परमधाम को प्रस्थान कर गये विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के व्यास पं. रघुनाथ दत्तजी

उम्र के 90 पड़ाव पार कर चुके थे, 58 वर्ष से पंचस्वरूपों को दे रहे थे प्रशिक्षण

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विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के व्यास पं. रघुनाथ दत्तजी इस वर्ष की लीला के एक सप्ताह पूर्व मंगलवार को परमधाम को प्रस्थान कर गये. उम्र के लगभग 90 पड़ाव पार कर चुके थे. वह वर्ष 1955 से पंच स्वरूपों के व्यास की भूमिका में रहे. उन्होंने 58 वर्ष तक रामलीला के पंचस्वरूपों के प्रशिक्षक व्यास की महत्वपूर्ण भूमिका पूरी श्रद्धा और लगन से निभाई. बचपन से ही रामलीला के पैत्रिक जुड़ाव ने उनको व्यास परम्परा की गहराई से परिचित कराया. इस वर्ष की लीला में रामलीला के दो परम आदरणीय (एक व्यास जी और दुसरे जौहरीजी) का न होना बहुत खलेगा. उनके निधन की सूचना से रामनगर के लोगों और लीलाप्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई.

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सोशल मीडिया पर लगा श्रद्धांजलि देनेवालों का तांता

पंडित रघुनाथ दत्त के निधन की जानकारी मिलने के बाद लोग सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर व्यास की रामलीला की तस्वीरें साझा कर श्रद्धासुमन अर्पित करते रहे. सोशल मीडिया पर एक रामलीला प्रेमी ने लिखा ‘जब से मैं रामलीला देख रहा हूं तब से पंडित रघुनाथ दत्त व्यास जी रामलीला में पंच स्वरूप को भगवान रूप मे एकीकृत करते थे‘. यह इनका अनुपम कार्य देखने में सरल लगता है पर बहुत ही कठिन था. व्यास परिवार का कहना है कि सात पीढ़ियों से इनके परिवार के लोग लीला कार्य में लगे है. महाराज काशी नरेश अब स्मृति शेष इनके पूर्वजों को रामनगर की रामलीला करवाने के लिए गुजरात से काशी रामनगर ले आए. भगवान की अनुकम्पा से व्यास जी 90 साल की आयु से अधिक होने के बाद भी रामलीला में स्वरूपों का सवांद और उनकी साज सज्जा कार्य स्वयं देखते थे. यह राम जी के ही कृपा प्रसाद से संभव हो रहा था. महान व्यक्तित्व के धनी व्यास जी ने लीला के प्रति जो योगदान दिया उसे रामलीला प्रेमी कभी विस्मृत नहीं कर सकते. गोलोकवासी होने के पूर्व व्यास जी रामलीला के प्रमुख पंच स्वरूपों के चयन में जुटे थे.

माइक और लाउड स्पीकर के बगैर होता है मंचन

रामनगर के विश्व प्रसिद्ध रामलीला की खासियत यह है कि 21वीं सदी में भी रामनगर की रामलीला का मंचन पेट्रोमेक्स की रोशनी में होता है. यहां की रामलीला में माइक और लाउड स्पीकर का प्रयोग भी नहीं होता. इसके बावजूद दूर बैठे श्रीराम के भक्तों को रामलीला के पात्रों की आवाज साफ सुनाई देती है. रामलीला रोजाना शाम 5 से शुरू होकर रात 9 बजे तक चलती है. भरतमिलाप रात के 9 बजे से 12 बजे तक चलता है. राम राज्य की झांकी की लीला शाम 5 बजे से सुबह तक होती है. यदि बारिश या मौसम खराब होने की वजह से किसी दिन लीला बाधित होती है तो उसके लिए दिन रिजर्व रखा जाता है. रामलीला के दौरान बिना अनुमति फोटो लेने, वीडियो बनाने या टेप रिकॉर्डर लाने की मनाही रहती है.

महारानी ने मारा था ताना तब शुरू हुई थी रामलीला

रामलीला का ताना बाना वर्ष 1835 में काशीराज परिवार की तत्कालीन महारानी के एक ताना मारने के बाद बुना गया था. महारानी द्वारा यह ताना महाराज उदित नारायण सिंह को मारा गया था. जब-जब श्रीराम लीला की शुरुआत का जिक्र होता है, रामनगर निवासी वयोवृद्ध लीला प्रेमियो की जुबान पर वह किवदंती बरबस आ जाती है. कहते हैं कि रामनगर से आठ किलोमीटर दूर मिर्जापुर के बरईपुर गांव मे व्यवसायी बिच्छल साव व उनके भाई रामलीला कराते थे. इस दौरान रामलीला के प्रमुख प्रसंगों के दिन तत्कालीन काशी नरेश उदित नारायण सिंह भी शामिल हुआ करते थे. वर्ष 1835 में महाराज उदित नारायण सिंह को धनुष यज्ञ की लीला में शामिल होना था, लेकिन उसी समय उनके आठ वर्षीय पुत्र ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह बीमार हो गए. इस कारण महाराज एक घंटे विलम्ब से लीलास्थल की ओर रवाना हुए. महाराज आधे रास्ते तक पहुंचे थे कि लीलाप्रेमियों की भीड़ लौटती दिखी. लीलाप्रेमियों ने महाराज को बताया कि आज की लीला बिना आपकी उपस्थिति के ही हो गयी. इससे व्यथित महाराज रास्ते से ही वापस लौट आये.

महारानी ने देखा उदासीन चेहरा तो महाराज ने बताया दुख का कारणा

किले में महाराज को उदासीन देख महारानी ने कारण पूछा. महाराज ने सारी बातें महारानी को बतायी तब महारानी ने ताना मारा कि एक छोटा व्यवसायी रामलीला कराता है. महाराज होते हुए भी भगवान के प्रति आस्था नही रखते हैं आप क्यों नहीं यही रामलीला का आयोजन करवाते. यह बात महाराज उदित नारायण सिंह को चुभ गयी वह चुभन उनके लिए संकल्प बन गयी. उन्होंने तत्काल नगर में लीला आरम्भ करने का आदेश दिया. उसके बाद काष्ठजीह्वा स्वामी की प्रेरणा और मदत से संकल्प को मूर्त रूप मिला. स्वामी जी ने लीलाओं के लिए अयोध्या, जनकपुर, रामबाग, पोखरा, पंचवटी, सिगरा, निषादराज, वाजिदपुर, लंका, पम्पासर सरोवर, अशोक वाटिका आदि के रूप में अलग अलग स्थान चिह्नित किए.

अनंत चतुर्दशी से शुरू हुई रामलीला

पूजा-पाठ के बाद उसी वर्ष अनन्त चतुर्दशी से रामलीला प्रारम्भ हुई. तब से अब तक रामनगर की रामलीला उसी परम्परा व अनुराग के साथ होती आ रही है महाराजा उदित नारायण सिंह के समय अंग्रेजी हुकूमत में वाराणसी के जिलाधिकारी जेम्स प्रिंसेप थे जेम्स ने अपनी पुस्तक हान्यूज ऑफ़ बनारस में रामनगर की रामलीला का जिक्र किया है यह रामनगर की रामलीला का प्राचीनतम लिखित प्रमाण है.

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