अस्तित्व के संकट से जूझ रही काशी की नदियां
भगवान शिव की नगरी वाराणसी में 5 नदियां हैं जिनमे से 3 नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। नाद, असि और वरुणा की स्थिति बेहद दयनीय है तथा गंगा और आदि गंगा गोमती ही कुछ हद तक स्वस्थ कही जा सकती है।
वरुणा+असि= वाराणसी। भगवान विष्णु के दाहिने चरण से पापमोचनी असि और बाएं चरण से वरुणा निकलीं हैं। इन्हीं दोनों नदियों के नाम पर दुनिया की प्राचीनतम नगरी वाराणसी बसी है लेकिन ‘वरुणा’ जहां भारी संकट से जूझ रही है, वहीं नदी सुधार की योजना के बहाने ‘असि’ को मृतप्राय बना दिया गया है।
पद्यपुराणांतर्गत काशी महात्म्य में कहा गया है…
“वाराणसीति विख्यातां तन्मान निगदामि व: दक्षिणोत्तरयोर्नघोर्वरणासिश्च पूर्वत,
जाह्नवी पश्चिमेऽत्रापि पाशपाणिर्गणेश्वर:।।”
(अर्थात् दक्षिण-उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी है, पूर्व में जाह्नवी (गंगा) और पश्चिम में पाशपाणिगणेश।)
दुर्भाग्य से आज ‘असि’ अपने वजूद को खो चुकी है और एक दुर्गन्ध युक्त नाले में परिवर्तित हो गई है। पौराणिक ग्रंथो की एक जीवंत नदी को सरकारी दस्तावेजों में नाला बना दी गई है। अतिक्रमण कर्ताओं, प्रदूषण कर्ताओं और भूमाफियाओं के दबाव में प्रशासन ने भी अपनी आंखे मूंद ली हैं। उन्हें ‘असि’ की कराह सुनाई नही दे रही है।
नदी से नाले में तब्दील ‘असि’
‘असि’ नदी का गंगा में संगम उस स्थान पर होता था जहां आज नया अस्सी घाट बना हुआ है वहीं समीप में असिसंगमेश्वर महादेव का मंदिर आज भी विद्यमान है किन्तु विकास के दौर में सरकारी और सुविधा सम्पन्न लोगों के प्रभाव में असि की धारा को मोड़ कर उसे नाले के रूप में गंगा में दूसरे स्थान से मिलाया गया।
ग्राम कन्दवा स्थित कर्मदेश्वर महादेव विभिन्न गावों और कालोनियों जैसे कंचनपुर ताल, काशीपुर, चित्ईपूर, सुन्दरपुर, इंद्रानगर, आदित्य नगर, कौशलेश नगर, साकेत नगर, रविन्द्र पूरी, अस्सी होते हुए प्रायः असि विलुप्त हो गई हैं।
कई स्थान में 2 फीट की पाइप से गुजर रही हैं, नदी के प्रवाह क्षेत्र में कई मंजिले भवन खड़े हो गए हैं, जिनका सीवर सीधे असि में प्रवाहित किया जा रहा है, असि नदी पर स्थित पुलों के किनारे कूड़ा मिटटी पाट कर अवैध कब्जे किये जा चुके हैं, इन पर नियंत्रण करने वाले विभाग वाराणसी नगर निगम, विकास प्राधिकरण, जल निगम, सिंचाई विभाग एवं जिला प्रशासन की अकर्मण्यता से आज यह नदी अपने अंतिम सांस गिन रही है।
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ इंग्लैंड के विद्वान जेम्स प्रिन्सेप ने तत्कालीन बनारस के कई मानचित्र बनाये थे जिनमे उन्होंने वरुणा और असि को नदी ही बताया था। किन्तु असि को कागजों में कब नाला बना दिया गया यह बताने वाला आज कोई नहीं है।
‘वरुणा’ में बढ़ रही प्रदूषण
वहीं दूसरी तरफ वरुणा रामेश्वर के बाद जैसे जैसे शहर की ओर बढती हैं उसमे कूड़ा कचरा डालने का सिलसिला बढ़ता ही जाता है। कुछ दिन पूर्व तक कचहरी-नदेसर पुल, नक्की घाट, सरैया पुल आदि से खुले आम कूड़ा और गंदगी प्रवाहित किया जा रहा था। कैन्टोमेंट क्षेत्र के होटलों और गाड़ियों के कारखानों, सर्विस सेंटर आदि से सीधे प्रदूषित जल आज भी वरुणा में प्रवाहित किया जा रहा है।
कचहरी के निकट कुरैशी बस्ती में स्लाटर हाउस से निकला जानवरों के रक्त, मांस, चमड़ा युक्त कचरा सीधे खुले गटर के माध्यम से स्टेट बैक के पीछे से वरुणा में डाला जा रहा है, पूजा पाठ और अन्य धार्मिक कर्मकाण्डो के अवशेष भी प्लास्टिक की पन्नियों में वरुणा में लगातार डाले जा रहे हैं, वरुणा के किनारे रहने वाले परिवारों में शादी व्याह होने पर थर्मोकोल के दोना-पत्तल आदि भी नदी में डाल दिए जा रहे हैं। इस नदी का जलीय जीवन लगभग समाप्त हो चुका है।
बिना ‘असि’ और ‘वरुणा’ के किसे कहेंगे काशी
असि और वरुणा के संरक्षण के लिए विभिन्न सामाजिक सगठनों एवं जागरूक लोगों द्वारा समय-समय पर मांग ठाठ जन अभियान चलाये गये हैं, साझा संस्कृति मंच, असि नदी मुक्ति अभियान जैसे अनेक संगठनों द्वारा विगत वर्षों में कई अभियान चलाया गया।
असि चेतना पद यात्रा, जल ही जीवन है चेतना यात्रा, असि-वरुणा बचाओ हस्ताक्षर अभियान, पुराने पुल और राजघाट में वरुणा तट पर कूड़ा डम्पिंग के विरोध में सत्याग्रह, नदियों के संरक्षण हेतु जन भागीदारी के लिए अनेक गोष्ठियां और सेमिनार, मानव श्रृंखला आदि कार्यक्रम संचालित किये गये। सभी शासकीय स्तरों पर ज्ञापन और पत्रक भी भेजे गये है जिसके सुखद परिणाम अब धीरे-धीरे दिखाई देने लगे हैं।
यह अत्यंत ही संतोषजंक बात है कि लगातार जन दबाव के कारण वरुणा नदी के कायाकल्प की योजना आज धरातल पर दिखने लगी है। कोई अवरोध नही हुआ तो अतिक्रमण और प्रदूषण मुक्त वरुणा को देखने का काशीवासियों का सपना शायद पूर्ण हो जाए।
पुनर्जीवन के सुझाव
इन दोनों नदियों के नाम पर ही वाराणसी का नामांकरण हुआ है अतः इन दोनों नदियों को संरक्षित किया जाए।
वरुणा और असि में किसी भी प्रकार का प्रदूषण करने से रोका जाए।
इन दोनों नदियों को पूरी तरह अतिक्रमण मुक्त किया जाए। प्रवाह क्षेत्र में स्थित सारे अवरोध समाप्त किए जाए।
असि नदी के उद्गम स्रोत तक लिफ्ट पम्प से गंगा का पानी पहुंचा कर इसे सदानीरा बनाकर पुनर्जीवित किया जाए।
इन दोनों नदियों पर पड़ने वाले पुलों पर जाली लगा कर कूड़ा फेकने से रोका जाए।
‘असि’ और ‘वरुणा’ नदियों के गंगा में संगम स्थल को सुसज्जित और आकर्षक किया जाए।
इन दोनों नदियों के किनारे हरित पट्टी विकसित की जाय और ‘पाथवे’ और पार्क बनाएं जायं .
स्लाटर हॉउस से निकलने वाले कचरे तथा मांस, मछली, मुर्गा आदि के व्यवसाय से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को खाद बनाने के लिए छोटी छोटी इकाइयों में भेजा जाए।
वाराणसी शहर में निजी और सरकारी भवनों में वाटर रिचार्जिंग की इकाइयों की अनिवार्य रूप से स्थापना और उनका सही ढंग से कार्यरत होना सुनिश्चित किया जाए। जिससे भूगर्भजल का स्तर और नीचे न जाए।
सरकारी प्रयास के साथ आम नागरिक को भी इन नदियों के पुनर्जीवन के लिए सक्रिय और सकारात्मक प्रयास करना होगा।