बाबा बूढ़ेश्वर में नाग-नागिन करते हैं शिव का श्रृंगार
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के प्रचीन बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर में ‘नागेंद्र हराय त्रिलोचनाय, भस्मांगरागाय महेश्वराय’ श्लोक का सजीव रूप सोमवार संध्या को पट खुलते ही देखा गया। सबसे अद्भुत नजारा उदयपुर से पहुंचे सफेद नाग का रहा।
नाग-नागिन करते हैं बाबा का श्रृंगार
बूढ़ेश्वर के गर्भगृह नागों के 10 जोड़ें, जो अपने इष्टदेव के इर्द-गिर्द फुंफकारते, लहराते हुए भक्ति में लीन दिखे। कुंडली मारकर शिवलिंग पर बैठे नागों ने बूढ़ेश्वर का साक्षात श्रृंगार किया। बूढ़ापारा स्थित बूढ़ेश्वर महादेव का श्रृंगार करने प्रतिवर्ष नाग-नागिन के जोड़े यहां पहुंचते हैं। इस बार उदयपुर से सफेद नाग स्वयं श्रृंगार करने पहुंचे थे। कुल 21 नाग-नागिन बूढ़ेश्वर के दरबार के रत्न बने। बूढ़ेश्वर महादेव को सोमवार को नीलकंठ का स्वरूप दिया गया था।
11 हजार पंचमुखी रूद्राक्ष से रुद्राभिषेक
मुख्य शिवलिंग के ठीक पीछे शिव-पार्वती की प्रतिमा सावन के झूले में विराजमान थी। गर्भगृह को रजनीगंधी और गुलाल के फूलों से सजाया गया। बूढ़ेश्वर महादेव को सवा मन फलों का भोग लगाया गया, 51 किलोग्राम मिष्ठान का भोग शामिल था। शिव को प्रिय 1,100 फलों का भोग लगाया गया। वहीं 11 हजार पंचमुखी रूद्राक्ष से अभिषेक किया गया। सभी का वितरण भक्तों के बीच प्रसाद के स्वरूप किया गया।
मंदिर के प्रभारी ट्रस्टी राजकुमार व्यास ने बताया, “सावन के प्रति सोमवार बूढ़ेश्वर महादेव का अलग-अलग थीम पर श्रृंगार किया जाता है। इस बार नाग-नागिन के जोड़ों से श्रृंगार हुआ। जैसे सभी देवी-देवताओं को आभूषण पहनाया जाता है, ठीक वैसे ही भोलेनाथ को सर्प बहुत प्रिय है।”
उन्होंने कहा, “सर्प का आभूषण और हार बूढ़ेश्वर महादेव को पहनाया गया। गर्भगृह को फूलों की सेज से सजाया गया। अलसुबह पांच बजे रामेश्वरम की भस्म से बूढ़ेश्वर की भस्म आरती हुई। फिर दोपहर 12 बजे तक भक्तों के लिए दर्शनार्थ पट खुले रहे। 12 बजे राजभोग लगाकर पट श्रृंगार के लिए बंद हुए। संध्या 4 बजे पट श्रृंगार दर्शन का लाभ देने खोले गए।”
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व्यास ने बताया कि रात्रि आठ बजे आरती हुई। रात्रि भजन का आयोजन राहुल एंड ग्रुप करेगा। रात्रि 11 बजे से तीन बजे तक बूढ़ेश्वर का अभिषेक होगा। उन्होंने कहा, “सर्पो के श्रृंगार के लिए गर्भगृह में विशेष व्यवस्था की गई थी। गर्भगृह के सभी द्वारों पर तीन एमएम की एक्रीलिट सीट लगाकर बंद किया गया था, ताकि हवा भी अंदर नहीं जा सके। गर्भगृह के पानी निकासी नलियों को भी टाइल्स और कपड़ों को बंद किया गया।”
नाग-नागिन की देखरेख करने के लिए दो सपेरे गर्भगृह में ही रहे। इस दृश्य को देखकर भक्त बस एकटक ही बूढ़ेश्वर महादेव के श्रृंगार को निहारते रहे। नाग जब स्वमेव कुंडली मारे बूढ़ेश्वर महादेव के शिवलिंग पर बैठे तो इस अदभुत नजारे को देखते ही बनता है।
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