सालों से डॉक्टरों की सुरक्षा पर सवाल, क्यों हर बार प्रशासन बदहाल ?

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कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर की रेप के बाद हत्या के मामले में डॉक्टरों की सुरक्षा का मामला पूरे देश में गर्माया हुआ है. ऐसे में यह कोई इकलौता ऐसा मामला नहीं है जिसने डॉक्टरों की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए है बल्कि बीते कई सालों पहले भी डॉक्टरों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हुए हैं. उस दौर में भी शोर हुआ, आवाज उठी लेकिन कुछ असर नहीं हुआ और आज यह यूं ही जारी है. उस समय भी प्रशासन बदहाल था और आज भी बदहाल है. बस बदला इतना है कि उस दौरान में हवसी दरिंदे का शिकार एक नर्स थी और आज डॉक्टर है. आइए जानते हैं क्या था वो पूरा मामला ….

क्या है 51 साल पहली की रेप की रूह कंपाने वाली दास्तान ?

कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ जो हुआ उसी तरह 51 साल पहले मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में एक नर्स के साथ हुआ था. फर्क बस इतना रहा कि कोलकाता पीड़िता की मौत हो गई लेकिन वह नर्स जिंदा रहीं, लेकिन पूरी जिंदगी एक लाश बनकर. यह मामला कोई और नहीं बल्कि अरूणा शानबाग केस है. यह कहानी अरूणा शानबाग नामक एक नर्स की है जिसके साथ उसके साथ ही काम करने वाले एक वार्डबॉय सोहनलाल वाल्मीकी ने न सिर्फ उनका रेप किया बल्कि हैवानियत की हदें पार कर दी थी. इसकी वजह से अरूणा एक दो साल नहीं बल्कि 42 साल तक कोमा में पड़ी रहीं.

बताते हैं कि अरूणा जानवरों के अस्पताल में नर्स का काम करती थीं. 27 नवंबर 1973 की रात भी वह अपनी ड्यूटी खत्म कर कपड़े बदलने के लिए बेसमेंट में गई थीं, जहां सोहनलाल वाल्मीकी पहले से ही छिपा हुआ था. इस दौरान सोहनलाल ने अरूणा को अकेले पाकर पहले उसे अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर अपने को बचाने के लिए उसने अरूणा की हत्या करने के लिए कुत्ते की चेन से उसका गला घोंट दिया. उसको लगा ऐसा करने से अरूणा की कहानी खत्म हो जाएगी और वह बच जाएगा.

हादसे के बाद काम करने लायक नहीं रहा शरीर

उधर बदकिस्मती से अरूणा पर आरोपी सोहनलाल का यह वार काम नहीं किया और वह बच गईं. बस किसी एक जिंदा लाश की तरह क्योंकि अरूणा का अब न तो शरीर की काम के लायक बचा था और न ही उनका दिमाग काम कर रहा था. बताया जाता है कि अरूणा की यह हालत दरिंदगी और भयंकर दर्द झेलने की वजह से हो गई थी. इसकी वजह से वह कोमा में चली गई और उस हालत में करीब 42 साल तक जिंदा रहीं.

अरूणा के लिए उठी थी इच्छामृत्यु की मांग

अरूणा की हालत देख कई सारे लोगों ने उनके लिए इच्छामृत्यु की गुहार अदालत से लगाई थी. वहीं कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए इच्छामृत्यु देने से साफ इंकार कर दिया. साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि रेप पीड़िता को ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और उसे जीना ही होगा.

कोर्ट ने अपना निर्णय देने से पहले अरुणा का मेडिकल चेकअप भी करवाया था. इसके बाद में कोर्ट ने दलील दी कि वह खुद क्या चाहती हैं पता लगाना मुश्किल है, लेकिन उसका व्यवहार कर्मचारियों के साथ बताता है कि वह जीना चाहती हैं. उनका जीवन अभी भी उन्हें प्यारा है. इसके बाद साल 2015 में 42 साल तक मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलने के बाद वह आखिरकार उसी जगह चली गईं, जहां उनकी अदालत से मांग की जा रही थी यानी अरूणा की मौत हो गई.

कहीं आरोपी का बचाव तो, कभी मामूली सजा

रेप के मामलों में बेशक इजाफा हुआ है लेकिन प्रशासन का रवैय्या वहीं का वहीं रहा है. जहां आज कोलकाता मामले में आरोपी को हरसंभव बचाने का प्रयास किया जा रहा है, वहीं अरूणा शानबाग मामले में पीड़िता को जिंदगी भर के लिए हर दिन मौत देने वाले आरोपी को मात्र सात साल की सजा काटनी पड़ी. उसके बाद वह साल 1980 में जेल से बाहर आ गया और अपना नाम और पहचान बदलकर दूसरे अस्पताल में नौकरी करने लगा. हालांकि, एक इंटरव्यू में आरोपी युवक ने अपने किए पर पछतावा जताया था और भगवान से माफी भी मांग रहा था. उसने बताया कि उसकी एक बेटी थी जो मर गई है.उसे लगता है ईश्वर ने उसे सजा दे दी है.

कोलकाता की डॉक्टर के साथ क्या हुआ ?

बात अगर कोलकाता की करें तो ट्रेनी डॉक्टर के साथ संजय रॉय नाम के एक शख्स ने न सिर्फ रेप किया बल्कि उसकी निर्ममता से हत्या कर दी. इस घटना के बाद से पूरे देश में उबाल है. डॉक्टर सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. इस घटना ने एक बार फिर से मुंबई की नर्स अरुणा शानबाग के साथ 51 साल पहले हुई उस हैवानियत की यादें फिर से ताजा कर दी हैं. लोग कोलकाता की बेटी के गुनहगार के लिए फांसी की सजा की मांग कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में बहुत ही सख्त है. मामले पर सुनवाई के दौरान CJI ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि मेडिकल प्रोफेशनल को कई तरह की हिंसा का सामना करना पड़ता है.

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SC को क्यों याद आया अरुणा शानबाग केस ?

कोलकाता मामले की सुनवाई करते हुए सीजेआई ने इस मालमे की सुनवाई करते हुए तल्ख टिप्पणी की. अरूणा के मामले को याद किया और कहा कि मेडिकल प्रोफेशनल को कई तरह की हिंसा का सामना करना पड़ता है. वे 24 घंटे काम करते हैं. काम की परिस्थितियों ने उन्हें हिंसा के प्रति संवेदनशील बना दिया है. मई 2024 में पश्चिम बंगाल में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों पर हमला किया गया, जिनकी बाद में मौत हो गई. बिहार में एक नर्स को मरीज के परिजनों ने धक्का दिया. हैदराबाद में एक और डॉक्टर पर हमला हुआ. यह डॉक्टरों की कार्य स्थितियों के लिए एक बड़ी विफलता और व्यवस्थागत विफलता का संकेत है.

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