शनि जयंती : सूर्य ने पुत्र मानने से किया इनकार, शिव ने बना दिया शनि देव को न्याय का देवता

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लखनऊ : ज्योतिष शास्त्र में नौग्रहों में से एक भगवान शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन हुआ था। इसलिए इस दिन शनिदेव जयंती मनाई जाती है। शनि देव को न्याय का देवता बताया गया है। शास्त्रों में बताया गया है कि शनि देव व्यक्ति को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। यही कारण कि शनि देव को प्रसन्न रखने के लिए पूजा-पाठ और उपाय करते हैं। लेकिन शनि देव की पूजा के लिए सबसे उपयोगी दिन शनि जयंती को माना जाता है।

19 मई को मनाई जाएगी शनि जयंती

पंचांग के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन शनि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 19 मई 2023 के दिन शनिदेव जयंती मनायी जाएगी। इस विशेष दिन को शनि जन्मोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिषाचार्य मनोज थपलियाल बताते हैं कि शनि जयंती के दिन तीन अत्यंत शुभ संयोग का निर्माण हो रहा है। इस दिन तीन बहुत लाभकारी राजयोग का संयोग रहेगा।

शनि जयंति के दिन इन कार्यो को करने से बचें

ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि शनि जयंती के दिन शनि का प्रभाव बढ़ जाता है। ऐसे में व्यक्ति को कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे शनि देव क्रोधित हो जाएं। शनि जयंती के दिन लोहे का सामान ना खरीदें, इस अशुभ माना जाता है। साथ ही इस दिन व्यक्ति को तामसिक भोजन का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से शनि देव नाराज हो सकते हैं। शनि जयंती के दिन व्यक्ति को वाद-विवाद और झूठ बोलने से बचना चाहिए। ऐसा करने से शनि देव नाराज हो सकते हैं।

शनि जयंती पर ऐसे करें शनिदेव को प्रसन्न

शनि जयंती के दिन एक कटोरी में सरसों का तेल डालें और उस तेल में अपनी परछाई देखें। फिर उस तेल को शनि देव को चढ़ा दें। ऐसा करने से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है। इस दिन अपना मन साफ रखें और नकारात्मक विचार उत्पन्न ना दें। ऐसा करने से शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

शनि देव भगवान सूर्य और छाया के पुत्र हैं। ज्योतिष में शनि देव को सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना गया है। सूर्य पुत्र शनिदेव अत्यंत क्रोधित स्वाभाव के देवता माने जाते हैं। मनुष्यों के साथ-साथ देवी-देवता भी शनिदेव के नाम से थर-थर कांपते हैं। शनिदेव को कर्म फलदाता व न्याय का देवता भी कहा जाता है। इसके पीछे शनिदेव की पौराणिक जन्मकथा प्रासंगिक है।

शनिदेव की जन्म कथा

शिंगणापुर में हुआ था शनिदेव का जन्म

सूर्य पुत्र शनिदेव की जन्म कथा पौराणिक है। कहा जाता है कि उनका जन्म सौराष्ट्र के शिंगणापुर में हुआ था। वह कश्यप ऋषि के कुल के थे। उनके पिता सूर्यदेव और माता का सुवर्णा है। स्कंदपुराण के अनुसार सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ था। संज्ञा से उन्हें मनु और यम नाम के पुत्र हुए और यमुना नाम की एक पुत्री का जन्म हुआ। संज्ञा सूर्यदेव के तेज से परेशान थीं। इससे बचने के लिए उन्हें एक युक्ति सूझी। उन्होंने अपनी परछाई यानी छाया सुवर्णा को अपने पति के पास छोड़ दिया और खुद अपने पिता के घर आ गईं।

मां के तप से काले जन्मे थे शनिदेव

दूसरी ओर संज्ञा की छाया सुवर्णा भी गर्भवती हुईं और मनु, शनि और भद्रा को जन्म दिया। जब शनिदेव गर्भ में थे तब सुवर्णा भगवान शिव की कठोर तपस्या कर रही थीं। कई दिनों तक उन्होंने अन्न और जल नहीं ग्रहण किया। तेज गर्मी में भूखी और प्यासी रहते हुए सुवर्णा शिव की आराधना कर रही थीं। इसका असर उनके गर्भ में पल रही संतान पड़ा और शनिदेव का रंग काला पड़ गया।

पिता से रूठकर की तपस्या, बन गए न्याय के देवता

जब शनि का जन्म हुआ तो उनके पिता सूर्यदेव ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इससे रूठकर शनिदेव भगवान शिव की तपस्या में लग गए। एक दिन शिवजी शनि की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि मनुष्य से लेकर देवता तक उनके नाम से थर-थर कापेंगे। इंसानों को अपने कर्मों का फल उनकी अनुमति से ही मिलेगा। इसी वरदान की बदौलत शनिदेव नवग्रह में से एक बन गए।

 

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