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह के बीच अदावत चल रही थी. उस समय वर्चस्व की लड़ाई इन दोनों के बीच बेहद खतरनाक थी. मोहम्मदबाद से कुछ दूर पर एक ट्रक में कुछ बदमाश रोड पर निगाह टिकाए बैठे थे. उन्हें जानकारी मिली थी कि मुख्तार अंसारी मऊ के लिए निकला है. मुख्तार का काफिला हमलावरों के नजदीक पहुंचता है और गोलियां बरसनी शुरू हो जाती है. इस मुठभेड़ मे 3 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें मुख्तार के दो गनर और बृजेश सिंह का शार्प शूटर मनोज राय भी शामिल था. इसी मुठभेड़ की व्याख्या ‘उसरी चट्टी’ कांड के नाम से जानी जाती है.
इस मामले में मुख्तार ने बृजेश सिंह खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था, इस कांड का एकमात्र चश्मदीद मुख्तार अंसारी था, जिसकी गवाही के लिए वह गुहार लगाता रह गया लेकिन बिना गवाही दिए उसकी मौत हो गई. मुख्तार के मामले में यह कोई नई बात नहीं है, ऐसा कई बार हुआ है कि मुख्तार के खिलाफ किसी की गवाही होने वाली होती थी और गवाह या तो हॉस्टाइल हो जाए या उसकी संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो जाती थी. कुछ ऐसा ही इस मुख्तार के साथ हुआ था क्योंकि उसरी चट्टी कांड का चश्मदीद सिर्फ मुख्तार अंसारी ही था.
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