Phoolo ki Holi: आज बांके बिहारी मंदिर में खेली जाएगी फूलों की होली…
Phoolo ki Holi: रंग और हुडदंग का त्यौहार पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और बात करें यदि कृष्णनगरी मथुरा में होली की तो, यहां होली के दस दिन पहले ही होली की धूम शुरू हो जाती है. इसके साथ ही 17 मार्च को मनाई गयी लड्डू की होली से शुरू होने वाला होली का कार्यक्रम विभिन्न प्रकार की होलियों को मनाने के साथ ही अंत में हुरंगा के साथ ही खत्म हो जाता है.
वैसे मथुरा की हर होली ही खास है लेकिन फूलों की होली आज खेली जाएगी. वैसे तो फूलों की होली पूरी कृष्ण नगरी में खेली जाती है लेकिन इस होली का आयोजन विशेष तौर पर वृदांवन के बांके बिहारी मंदिर में किया जाता है. वृंदावन की फूलों की होली एक जीवंत परंपरा का वार्षिक उत्सव के तौर पर मानया जाता है, तो आइए जानते है इस होली को मनाने की पीछे का इतिहास और महत्व….
इस तिथि को मनाई जाती है फूलों की होली
फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज मनाया जाता है. इस साल यह त्यौहार 21 मार्च गुरूवार यानी आज पड़ रही है. यही वजह है कि, आज वृंदावन के बांके बिहारी लाल मंदिर में राधा – कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं और फिर इस खास मौके पर वृंदावन और मथुरा में राधा-कृष्ण की मूर्ति को सुंदर फूलों से सजाया जाएगा. इसके साथ ही लोग राधाकृष्ण के प्रेम के प्रतीक के रूप में फूलों की होली खेलेंगे. इतना ही नहीं फूलों की गुलदस्ते का आदान प्रदान करते है.
क्यों खेली जाती है फूलों की होली ?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा रानी नाराज थीं. क्योंकि श्रीकृष्ण बहुत लंबे समय से उनसे नहीं मिले थे. इस बात की जानकारी जब श्रीकृष्ण को हुई तो वह तुरंत मथुरा आए. जिस दिन वे मथुरा आए उस दिन फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि थी. श्रीकृष्ण के वापस मथुरा आने से राधा रानी खुश हो गईं.
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चारों तरफ फिर से हरियाली छा गई. नाराज राधा रानी को मनाने के लिए कृष्ण ने खिल रहे एक फूल को तोड़ राधा रानी को छेड़ने के लिए उन पर फेंका. राधा जी ने भी ऐसा ही किया. यह देखकर वहां पर मौजूद गोपियों ने भी एक-दूसरे पर फूल बरसाने शुरू कर दिए. यह देखकर वहां मौजूद गोपियां भी एक-दूसरे पर फूल बरसाने लगीं. इसलिए इस दिन फूलों से होली खेलने की परंपरा शुरू हुई.