पानी बचाने की सज़ा: सांस लेना हो गया मुश्किल
हर साल सर्दियों में दिल्ली को कोहरे की नहीं, बल्कि स्मॉग की परत से ढक दिया जाता है. दिल्ली के निवासियों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है, और यह तब होता है जब दिल्ली सरकार अथक प्रयास करती है, बड़े पैमाने पर धन खर्च करती है, और गाड़ियों के लिए नए नियम-कायदे लागू करती है.
दिल्ली सरकार पंजाब के किसानों को दिल्ली में प्रदूषण फैलाने के लिए दोषी ठहराती है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है, खासकर जब दोनों प्रदेशों की सरकारें एक जैसी रही हैं.
इस परिस्थिति में, दिल्ली के लोग यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि उनकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन है—किसान या सरकार?
कहानी की शुरुआत: भारत का अन्न भंडार—पंजाब
पंजाब, जिसे ‘भारत का अन्न भंडार’ कहा जाता है, आज़ादी के बाद खाद्यान्न उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभा चुका है. पंजाब गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है. हर साल, यहां के किसान 25-30 मिलियन टन गेहूं उगाते हैं. इसीलिए इसे “गेहूं का कटोरा” भी कहा जाता है.
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती
1960 के दशक में एम.एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में हरित क्रांति हुई. इस क्रांति में उन्नत बीजों का विकास हुआ, जिससे फसल उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. पंजाब ने इस क्रांति का भरपूर लाभ उठाया. उन्नत चावल के बीजों ने यहां के किसानों के लिए नए रास्ते खोले.
पंजाब में चावल और गेहूं की खेती
पंजाब में चावल और गेहूं की फसलें उनके चक्र पर आधारित होती हैं:
गेहूं:
- बुवाई का समय: अक्टूबर-नवंबर (रबी सीजन)
- कटाई का समय: अप्रैल-मई
चावल:
- बुवाई का समय: जून-जुलाई (खरीफ सीजन)
- कटाई का समय: अक्टूबर-नवंबर
हर साल, पंजाब में लगभग 25-27 मिलियन टन गेहूं और 18 मिलियन टन चावल का उत्पादन होता है.
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चावल की खेती से बढ़ता प्रदूषण
चावल की अच्छी फसल के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है. इसे ध्यान में रखते हुए, 2009 में पंजाब सरकार ने The Punjab Preservation of Subsoil Water Act लागू किया. इस कानून के तहत भूजल संरक्षण के लिए चावल की बुवाई और कटाई के समय को आगे बढ़ा दिया गया.
चावल की कटाई के तुरंत बाद गेहूं की बुवाई होती है. इसके लिए किसानों को खेत खाली करना ज़रूरी होता है. सबसे आसान तरीका पराली को जला देना है. चूंकि चावल की कटाई अब देरी से होती है और गेहूं की बुवाई जल्दी करनी होती है, इसलिए किसानों के पास पराली जलाने के अलावा कोई व्यवहारिक विकल्प नहीं बचता.
चावल की खेती और वायु प्रदूषण का संबंध
पंजाब में चावल की कटाई अक्टूबर-नवंबर तक चलती है. यही वह समय होता है, जब ठंडी हवा दक्षिण की ओर बढ़ती है. पराली जलाने से निकलने वाले प्रदूषक तत्व दिल्ली तक पहुंच जाते हैं.
2016-17 में पंजाब सरकार ने पराली जलाने पर रोक लगाई, लेकिन इसका पालन नहीं हो सका. 2019 में, बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आदेश दिए. पराली जलाने से निकलने वाला ब्लैक कार्बन (सूट) पीएम 2.5 से भी अधिक खतरनाक है.
दिल्ली: समाधान की दिशा में कदम
दिल्ली और पंजाब में प्रदूषण की यह समस्या पर्यावरणीय संकट, सरकारी नीतियों और किसानों की चुनौतियों का प्रतीक है.
- किसानों के लिए वैकल्पिक समाधान:
- पराली को खाद में बदलने की तकनीक.
- बायोगैस प्लांट्स में पराली का उपयोग.
- फसल अवशेष प्रबंधन उपकरणों (जैसे Happy Seeder) को बढ़ावा.
- सरकारी सहायता:
- नई तकनीकों और उपकरणों के लिए सब्सिडी.
- वित्तीय सहायता प्रदान करना.
- जागरूकता अभियान:
- प्रदूषण के खतरों को लेकर किसानों और नागरिकों के बीच संवाद.
- अधिनियम की समीक्षा:
- 2009 के जल संरक्षण अधिनियम में संशोधन.
दिल्ली के लिए भविष्य की दिशा
यह समस्या तभी हल होगी, जब किसान, सरकार और आम जनता मिलकर प्रयास करें. टिकाऊ खेती और हरित ऊर्जा के जरिए, न केवल दिल्ली की हवा को साफ किया जा सकता है, बल्कि किसानों का भविष्य भी उज्ज्वल हो सकता है. यह जिम्मेदारी केवल एक राज्य की नहीं, बल्कि पूरे देश की है.
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