होलिका दहन 1 मार्च, आग में इसलिए डालें गेहूं की 7 बालियां
होलिका दहन की तैयारी यूं तो होली से आठ दिन पहले से ही शुरू हो जाती है जब होलाष्टक लगता है। इसदिन से ही लोग लकड़ियां इकट्ठी करना शुरू कर देते हैं और होलिका दहन की रात का इंतजार करते हैं। इस रात का शास्त्रों में बड़ा महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि दीपावली और शिवरात्रि की तरह ही इस रात में दैवी शक्तियां जागृत रहती हैं।
इसलिए प्राचीन काल से लोग इस रात होलिका दहन के लिए इकट्ठा की गई लकड़ियों पर कच्चा सूत लपेटकर उसकी पूजा करते हैं। लोगों का ऐसा विश्वास है कि होलिका की पूजा करने का बाद होलिका दहन करना चाहिए और इसकी सात परिक्रमा करनी चाहिए। इससे रोग और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव दूर होता है। होलिका की अग्नि जल जाने पर उसमें मिठाइयां एवं सात प्रकार के अनाज और गेहूं की बालियां डालने की भी परंपरा रही है।
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लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस मान्यता के पीछे क्या वजह है। दरअसल फाल्गुन मास की शुरुआत और नए धान की पैदावार घर-घर में खुशियां लेकर आती है। घर में सुख-समृद्धि की कामना के लिए होलिका दहन में गेहूं की बालियां भी डाली जाती हैं। मान्यता है कि पहली फसल का पहला गेहूं ईश्वर और पूर्वजों को भेंट करने से पूरे साल घर में पूर्वजों के आशीर्वाद से सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
सात बालियों की देनी चाहिए आहुति
-होली की अग्नि में गेहूं की 7 बालियों की आहुति दी जाती है। 7 के पीछे मान्यता यह है कि 7 का अंक शुभ माना जाता है। इसलिए ही तो सप्ताह में 7 दिन और विवाह में 7 फेरे होते हैं। यही वजह है कि गेहूं की 7 बालियां होलिका में डाली जाती हैं।
NBT
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