दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है ये दूसरे विश्वयुद्ध का सिपाही

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एक तरफ देश में सैनिकों को लेकर बड़ी-बड़ी देशभक्ति की बातें की जा रही हैं देशभक्ति के नाम पर कुछ लोग सियासत की रोटियां सेंक रहे हैं। कुछ लोग देशभक्ति के नाम पर ऐसे लोगों को उपदेश देने में जुटे हैं कि उनके अलावा इस देश का कोई भला नहीं कर सकता है। वहीं दूसरी तरफ एक सैनिक मुफलिसी में जीने को मजबूर है। लेकिन कोई भी इस सैनिक की सुनने वाला नहीं हैं।

यूपी के बांदा जिले के तिंदवारी थाना क्षेत्र में जौहरपुर गांव जो कि यमुना के किनारे है, यहां आज भी दूसरे विश्‍वयुद्ध का एक फौजी गोपाल सिंह दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। फौजी की उम्र करीब 125 वर्ष बताई जा रही है। यह फौजी ब्रिटिश इंडियन आर्मी में अंग्रेजी सेना का टैंकर चलाया करता था।

सवा सौ साल की लंबी उम्र वाले इस सैनिक के छह बेटों में से तीन अब इस दुनिया में नहीं हैं, जबकि अन्य तीन दूसरे के खेतों में मेहनत-मजदूरी का काम करते हुए अपने जीवन की गाड़ी चला रहे हैं। संपत्ति के नाम पर इनके पास एक टूटी-फूटी झोपड़ी है जिसमें ना खाने का सामान है और ना पहनने को ठीक-ठाक कपड़े।

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तन्हाई और गुमशुदगी में जिंदगी काट रहे इस फौजी को इलाके में मेजर के नाम से जाना जाता है। हालांकि गोपाल सिंह का कहना है कि वो अंग्रेजों के शासनकाल में होते हुए भी भारत के लिए लड़े। उन्होंने कहा कि सरकार से पहले कुछ मदद मिल भी जाती थी लेकिन अब कोई भी मदद नहीं मिल रही है।
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