सात समुंदर पार से गंगा में अठखेलियां करने काशी पहुंचे साइबेरियन पक्षी
कई दशकों से सर्दियों के मौसम में आनेवाले विदेशी मेहमान साइबेरियन पक्षियों के काशी पहुंचने का सिलसिला शुरू हो चुका है. जैसे-जैसे ठंड बढेगी इन मेहमानों की संख्या बढ़ती जाएगी. गंगा की लहरों पर कलरव करते यह साइबेरियन पक्षी घाट पर आनेवाले या गंगा की नावों से सैर करनेवालों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं. सैलानियों को यह नजारा आकर्षित करता है।
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इस बार देर से आये विदेशी मेहमान
हालांकि इन विदेशी मेहमानों के आने का सिलसिला तो नवम्बर से ही शुरू हो चुका था. लेकिन अब यह ज्यादा संख्या में गंगा में कभी उड़ान भरते तो कभी अठखेलियां करते दिखाई दे रहे हैं. वैसे साइबेरियन पक्षी अक्टूबर में गंगा किनारे घोसला बना लेते हैं, लेकिन इस बार उनका देर से आना हुआ. यह प्रवासी पक्षी गंगा किनारे अपना ठिकाना बनाते हैं।
ब्रेड और नमकीन से ज्यादा दिन नही जी पाते यह परिंदे
बीएचयू के विज्ञान संकाय की पूर्व प्रमुख और पक्षियों पर शोध करनेवाली प्रो. चंदना हलधर बताती हैं कि सात समुंदर पार से परिंदे जिस रास्ते से आते हैं, उसी रास्ते को जाने के लिए भी चुनते हैं। ठहरने का स्थान पहले ही तय होता है. तय स्थान पर वह हर साल रुकते हैं. इन प्रवासी पक्षियों का मुख्य भोजन मछली है. मगर, मैदानी इलाकों में वे मनुष्य के नजदीक आते हैं तो उन्हें ब्रेड या नमकीन दिया जाता है. इन्हें खाने से उन्हें डायरिया हो जाता है और इसके कारण वह ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाते. प्रो. हलधर ने बताया कि इनके साथ रहने और समय बिताने का आनंद लेना चाहिए. लेकिन इन्हें ऐसी चीजे खिलाने से बचना चाहिए जो उनके जीवन के लिए खतरा बनती है.
जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते हैं ठिकाना
उन्होंने बताया कि पृथ्वी के ध्रुवों व मध्य अक्षांशों के इलाकों के बीच मौसम व जलवायु में बहुत अधिक अंतर देखने को मिलता है. इस अंतर के कारण उत्तरी ध्रुव के पास रहने वाले पक्षी ज्यादा सर्दी पड़ने पर अपना ठिकाना बदल लेते हैं और ऐसे इलाकों की ओर रूख कर लेते हैं जहां उनके अनुकूल मौसम होता है. यह भारत में मैदानी नदी व झीलों के पास ठिकाना बनाते हैं.
चार माह बाद बच्चों को लेकर उड़ जाते है अपने देश
यूक्रेन व रूस के मध्य साइबेरिया में ही ये पक्षी पाए जाते हैं. सर्दियों के अपने अनूकुल मौसम में प्रजनन के लिए ठिकाना बदलते हैं. खासतौर से वाराणसी में बड़ी संख्या में यह पक्षी पहुंचते हैं. यहां चार महीने रहकर वह अंडे देते है. यहां सर्दी का मौसम जब खत्म होता रहता है तबतक इनके बच्चे उड़ने योग्य हो जाते हैं. फिर यह मेहमान अपने बच्चों के साथ अपने देश लौट जाते हैं.