Gyanvapi की परिक्रमा नही कर सके शंकराचार्य, पुलिस ने किया नजरबंद
शंकराचार्य के परिक्रमा की घोषणा से प्रशासन के हाथ-पांव फूले, उन्हें मनाने मठ पहुंचे तीन अधिकारी
वाराणसी में सोमवार को ज्ञानवापी की परिक्रमा करने जा रहे ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को पुलिस प्रशासन ने धारा 144 को हवाला देकर मठ में ही नजरबंद कर दिया. इस दौरान शंकराचार्य, उनके शिष्यों से पुलिस अधिकारियों की तीखी बहस हुई. तमाम कोशिशों के बावजूद शंकरचार्य परिक्रमा करने नही जा सके.
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गौरतलब है कि ज्ञानवापी-शृंगार गौरी विवाद का मामला न्यायालय में विचाराधीन है. कोर्ट के आदेश पर पिछले दिनों एएसआई ने वैज्ञानिक विधि से परिसर का सर्वे किया था. उसकी रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत हुई और उसके कुछ अंश को सार्वजनिक भी कर दिया गया. न्यायिक प्रकिया के दौरान कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर को सील कर दिया है. तहखाना को डीएम की सुपूर्दगी में दिया गया है. इसी बीच सोमवार को शंकरचार्य ने दोपहर तीन बजे सोनारपुरा स्थित श्रीविद्या मठ से निकलकर ज्ञानवापी (मूल विश्वनाथ) के परिक्रमा की घोषणा कर दी. इसके बाद प्रशासन के हाथ-पांव फूलने लगे. सुबह सात बजे से ही प्रशासनिक हलचल तेज हो गई. भारी फोर्स ने श्रीविद्या मठ को घेर लिया और तीन अधिकारी शंकराचार्य को मनाने पहुंच गये. उधर, ज्ञानवापी के आसपास भी फोर्स बढ़ा दी गई. अधिकारियों का कहना था कि कोर्ट में मुकदमा चल रहा है और ज्ञानवापी परिसर को सील किया गया है. इसलिए वह स्थिति को समझते हुए परिक्रमा न करें. लेकिन शंकराचार्य नही माने. शंकराचार्य ने सोनारपुरा, मदनपुरा, गोदौलिया होते हुए गेट नम्बर चार से ज्ञानवापी पहुंचने की घोषणा की थी लेकिन उन्हें मठ से बाहर ही नही निकलने दिया गया.
रात ही लखनऊ से मठ लौटे थे शंकराचार्य
शंकराचार्य के मीडिया प्रभारी ने बताया कि स्वामी अविमुक्तश्वरानंद शनिवार की रात लखनऊ से सड़क मार्ग से वाराणसी आए. राजघाट उतरकर जलमार्ग से केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ पहुंचे. यहां सबसे पहले गो माता का दर्शन कर गोग्रास खिलाया. इस दौरान मठवासियों ने चरण पादुका पूजन-वंदन व आरती उतारी.
एसीपी दशाश्वमेध ने किया अनुरोध
दशाश्वमेध एसीपी अवधेश पाण्डेय ने कहा कि स्वामी जी से बातचीत की गई. उनसे अनुरोध किया गया है कि अभी न्यायालय का आदेश नहीं है. संवेदनशीलता बनी हुई है और धारा 144 भी लागू है. ऐसे में विश्वनाथ जी का दर्शन पूजन ही करें. मूल विश्वनाथ की परिक्रमा का फैसला टाल दें.