विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला: आसान नहीं है रामलीला का मुख्य स्वरूप बनना, करनी पड़ती है कठिन तपस्या
’राम, सीता, भरत, शत्रुघ्न व लक्ष्मण के किरदार के लिए हर साल होता है नए बच्चों का चयन
विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में मुख्य स्वरूपों का किरदार निभाना आसान नहीं होता है. इसके लिए भगवान की भूमिका निभाने के लिए ढाई महीने से ज्यादा दिनों तक कड़ी तपस्या करनी पड़ती है. राम, सीता, भरत, शत्रुघ्न व लक्ष्मण के किरदार के लिए हर वर्ष बच्चों का चयन किया जाता है. प्रशिक्षण के दौरान इनमें देवत्व भरा जाता है. बाल कलाकारों के चेहरे पर तेज लाने के लिए पौष्टिक भोजन दिया जाता है. नगर के बलुआघाट स्थित प्रशिक्षण केंद्र धर्मशाला से बाहर निकलने की इजाजत नहीं होती है और नाही बाहर का कुछ भी खाना खाने दिया जाता है.
हर साल होता है ऑडिशन, पहले गुजराती ब्राह्मण निभाते थे भूमिका
राम, सीता, भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न के किरदारों के लिए हर साल आसपास के जिलों से बच्चों का ऑडिशन लिया जाता है. रथयात्रा के दिन से इनकी तलाश शुरू होती है. करीब 30 बच्चों को रामनगर दुर्ग में ले जाया जाता है. इनकी उम्र 11 से 14 साल तक की होती है. पहले इन भूमिकाओं को गुजराती ब्राह्मण ही निभाते थे. अब आसपास के जिलों से ही इनकी तलाश की जाती है. आडिशन की विभिन्न प्रक्रिया से गुजरने के बाद अंतिम रूप से पांच बच्चों का चयन किया जाता है. चयन के बाद सभी को प्रशिक्षण दिया जाता है. इसकी शुरुआत श्रावण कृष्ण पक्ष चतुर्थी से होती है. यह पूर्ण रूप से आवासीय होता है. प्रशिक्षण के दौरान धर्मशाला में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित होता है. प्रशिक्षु बच्चों को भी बाहर निकलने पर पूर्ण प्रतिबंध रहता है. वे बाहर का कुछ खा भी नहीं सकते. चेहरे पर चमक के लिए इनको फल, फलों का जूस, दूध, शुद्ध देसी घी के साथ पौष्टिक भोजन दिया जाता है.
कोचिंग के टीचर भी पात्रों को आते हैं पढ़ाने
’रुटीन की पढ़ाई बाधित न हो, इसके लिए कोचिंग टीचर धर्मशाला में पढ़ाने आते है इसके लिए स्वरूपों की भूमिका निभाने वाले बच्चों को प्रतिदिन सुबह चार बजे जागना होता है. इसके बाद साढ़े पांच बजे तक पढ़ाई होती है. इसके बाद नित्यक्रिया के लिए दो घंटे का समय मिलता है. नित्यक्रिया से निपटने के बाद नाश्ता, फिर आठ बजे से प्रशिक्षण शुरू हो जाता है, जो दोपहर 12 बजे तक चलता है. फिर दोपहर में विश्राम के लिए दो घंटे का समय मिलता है. यानि करीब ढाई बजे से फिर प्रशिक्षण. शाम पांच बजे से ट्यूटर आकर ट्यूशन देते हैं. क्योंकि सभी बच्चे किसी न किसी क्लास के विद्यार्थी होते हैं. तीन माह तक स्कूल से दूर रहते हैं. इनकी पढ़ाई पर कोई असर न पड़े, इसलिए ट्यूटर लगा दिया जाता है.
यह हैं इस साल रामलीला में भूमिका निभनेवाले स्वरूप
राम की भूमिका में मुगलसराय निवासी किसान नरेंद्र पांडेय के बेटे कक्षा सातवीं के छात्र दीपक पांडेय है. सीता की भूमिका के लिए सैदपुर, गाजीपुर जिले के अर्थव पांडेय का चयन किया गया है. इनके पिता डा. दिवाकर पांडेय पेशे से दंत चिकित्सक हैं. बनारस जिले के देवराज त्रिपाठी का चयन भरत के लिए हुआ है. चंदौली निवासी अंश तिवारी लक्ष्मण और चंदौली में गोधना-मुगलसराय निवासी सूरज पाठक का चयन शत्रुघ्न की भूमिका के लिए किया गया है.
प्रशिक्षण के दौरान बदल जाता है स्वरूपों का स्वभाव
प्रशिक्षण के दौरान इन बच्चों का स्वभाव पूरी तरह से बदल जाता है. चंचलता पता नहीं कहां चली जाती है. कोई न तो खेलने की जिद करता है, न बाहर का कुछ भी खाने के लिए कहता है. कोई शरारत भी नहीं करता. यह कहें कि बालसुलभ चपलता के स्थान पर मर्यादा हावी हो जाती है तो कोई गलत नहीं होगा.
सपने में नहीं सोचा था निभाना पड़ेगा राम का किरदार
रामलीला में भगवान राम की भूमिका निभा रहे दीपक पांडेय कहते हैं कि भगवान राम का किरदार निभाना एक सपने जैसा है. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की भूमिका निभाने को मिलेगी. मेरे लिए अपने आप में यह एक सपने जैसा है.
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