Chhatrapati Shivaji Jayanti पर पढ़े शिवाजी महाराज की शौर्य गाथा ….
Chhatrapati Shivaji Jayanti: आज पूरे भारत देश में छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाई जा रही है. ऐसे शायद ही कोई लोग होंगे जो शिवाजी की शौर्य गाथा से अवगत नहीं हों, वैसे हर किसी की जुबान पर छात्रपति शिवाजी की वीरगाथा रहती है. यदि आपको भी छात्रपति शिवाजी की वीरगाथा नहीं मालूम है तो, जयंती पर शिवाजी की वीरगाथा बताने जा रहे हैं. मुगल शासको के हाथों से देश को आजाद कराकर मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले छात्रपति शिवाजी महाराज ही थे. इसके लिए शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंका था. शिवाजी की इस गौरवपूर्ण और शौर्यपूर्ण गाथा का भारत में विशिष्ट स्थान है, जो इतिहास में अमर हो गया है. आज भी छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम गर्व से लिया जाता है. उनके स्मरण भर से उनकी युद्ध शैलीआंखों के सामने घूमने लगती है.
कब हुआ था इस वीर सपूत का जन्म ?
19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग में एक मराठा परिवार में शिवा जी का जन्म हुआ था, बचपन में शिवाजी का नाम शिवाजी भोंसले था. इनके पिता का नाम शाहजी भोंसले, और उनकी माता का नाम जीजाबाई था. शिवाजी के पिता अहमदनगर सल्तनत में सेनापति थे. वहीं माता धार्मिक ग्रंथों में रुचि रखती थीं, जो शिवाजी के जीवन पर भी प्रभाव डालती रहीं. महाराज शिवाजी का जन्म इस दौर में हुआ था, जब मुगलों का शासन हमारे देश में चरम पर था. महाराज शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ लड़ाई शुरू की थी.
15 वर्ष की आयु में मुस्लिमों के खिलाफ किया था युद्ध
15 वर्ष की आयु में पहली बार शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ पहला आक्रमण किया था, यह आक्रमण हिन्दू साम्राज्य को स्थापित करने के लिए किया गया था. बताते हैं कि, यह युद्ध गुरिल्ला शैली के तहत लड़ा गया था. यह युद्ध की नवीन रणनीति थी जिसे शिवाजी ने ही विकसित किया था. गोरिल्ला युद्ध का सिद्धांत “मारो और भाग जाओ” हुआ करता था. शिवाजी ने बीजापुर पर हमला किया और आदिलशाह, बीजापुर के शासक, को गोरिल्ला युद्ध नीति और कुशल रणनीति से हराया. उन्होंने चार किले भी हासिल किए.
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मराठा साम्राज्य की स्थापना
1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने पश्चिमी भारत में मुगल शासन को खत्म कर मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी, इस समय शिवाजी को मराठा साम्राज्य का सम्राट का ताज पहनाया गया. छत्रपति शिवाजी को मराठा गौराव भी कहा जाता था, वही गंभीर बीमारी के चलते 3 अप्रैल 1680 शिवाजी का निधन हो गया था. लेकिन उनका योगदान हमेशा स्मरणीय रहेगा. शिवाजी की मौत के बाद उनके पुत्र संभाजी ने राज्य का नेतृत्व किया.