पोर्ट ब्लेयर अब श्री विजयपुरम्, जहां अंगेजों ने बनायी थी ‘मौत की जेल’

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देश में शहरों का नाम बदले जाने की कड़ी में पोर्ट ब्लेयर भी जुड़ गया. केन्द्र सरकार ने अपने एक फैसले में अंडमान-निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर का नाम बदल कर ‘श्री विजयपुरम’ कर दिया. गृहमंत्री अमित शाह ने इस बात की जानकारी अपने एक्स हैंडल पर एक पोस्ट के जरिये लोगों से साझा की है. इसका श्रेय उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देते हुए देश को गुलामी के सभी प्रतीको से मुक्ति दिलाने के संकल्प से प्रेरित बताया है.

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गृहमंत्री ने लिखा है कि

देश को गुलामी के सभी प्रतीकों से मुक्ति दिलाने के प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के संकल्प से प्रेरित होकर गृह मंत्रालय ने पोर्ट ब्लेयर का नाम ‘श्री विजयपुरम’ करने का निर्णय लिया है. श्री विजयपुरम’ नाम हमारे स्वाधीनता के संघर्ष और इसमें अंडमान और निकोबार के योगदान को दर्शाता है. इस द्वीप का देश की स्वाधीनता और इतिहास में अद्वितीय स्थान रहा है. चोल साम्राज्य में नौसेना अड्डे की भूमिका निभाने वाला यह द्वीप आज देश की सुरक्षा और विकास को गति देने के लिए तैयार है. संभवत: पोर्ट ब्लेयर किसी केन्द्र शासित प्रदेश का नाम बदला जाने वाला पहला शहर होगा.

ब्रिटिशर्स ने दिया था नाम: पोर्ट ब्लेयर 

पोर्ट ब्लेयर को अंडमान निकोबार का प्रवेश बिन्दु भी कहा जाता है. पोर्ट ब्लेयर के नामकरण की बात की जाय तो अब तक इस शहर का नाम ब्रिटिश नेवल ऑफिसर कैप्टकन आर्चीबाल्डक ब्लेयर के नाम पर था. कैप्टजन आर्चीबाल्ड 1771 में ईस्ट इंडिया कंपनी के बॉम्बे मरीन में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुए थे. अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में ब्रिटिश कोलोनियल में शामिल कराने के लिए इन्हींन की रिपोर्ट को आधार बनाया गया था. अंडमान निकोबार द्वीप समूह के अपने अभियान के दौरान उन्होंने द्वीप के दक्षिणी भाग में एक बंदरगाह की खोज की थी जिसका नाम उन्हों ने ब्रिटिश नेवी के कमांडर इन चीफ कोमोडोर विलियम कानॅवालिस के नाम पर रखा. बाद में इस बंदरगाह का नाम कैप्टन आर्चीबाल्डर के सम्मान में पोर्ट ब्लेयर कर दिया गया. अब इसका नाम बदल कर श्री विजयपुरम कर दिया गया है जो की वर्तमान भारत सरकार की राष्ट्रवादी विचार धारा से प्रेरित लगता है.

अंग्रेजों ने यहां बनायी थी ‘मौत की जेल’

पोर्ट ब्लेयर में अंग्रेजों ने एक जेल बनावायी थी. इस जेल में सात अलग अलग सेल थे जिसके चलते इसका नाम सेलुलर जेल रखा गया. अंग्रेजों ने अपने खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंकने वालों को कड़ी यातनात्मक सजा देने के उद्देश्य से इस जेल को बनवाया था. इस जेल का एक दूसरा नाम काला पानी भी था. अंग्रेज स्व़तंत्रता सेनानियों को इस जेल में रखते थे. इस जेल में जाने का मतलब यातानात्मक मौत थी. इस तकरीबन दस साल इस जेल को बनाने में लगे. 1906 में यह जेल बनकर तैयार हुई. तीन मंजिले इस जेल में कुल 698 सेल बनाये गये थे जिसके चलते इसका नाम सेलुलर जेल रखा. हर सेल 15×8 फीट की थी. इन कोठरियों में तीन मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान बनाए गए थे ताकि कोई भी कैदी दूसरे कैदी से बात न कर सके.

इसी जेल में रखे गये थे सावरकर

इस जेल में रखे जाने वाले स्वरतंत्रा सेनानियों की लिस्ट बहुत लंबी है. बहुतों को यहां फांसी दी गयी और बहुत से यहां दी जाने वाली यातना से शहीद हो गये. यहां रखे जाने वाले प्रमुख लोगों में सरदार सिंह तोपखाना, दीवान सिंह , योगेंद्र शुक्ला , बटुकेश्वर दत्ता, शदान चंद्र चटर्जी, सोहन सिंह, विनायक सावरकर, हरे कृष्ण कोनार, शिव वर्मा, अल्लामा खैराबादी, सुधांशु दासगुप्तास के नाम शामिल हैं. महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर ने इस जेल को बंद करने के लिए अभियान चलाया था. इसके बाद, 1937 से 1938 के बीच सेलुलर जेल से राजनीतिक कैदियों को वापस भेज दिया गया था. साल 1939 में इस जेल को खाली कर दिया गया था. वर्तमान में ये जेल राष्ट्री य स्मासरक है. जिसे देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में सैलानी यहां आते हैं.

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