Explainer: ग्लोबल इकोनॉमी में ‘आरबीआई’ की बादशाहत कायम

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एक तरफ जहां ग्लोबल इकोनॉमी निचे की ओर जा रही है. महंगाई अपने चरम पर है. ओपेक प्लस ने अपने कच्चे तिल का प्रोडक्शन कम कर दिया है. जिसकी वजह से क्रूड ऑयल के दाम 100 डॉलर के पार तक चले गए हैं. दुनिया भर में मंदी की मार साफ दिखाई दे रही है. खास बात तो यह रही है कि अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व, यूरोपियन सेंट्रल बैंक और ब्रिटिश सेंट्रल बैंक​ ने अपने ब्याज दरों में इजाफा किया है. इसके बाद भी आरबीआई बैंक गवर्नर ने अपने ब्याज दरों को फ्लैट रखा, उसमे इजाफा नहीं किया. ग्लोबल इकनॉमी के प्वाइंट ऑफ़ व्यू से इसे काफी बड़ा फैसला मन जा रहा है.

लेकिन आरबीआई गवर्नर ने स्पष्ट कर दिया है कि रेट पर रोक का फैसला इसी मेटिंग के लिए ही है. आरबीआई गवर्नर ने साफ संकेत दिया है कि मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी फ्यूचर में कोई कदम उठाने से नहीं हिचकेगी. मतलब साफ है कि आरबीआई ने फ्यूचर में बदलते मैक्रो इकोनॉमिक कंडीशंस को देखते हुए एक सेफ विंडो ओपन कर ली है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर वो कौन-कौन कारण हैं, जिसकी वजह से आरबीआई गवर्नर को ग्लोबल इकोनॉमी का ‘पठान’ माना जा रहा है.

क्रूड ऑयल बढ़ाएगा महंगाई…

मालूम हो कि आरबीआई गवर्नर ने खुद ही कहा था कि साल की शुरुआत में ही ग्लोबल सप्लाई की चैन में सुधर देखने को मिला था. तमाम सेंट्रल बैंक्स अपनी इकोनॉमी को सॉफ्ट लेंडिंग की तरफ ले जा रहे थे. लेकिन मार्च का महीना शुरू होने के बाद से ग्लोबल इकोनॉमी में नाटकीय बदलाव देखने को मिला है. इसमें ओपेक प्लस की ओर से क्रूड ऑयल के दाम में इजाफा करना सबसे अहम है. जिसके वजह से भारत के इंपोर्ट में इजाफा होगा, जोकि इकोनॉमी के लहजे से बेहतर नहीं होगा. साथ महंगाई भी बढ़ेगी. इसके बावजूद आरबीआई ने रेपो दरों में कोई बदलाव नहीं किया है. वैसे आरबीआई ने अपने महंगाई अनुमान में कोई खास बदलाव नहीं किया है. करंट फाइनेंशियल ईयर में महंगाई अनुमान 5.3 फीसदी पर रखा है. इसी वजह से गर्वनर ने रेपो रेट में बढ़ोतरी नहीं की है.

ग्लोबल इन्फ्लेशन अपने चरम पर…

दूसरी ओर ग्लोबल इंफ्लेशन में कोई खास कमी नहीं देखने को नहीं मिली है. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई अलग-अलग देखने को मिलती है. G20 के 19 अलग-अलग देशों में महंगाई की बात क​रें तो चीन में 1 फीसदी से लेकर अर्जेंटीना में 102.5 फीसदी तक है. वहीं दूसरी ओर अमेरिका में महंगाई अभी 6 फीसदी पर बनी हुई है. दुनिया भर के अन्य केंद्रीय बैंक इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं. ब्रिटेन में फरवरी में महंगाई दर 10.4 फीसदी पर आ गई, जबकि जनवरी में 10.1 फीसदी पर था. यूरोपीय जोन में कोर इंफ्लेशन 5.7 फीसदी के साथ रिकॉर्ड हाई पर है. ऐसे में सभी ने अपनी ब्याज दरों में इजाफा किया है, लेकिन महंगाई पर आरबीआई सोच साफ दिख गई है.

ग्लोबल इकोनॉमी में भूचाल…

इस समय ग्लोबल इकोनॉमी में अफरा तफरी मची हुई है. खासकर के अमेरिका और यूएस बैंकिंग सेक्टर में क्राइसिस के बाद भी फेड और यूरोपिन सेंट्रल बैंक ने 25 और 50 बेसिस प्वाइंट का इजाफा किया है. आरबीआई गवर्नर और सरकार ने यह साफ़ कर दिया है कि बैंकिंग सेक्टर में क्राइसिस का असर इतना देखेने को नहीं मिला और न ही मिलेगा, लेकिन इंडियन आईटी सेक्टर में काफी गिरावट देखने को मिली है. वैसे पूरी दुनिया में जॉब्स पर खतरा है. दुनियाभर में कई बैंकों के डूबने का खतरा बना हुआ है, जिसकी वजह से ग्लोबल इकोनॉमी ​अस्थिरता देखने को मिल रही है.

दुनिया में मंदी का असर…

विश्व बैंक गलोबल रिसेशन की चिंता पहले जता चुका है. विश्व बैंक ने साफ कहा है कि पूरी दुनिया में स्लोडाउन देखने को मिलेगा. महंगाई में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी. निवेश कम होगा. यूक्रेन और रूस वॉर असर दिखाई देगा. वहीं दूसरी ओर चीन और अमेरिका के बीच जियो पॉलिटिकल टेंशन का नया एपिसोड शुरू हो गया है. ऐसे में ग्लोबल इकोनॉमी में मंदी आने की संभावना से इनकार बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है. ऐसे में आरबीआई गवर्नर की ओर पॉलिसी रेट में इजाफा ना करना काफी सहासिक फैसला कहा जा सकता है.

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