अपनी, पराई समस्याओं से जूझता दक्षेस

0

आपसी वैमनस्यता, आंतरिक समस्याओं से संघर्ष, अभी भी विकासशील जमात में शामिल होने की जद्दोजहद का ही पर्याय है दक्षेस। इसके सदस्य देशों के अनेक सम्मेलनों में कई समस्याओं के समाधानों पर चर्चा होती आई है और रास्ते भी खोजे गए, मगर समस्याएं आज भी वैसी की वैसी नहीं, बल्कि पहले से ज्यादा विकराल रूप ले चुका है।

बाहरी समस्याओं से लड़ाई तो दूर की बात है

सार्क बनाम दक्षेस देशों, यानी दक्षिण एशिया सहयोग संगठन के सामने है और इन देशों का विकास भी विकसित देशों के मुकाबिल बरसों पीछे है, जबकि इन सार्क देशों की आंतरिक समस्याएं ही इतनी ज्यादा हैं कि बाहरी समस्याओं से लड़ाई तो दूर की बात है।

भारत में आंतरिक समस्याओं का मुद्दा सबसे अहम है

दक्षेस सदस्य 8 देशों की आंतरिक समस्याओं में बेरोजगारी, कृषि, पर्यावरण, स्वास्थ्य, सहित अनेक समस्याएं हैं, जिनसे आज भारत जैसे देश भी जूझ रहे हैं, कहने का मतलब यह कि विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहे भारत में आंतरिक समस्याओं का मुद्दा सबसे अहम है।

also read : भाजपाई तत्वों के ‘सात खून माफ’ : मायावती

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का दारोमदार कृषि पर निर्भर होता है, मगर इस मामले में दक्षेस के सभी सदस्य पिछड़े हुए हैं। इन सदस्य देशों में भारत का कृषि आयात लगभग 30 से 40 प्रतिशत है, वहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान सहित अन्य देशों का आयात लगभग 60 फीसदी माना जाता है। कृषि समस्या का सबसे बड़ा कारण जहां प्राकृतिक विपदा है वहीं मानवीय कारण भी कई हैं।

देशों में ये संख्या लगभग 55 से 75 फीसदी है

दक्षेस के आठों सदस्य देशों में रोजगार की समस्या का आकलन बेहद पेचीदा इसलिए कहा जा सकता है कि जहां भारत जैसे देश में बेरोजगारों की संख्या लगभग 55 से 60 प्रतिशत है तो पाकिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका,अफगानिस्तान आदि देशों में ये संख्या लगभग 55 से 75 फीसदी है।

अशिक्षित बेरोजगारों की संख्या 25 प्रतिशत के लगभग

भारत में आर्थिक विकास दर आठ फीसदी कही जाने के बावजूद बेरोजगारों की संख्या आबादी का लगभग 60 प्रतिशत है। इनमें शिक्षित बेरोजगारों की संख्या लगभग 35 प्रतिशत है तो वही अशिक्षित बेरोजगारों की संख्या 25 प्रतिशत के लगभग।

स्वास्थ्य की समस्या ने जनजीवन को प्रभावित कर रखा है

पर्यावरण और स्वास्थ्य : दक्षेस के आठ सदस्य देशों में पर्यावरण और स्वास्थ्य की समस्याएं अन्य एशियाई देशों के मुकाबिल कहीं ज्यादा कही जा सकती है। इसका सबसे बड़ा कारण है पर्यावरण प्रदूषण में लगातार इजाफा। भारत जैसे मजबूत देश से लेकर विकास के मामले में काफी पिछड़े अन्य सात देशों में भी पर्यावरण और स्वास्थ्य की समस्या ने जनजीवन को प्रभावित कर रखा है।

अफगानिस्तान में लगभग 70 प्रतिशत बताई जाती है

प्रदूषण के मामले में जहां भारत में प्रदूषण का खतरा लगभग 40 प्रतिशत के लगभग है वहीं बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका, भूटान और पाकिस्तान में यह मात्रा लगभग 60 से 70 प्रतिशत के लगभग मानी जाती है। स्वास्थ्य के मामले में भी भारत में कुपोषित और बीमार लोगों की संख्या आबादी का लगभग 55-60 प्रतिशत है, वहीं इसी मुद्दे पर पाकिस्तान में यह संख्या लगभग 70 प्रतिशत, बांग्लादेश में 60, नेपाल में 45, श्रीलंका में 40, मालदीव में लगभग 30, अफगानिस्तान में लगभग 70 प्रतिशत बताई जाती है।

जैसे कि हड़ताल, तोड़फोड़, आतंक वगैरह

दक्षेस देशों की आबादी के विकास के लिए हो रहे इन देशों के आंतरिक प्रयत्नों पर कभी प्राकृतिक विपदाएं पानी फेर देती हैं, तो कभी मानवीय कारणों से विकास में बाधा आ जाती है। जैसे कि हड़ताल, तोड़फोड़, आतंक वगैरह।

100-250 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होता है

प्राकृतिक रूप से जूझने के कारण बांग्लादेश को जहां हर वर्ष लगभग 100-250 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होता है, वहीं नेपाल को लगभग 125-150 करोड़, अफगानिस्तान लगभग 300 करोड़, भारत 250 करोड़, पाकिस्तान 150 करोड़, मालदीव 50-75 करोड़, भूटान 125 करोड़ रुपये के लगभग नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़ता है।

also read : नासा इंसानों को फिर से चांद पर भेजेगा : पेंस

आपसी टकराव कहने को तो ये सारे सदस्य देश दक्षेस के सदस्य हैं, लेकिन इनकी सीमावर्ती लड़ाइयां बरसों से जारी है। पंचशील के सिद्धांत पर चल रहे भारत के सीमावर्ती देश पाकिस्तान की भारत के साथ आतंकवादी लड़ाई तो जगजाहिर है। साथ ही बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका जैसे कुछ देश भी इस कबड्डी में ताल ठोकने लगे हैं।

भारत को कुछ विशिष्ट समस्याओं का सामना करना पड़ता है

पड़ोसी राष्ट्रों से संबंध निभाने में भारत को कुछ विशिष्ट समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनमें सबसे प्रमुख है राष्ट्रीय-पहचान की समस्या। सार्क पिछले 15 वर्षों से भी अधिक समय से अस्तित्व में है, लेकिन इसका रिकॉर्ड बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहा है। 1985-88 की अवधि में क्षेत्रीय संगठन में विश्वास बना रहा। यद्यपि आईपीए तुलनात्मक रूप से बाह्य क्षेत्रों तक ही सीमित था, इसे सदस्यों ने बहुत गंभीरतापूर्वक लिया। लेकिन 1989 के पश्चात इस संगठन के प्रयासों के प्रति सदस्यों में पहले जैसा उत्साह नहीं रहा है।

देशों की बनिस्बत कम यानी लगभग 40 प्रतिशत है

आपसी टकराव के कारण पाकिस्तान और बांग्लादेश के बजट का लगभग 75 प्रतिशत रक्षा संसाधनों पर खर्च होने लगा है। इस मामले में भारत का रक्षा बजट भी दूर नहीं किया जा सकता यद्यपि, इसका प्रतिशत इन देशों की बनिस्बत कम यानी लगभग 40 प्रतिशत है।

also read : गुमराह कर रही ‘हनीप्रीत’ : हरियाणा पुलिस

1977-80 की अवधि में पड़ोसी देशों की राजकीय यात्रा कर रहे थे

उत्पत्ति एवं विकास : यद्यपि दक्षिण एशिया विश्व का एक प्रमुख क्षेत्र है, लंबे समय तक यहां किसी बहु-सरकारी सहयोग संगठन का अस्तित्व नहीं था। क्षेत्र के लोगों के सामूहिक कल्याण के लिये एक संगठन स्थापित करने का विचार सबसे पहले बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान ने उस समय प्रस्तुत किया जब वे 1977-80 की अवधि में पड़ोसी देशों की राजकीय यात्रा कर रहे थे।

नई दिल्ली  में एक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन हुआ

नवंबर 1980 में बांग्लादेश ने दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग विषय पर एक दस्तावेज तैयार किया और उसे दक्षिण एशियाई देशों में वितरित किया। 1981 और 1988 के मध्य सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए परिचालन एवं संस्थागत संपर्क गठित करने के लिए विदेश सचिव स्तर पर कई बहुपक्षीय बैठकें हुईं। 1983 में नई दिल्ली (भारत) में एक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन के फलस्वरूप दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग समिति का गठन हुआ और एकीकृत कार्यक्रम योजना की शुरुआत हुई।

also read : बिहार के विश्वविद्यालय में भगवान गणेश बने परीक्षार्थी!

एकीकृत कार्यक्रम योजना के अंतर्गत सदस्य देशों के बीच निम्नांकित क्षेत्रों में सहयोग स्थापित करने पर सहमति हुई- कृषि, संचार, शिक्षा, संस्कृति एवं खेल, पर्यावरण और मौसम विज्ञान आदि।

विकसित देशों का स्वार्थसिद्धि का रूप होता है

इन समस्याओं की वजह से ही दक्षिण एशिया के ये विकासशील कहे जाने वाले देशों के सार्क सम्मेलन अनेक मुद्दों को लेकर सामने आते हैं, मगर इनके सम्मेलन में उठे मुद्दे कुछ ही दिनों में हाशिये पर आ जाते हैं। विकसित देशों द्वारा मिलने वाली सशर्त और गैर शर्त दोनों प्रकार की सहायता का अपरोक्ष रूप विकसित देशों का स्वार्थसिद्धि का रूप होता है।

आपसी वैमनस्यता आदि के कारण पिछड़े हुए हैं

मदद के नाम पर विकसित देशों से दक्षेस देशों को मिलने वाली आर्थिक, तकनीकी आदि प्रकार की सहायता की बदौलत दक्षिण एशियाई देशों का आयात जहां लगभग 50 फीसदी होता है, वहीं निर्यात लगभग 10-15 फीसदी के लगभग और यही कारण है कि दक्षेस के ये सदस्य देश आज भी विभिन्न आंतरिक समस्याओं, आपसी वैमनस्यता आदि के कारण पिछड़े हुए हैं।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More