Petrapole: बांग्लादेश का गेट जहाँ सबसे ज़्यादा था डर, आज सबसे सुरक्षित

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इंडिया बांग्लादेश के साथ करीब 4000 किलोमीटर का बॉर्डर शेयर करता है. इसमें 2217 किलोमीटर का बॉर्डर सिर्फ पश्चिम बंगाल के साथ जुड़ता है. पश्चिम बंगाल में Petrapole और बांग्लादेश में बेनापोल, यह दोनों जिले इंडो-बांग्लादेश संबंध की बड़ी मज़बूत गांठ हमेशा से रही है.

दूसरी ओर इसी साल 5 अगस्त को बांग्लादेश में सरकारी के तख्तापलट से कैसा असर बॉर्डर और वहां पर रहने वाले लोगों पर पड़ा. इसका जायज़ा लेने जर्नलिस्ट कैफै की टीम पहुंची इंडिया के लास्ट चेकपॉइंट पेट्रापोल.

इच्छामती और पद्मा नदी: दो देशों की सीमा का विभाजन

इच्छामती और पद्म यह दोनों एक ही नदी का नाम है जो इंडिया और बांग्लादेश के बीच विभाजन की सीमा बन जाती है. इस समय हम पश्चिम बंगाल के पेट्रापोल जिले के कल्याणी गांव में हैं और यह झील इच्छामती नदी की एक शाखा है जो बांग्लादेश की सीमा में घुसते ही पद्म नदी बन जाती है. खेती पर आधारित कल्याणी गांव बांग्लादेश बॉर्डर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर भारत में बसा है.

पेट्रापोल इंडिया-बांग्लादेश बॉर्डर का आखिरी चेकपॉइंट है. पेट्रापोल रेलवे स्टेशन से होते हुए इंडिया से चलने वाली मैत्री एक्स्प्रेस, मिताली एक्स्प्रेस और बंधन एक्स्प्रेस ट्रेन बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश करती है. बता दें कि इस गांव से बांग्लादेश की सीमा मात्र 2 किलोमीटर ही है.

Petrapole

बांग्लादेश में तख्तापलट का बॉर्डर पर प्रभाव

ऐसे में पड़ोसी देश में हुए किसी भी तरह की टेंशन का प्रभाव इंडिया के लोगों पर होना लाज़मी है. बांग्लादेश में निर्वाचित सरकार के तख्तापलट की हवा इंडिया तक पहुंची तो जरूर लेकिन मुस्तैद सेना बाल ने सारे हालात को काबू में कर लिया. और शायद इसीलिए कल्याणी गांव के रहने वाले नारायण हलदार अपने जीवन से खुश है. वह कहते है…

500 मीटर पर हमारे गाँव में स्कूल है. प्राइमरी स्कूल भी है जो कि मात्र 3 मिनट की दूरी पर है. 2 किलोमीटर की दूरी पर हाई स्कूल भी है और अस्पताल 3.5 किलोमीटर दूर है. हम लगभग सब चीजों की खेती करते हैं जिससे हमारा गुज़ारा चलता है. बिना पासपोर्ट के कोई भी बांग्लादेश का आदमी यहां नहीं आ सकता है. सेना के जवान यही रहते हैं और पुलिस भी लगातार राउन्ड करती रहती है. 500 मीटर की दूरी पर बीएसएफ़ के जवान तैनात हैं और एक फोन करने पर वह सब आ जाते हैं. – नारायण हलदार 

नारायण हलदार

 

गाँव में ही खेती करने वाले नवीन जो पेशे से किसान है और गाँव मे ही रहकर अपना घर परिवार चला रहे हैं. उन्हें इस बात की चिंता कभी नहीं सताती है कि उनके घर पर पड़ोसी मुल्क में हो रहे अत्याचार से कभी उनका या उनके परिवार का पाला पड़ेगा.

सेना और BSF की मुस्तैदी से गाँव में शांति

नवीन बीएसएफ़ की मौजूदगी से निश्चिंत है. वह हर रोज खेत में काम करते है और बड़े आराम से घर चले जाते है. जब नवीन से Journalist Cafe ने बात की तब उन्होंने बताया कि

मैं कल्याणी गाँव का निवासी हूँ. हमारे गाँव से सटा हुआ है बांग्लादेश. हमलोग यहाँ बहुत आराम से रहते है. हमलोगों को यहाँ पर किसी भी तरह की दिक्कत नहीं होती. पहले हमारे गाँव में बांग्लादेशी आ जाते थे और वह बाहर झारखंड चले जाते थे काम-धंधा की तलाश में, लेकिन ऐसा होना अब होना बहुत कम हो चुका है. हमलोगों को यहाँ किसी भी तरह की असुविधा नहीं है. -नवीन 

नवीन
नवीन (किसान)

 

पेट्रापोल जिले के पास बसे इस गाँव में लोगों को कभी रोजगार की कमी नहीं हुई है. 2016 में जब से Land Port Authority of India का लैन्ड पोर्ट पेट्रापोल में शुरू हुआ तब से लोगों के सामने रोजगार के कई पन्ने खुल गए हैं. अब उन्हें काम करने बाहर नहीं जाना पड़ता है.

Petrapole Land Port: रोजगार के नए अवसर

पेट्रापोल बॉर्डर जोकि इंडिया का लास्ट चेकपॉइंट है, वहां से हर दिन करीब 450 से 500 ट्रकों का आवागमन होता है. इंडिया-बांग्लादेश के बीच करीब 30 पर्सेन्ट का लैन्ड बेस्ड ट्रेड पश्चिम बंगाल के पेट्रापोल लैन्ड बॉर्डर से होता है. सिर्फ ट्रेड ही नहीं बल्कि हर वर्ष करीब 22 लाख लोग यहां से इंडिया बांग्लादेश की सीमा पर आते-जातें हैं. और शायद यही कारण रहा जिसकी वजह से पेट्रापोल जिले में बसे गाँव में लोगों को कभी काम की दिक्कत नहीं हुई है.

Petrapole

नवू कुमार मण्डल पहले LPAI में काम करते थे. कई साल काम करने के बाद उन्होंने रिटायरमेंट लेकर अपने ही खेत में काम करना शुरू कर दिया. अभी मण्डल के कई रिश्तेदार LPAI में काम करते हैं.

पिरिसपुर गाँव में हम सब रहते हैं. मेरे पास जमीन है जिसपर हम खेती करते हैं. इससे पहले मैं LPAI में काम करता था. हम अपनी जमीन पर पटरा लगाते हैं, कुदरी लगाते हैं, जूट लगाते हैं. खाने वाली सभी चीजें लगाते हैं. – नवू कुमार मण्डल 

 

नवू कुमार मण्डल
नवू कुमार मण्डल (किसान)

 

खेती करके अपना परिवार को चलाने वाले नवू कुमार को अपना गाँव ही सबसे सुरक्षित लगता है. ऐसे में उनके या उनके परिवार के लिए बाहर जाकर काम करना एक अच्छा विकल्प नहीं है. ऐसा ही कुछ छोटी सी दुकान चलाने वाली उमा का भी कहना है.

मैं 19 साल से इसी गाँव में रह रही हूँ. एक बच्चा 11 वीं क्लास में पड़ता है जिसके लिए उसे बाहर जाना पड़ता है. गाँव से 20 मिनट की दूरी पर स्कूल है. बांग्लादेश से किसी भी तरह दिक्कत नहीं होती है. मैं दुकान चलाती हूँ और मेरे पति LPAI मे काम करते हैं. – उमा हलदार 

उमा हलदार
उमा हलदार

उमा अपने बच्चे की पढ़ाई से संतुष्ट है और अपना घर चलाने के लिए उनके पास एक छोटी सी दुकान भी है. सेना की मुस्तैदी से गाँव मे रहने वाले लोगों के चेहरों की मुस्कान बरकरार है.

शेख हसीना के जाने के बाद आई थी गोलियों की आवाज़ 

दूसरी ओर ऑफ द रिकॉर्ड गाँव में रहने वाले लोगों ने हमे यह भी बताया कि जिस दिन शेख हसीना बांग्लादेश छोड़कर जा रही थी उस दिन बॉर्डर के उस पार गोली चलने की आवाज़ें भी आई थी लेकिन सेना की नियमित गश्त और उनकी उपस्थिति से गाँव में किसी भी तरह का तनाव नहीं समझ आया. चूंकि गाँव में सेना के जवानों ने हर 500 मीटर पर अपने चेकपॉइंट बनाए हैं इस वजह से गाँव में रहने वाले लोग कैमरे पर बात करने से कतरा रहे थे.

Petrapole में गाँव का जीवन है सुविधाओं से लैस

पक्के घर 24 घंटे बिजली और तमाम सुविधाओं से लैस पेट्रापोल जिले के परिसीपुर गाँव में लोगों को किसी भी तरह की तकलीफ नहीं है. बांग्लादेश बॉर्डर से मात्र 2 किलोमीटर दूर बसे इस गाँव में लोगों का कहना है कि यहां बीएसएफ़ एकदम मुस्तैद है. यहां पर ज़्यादातार लोग या तो खेती करते है या फिर LPAI यानि लैन्ड पोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया में काम करते हैं, जिससे कभी इन्हें रोजगार की दिक्कत नहीं होती है और इनका घर-परिवार चलता रहता है.

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