दुनियाभर में छाया आर्थिक मंदी का संकट? जानें कब-कब किन कारणों से आई आर्थिक मंदी
पिछले कई समय से आर्थिक मंदी की चर्चा किसी न किसी रूप में हो रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले कई बड़े निजी संस्थान चालू वित्त वर्ष में अमेरिका सहित कई देशों के मंदी की चपेट में आने की घोषणा कर चुके हैं. अब तो विश्व बैंक ने भी कह दिया है वर्ष 2023 में पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी आ सकती है. मंदी-मंदी के इस शोर के बीच यह जानना जरूरी है कि आखिर यह है क्या? वैश्विक आर्थिक मंदी कब-कब आई और इसने क्या असर डाला?
कब आती है मंदी-
-जब किसी अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी ग्रोथ घटती है, तो उसे तकनीकी रूप में मंदी का नाम देते हैं.
-आसान शब्दों में कहें तो अर्थव्यवस्था जब बढ़ने की बजाय गिरने लगे, और ये लगातार कई तिमाहियों तक होती रहे, तब देश में आर्थिक मंदी की स्थिति बनने लगती है.
-इस स्थिति में महंगाई और बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ती है, लोगों की आमदनी कम होने लगती है, शेयर बाज़ार में लगातार गिरावट दर्ज की जाती है.
– देश की जीडीपी (किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू ) के आंकड़े ही बताते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था फल-फूल रही है या मंदी के बादल मंडराने लगे हैं.
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अगर हम पिछले 100 सालों की बात करें तो, इस पुरे समयकाल में 5 बार आर्थिक गेरे के संकट में आ चुका है. हर बार आर्थिक संकट के कारण व प्रभाव अलग-अलग थे.
कब-कब आई आर्थिक मंदी…
-1929-39 की महामंदी (द ग्रेट डिप्रेशन)- 1929 में शुरू हुई और 1939 तक चली मंदी को महामंदी (द ग्रेट डिप्रेशन) के नाम से पुकारा जाता है. 1929 के ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ की शुरुआत अमेरिकी शेयर बाजारों में भारी गिरावट आने से हुई थी. जोकि देखते-देखते पूरी दुनिया को अपने चंगुल में ले लिया। खास बात ये रही की इसका असर रूस ( उस समय के सोवियत संघ) पर नहीं पड़ा. इस मंदी का कहर ऐसा रहा की पूरी दुनिया को इससे उभरने में कई साल लग गए.
-1975 की आर्थिक मंदी- 1973 के अरब-इस्राएल युद्ध में इस्राएल का समर्थन करने की सजा के तौर पर तेल उत्पादन करने वाले देशों के संगठन ओपेक ने अमेरिका समेत कुछ देशों को तेल देने पर प्रतिबंध लगा दिया. इससे तेल की कीमत 300 प्रतिशत बढ़ गई. भारत भी इससे बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ. 1972-73 में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट-0.3 रही. अमेरिका सहित दुनिया के 7 बड़े औद्योगिक देशों में महंगाई बहुत बढ़ गई.
-साल 1980 में आई मंदी की वजह बनी ईरानी क्रांति. ईरानी क्रांति के कारण दुनिया भर में तेल उत्पादन को बड़ा झटका लगा. तेल आयात की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई. भारत का तेल आयात का बिल भी क़रीब दोगुना हो गया और भारत के निर्यात में आठ फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई. साल 1979-80 में भारत का जीडीपी ग्रोथ -5.2 फीसदी रहा.
-यह आर्थिक संकट 1990-91 में हुए खाड़ी युद्ध के बाद आया. हालांकि, इसके लिए केवल युद्ध ही जिम्मेदार नहीं था. अमेरिकी बैंकों की बुरी हालत और स्कैंडिनेवियन देशों की चरमराई बैंकिंग व्यवस्था ने भी दुनिया को आर्थिक संकट में झोंकने में अहम योगदान दिया. भारत पर इसका बहुत बुरा असर हुआ था. 1991 में भारत के आर्थिक संकट में फंसने की सबसे बड़ी वजह भुगतान संकट था. देश का व्यापार संतुलन गड़बड़ा चुका था. सरकार बड़े राजकोषीय घाटे पर चल रही थी. भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार मुश्किल से तीन सप्ताह के आयात लायक बचा था. सरकार कर्ज चुकाने में असमर्थ हो रही थी. विश्व बैंक और आईएमएफ ने भी अपनी सहायता रोक दी. सरकार को भुगतान पर चूक से बचने के लिए देश के सोने को गिरवी रखना पड़ा.
-‘द ग्रेट डिप्रेशन’ के बाद दुनिया का सबसे बुरा आर्थिक संकट था. इसकी शुरुआत अमेरिका के प्रॉपर्टी बाजार से हुई थी. अमेरिकी प्रॉपर्टी बाजार का बुलबुला फूटा तो उसने अमेरिका के बैंकिंग सिस्टम और शेयर बाजार की चूलें हिला दीं. अमेरिका में आया यह संकट जल्द ही दुनिया के अधिकतर देशों तक पहुंच गया. एक समय विश्व के सबसे बड़े बैंकों में से चौथे नंबर पर रहा लेहमन ब्रदर्स बैंक इस मंदी को नहीं झेल पाया और दिवालिया हो गया. इस मंदी से दुनिया भर के शेयर बाजार गिरे, मांग में कमी से उत्पादन घटा और करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए.
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