विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला:अयोध्या के आंगन में पड़े चार बहुओं के पैर तो इतराई माताएं

लोगों को सम्मोहित कर गई अयोध्या के द्वार पर पालकी में बैठे श्रीराम-सीता की भव्य झांकी

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रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला का सातवां दिन यानी सोमवार बेहद भावुक प्रसंगों की लीला का दिन था. आज तो समूची अयोध्या अपनी खुशकिस्मती पर इतरा रही थी. वह क्यों न इतराती, आखिर एक साथ अयोध्या के घर आंगन में चार बहुओं के चरण जो पड़े थे. उसमें में एक जनकनन्दिनी सीता थी, जिनका राम के साथ मिलन ही दैवीय इरादे के साथ हुआ था. राजा जनक को पुत्री विदा करने का स्वाभाविक दुःख था लेकिन एक संतोष भी था कि सीता जिसकी अर्धांगिनी बनी है वह साधारण मनुष्य नही है. रामलीला के बेहद भावुक प्रसंगों का मंचन हुआ तो अयोध्या के द्वार पर पालकी में बैठे श्रीराम सीता की भव्य झांकी लोगों को सम्मोहित कर गई.

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आज की लीला का प्रसंग कुछ यूं था. राजा जनक विदाई से पूर्व दशरथ को जेवनार के लिए बुलाते हैं. सभी को भोजन परोसा जाता है. उसी समय जनकपुर की स्त्रियां परंपरानुसार गारी गाने लगती है. इसे सुनकर दशरथ बहुत प्रसन्न हुए. दहेज का सारा सामान आदि देकर राजा जनक बरात के साथ अपनी पुत्री सीता की विदाई करते हैं.

माताओं ने किया परिछन और उतारी आरती

विदाई के दौरान राजा जनक, सुनयना और श्रीराम जानकी के मार्मिक संवाद लोगों की आंखे भिंगो गये. बारात विदा हो कर अयोध्या पहुंचती है और द्वार पर ही पालकी की अप्रतिम झांकी होती है. माताएं राम-सीता का परिछन करके उनकी आरती उतार कर महल में ले कर आती हैं. राजकुमारों और उनकी बहूओं को सिंहासन पर बैठाया जाता है. माताएं उन्हें आशीर्वाद देती है. स्नानादि के बाद दशरथ पुत्रों सहित कुटुम्बियों को भोजन कराया जाता है. कुटुम्बियों को विदा करने के बाद राजा दशरथ रानियों को बुलाकर कहते हैं कि बहूएं अभी लरिका ( बच्चे ) हैं, पराये घर से आईं हैं. उन्हें पलकों पर बिठा कर रखना. फिर वह सबको शयन कराने के लिए कहते हैं. शयन की झांकी होती है. मुनि विश्वामित्र आश्रम जाने के लिए राजा दशरथ से विदा मांगते हैं. दशरथ उनसे सदैव कृपा बनाए रखने और दर्शन देते रहने के लिए कहकर उनका आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करते हैं. यहीं पर आठों स्वरूपों की आरती के बाद लीला को विश्राम दिया गया. आज के प्रसंग के साथ ही राम चरित मानस के बाल कांड का समापन हो जाता है.

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