तमाम कोशिशों के बावजूद SBI ने भारत के चुनाव आयोग को चुनावी बांड का विवरण सौंप दिया. चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर बताया सुप्रीम कोर्ट के 15 फरवरी और 11 मार्च के आदेश के मुताबिक एसबीआई ने चुनाव आयोग को चुनावी बांड से सम्बंधित डाटा उपलब्ध करा दी है.
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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से इसकी पूरी रिपोर्ट मांगी थी. लेकिन जब उसने चार महीने बाद डाटा उपलब्ध कराने की बात कही तो सुप्रीम कोर्ट सख्त हो गया. सुप्रीम कोर्ट की सख्ती काम आई और मंगलवार को शाम पांच बजे भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने चुनावी बांड्स से संबंधित पूरा ब्योरा चुनाव आयोग को सौंप दिया. इसकी आधिकारिक तौर पुष्टि चुनाव आयोग ने ही की. साथ ही एसबीआई के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर यह जानकारी दी. चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने इंटरनेट मीडिया साइट एक्स पर बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 15 फरवरी और 11 मार्च के आदेश के मुताबिक एसबीआई ने चुनाव आयोग को चुनावी बांड से सम्बंधित डाटा की आपूर्ति 12 मार्च को कर दी है. लेकिन यह पता नहीं चल सका है कि एसबीआई की ओर से यह जानकारी किस रूप में दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले एसबीआई की तरफ से चुनावी बांड की जानकारी देने की अवधि 30 जून करने के आवेदन को रद कर दिया था. कोर्ट ने एसबीआई को 12 मार्च को यह जानकारी देने और चुनाव आयोग को एसबीआई से प्राप्त जानकारी अपनी वेबसाइट पर 15 मार्च को शाम पांच बजे तक प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया था.
अब सामने आएगी कि किस कम्पनी ने किस पार्टी को दिया चंदा
इससे यह बात सामने आ जाएगी कि किस कम्पनी ने किस पार्टी को चुनावी बांड के जरिये कितना चंदा दिया है. केंद्र सरकार ने चुनावी बांड योजना दो जनवरी, 2018 को लांच की थी. बताया गया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को चंदे की प्रक्रिया पारदर्शी होगी और चुनाव प्रक्रिया में काले धन का इस्तेमाल बंद होगा. सिर्फ एसबीआई को ही बांड्स जारी करने का अधिकार मिला था. भारत का कोई भी नागरिक या पंजीकृत संस्थान इन्हें खरीद सकता था. इस पूरी प्रक्रिया में बांड खरीदने वाले का नाम गोपनीय रखने की व्यवस्था थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरी प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया था.
बार एसोसिएशन ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र
आल इंडिया बार एसोसिएशन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को पत्र लिखकर कहा है कि वह प्रेसिडेंशियल रिफरेंस भेजकर चुनावी बांड से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रोक लगाएं. सनद रहे कि राष्ट्रपति किसी भी मामले में सुप्रीम कोर्ट को प्रेसिडेंशियल रिफरेंस भेजकर उससे सलाह मांग सकती हैं. बार एसोसिएशन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करने से कार्पोरेट जगत की अभिव्यक्ति पर दूरगामी असर होगा. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी राष्ट्रपति को ऐसा ही पत्र भेजा है.
सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को लगाई थी फटकार
सोमवार यानी 11 मार्च को समय सीमा बढ़ाने की SBI की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को फटकार लगाई थी. पीठ ने ैठप् की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दलीलों पर ध्यान दिया कि विवरण एकत्र करने और मिलान के लिए अधिक समय की आवश्यकता है. क्योंकि जानकारी इसकी शाखाओं में दो अलग-अलग कक्षों में रखी गई थी. पीठ ने कहा कि अगर मिलान प्रक्रिया को खत्म करना है तो ैठप् तीन सप्ताह के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा कर सकता है. पीठ ने कहा कि उसने SBI को चंदा देने वालों और चंदा प्राप्त करने वालों के विवरण या अन्य जानकारी से मिलान करने का निर्देश नहीं दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहाकि SBI को सिर्फ सीलबंद लिफाफा खोलना है. विवरण एकत्र करना है और चुनाव आयोग को जानकारी देनी है. पीठ ने कहा कि एसबीआई शीर्ष अदालत की ओर से जारी निर्देशों के अनुपालन पर अपने अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक का हलफनामा दाखिल करे. कहा कि अगर मिलान प्रक्रिया न करनी हो तो एसबीआई तीन सप्ताह के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा कर सकता है. पीठ ने कहाकि हमने आपको एसबीआई को चंदा देने वालों और चंदा प्राप्त करने वालों के विवरण का अन्य जानकारी से मिलान करने का निर्देश नहीं दिया है. हमने आपको केवल खुलासा करने को कहा है.