फुटबॉल को किक मारने से बदल गई इनकी दुनिया…

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पंकज महाजन गरीबी (poverty) में पैदा हुआ, पर उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी समस्या उसका शराबी पिता था, जो नशे में रोजाना रात को उसकी बड़ी क्रूरता से पिटाई करता था। पंकज के लिए यह असहनीय हो गया था। उसकी इच्छा शक्ति अब जवाब दे चुकी थी। दूसरी ओर वीरेंद्र बिना किसी लक्ष्य के घूम रहा था। वह बुरी तरह से जुए की लत में फंस चुका था, लेकिन कहानी में एक नया मोड़ आया और इन दोनों की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई।

फुटबॉल की किक से आया बदलाव 

इनकी जिंदगी में यह बदलाव आया फुटबॉल की किक से। इन्हें यह नया जीवन दिया पिता-पुत्र विजय और अभिजीत बर्से की जोड़ी ने। पिता-पुत्र की यह जोड़ी खूबसूरत खेल सलम सॉकर के जरिये न जाने कितने गरीब वंचित बच्चों को गरीबी और निरक्षरता से बाहर निकाल चुके हैं। विजय और अभिजीत फीफा के मान्यता प्राप्त गैर लाभकारी संगठन से इनकी मदद कर रहे हैं।

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पंकज की चयन वर्ल्ड कप टीम के लिए हुआ

यह संगठन सितंबर 2016 में पहला फीफा डाईबर्सिटी अवार्ड जीता जीत चुका है। इन्होंने चार साल पहले सलम सॉकर की शुरुआत की थी। पंकज ने जब पहली बार फुटबॉल को किक मारी तो मानो उसकी दुनिया ही बदल गई। पंकज को यूथ लीडरशिप प्रोग्राम के तहत केंद्र में रखकर प्रशिक्षित किया गया। उसका चयन इंडिया होमलैस वर्ल्ड कप टीम में हो चुका है।

वीरेंद्र भी खेल चुके हैं वर्ल्ड कप

वहीं, वीरेंद्र 2017 में नार्वे में हुए होमलैस वर्ल्ड कप में खेलने वाली टीम का हिस्सा रह चुका है। वीरेंद्र अब खिलाड़ी कम कोच के रूप में इस संस्था से जुडे़ हुए हैं। अभिजीत ने कहा कि मैंने एक शोधकर्ता के रूप में काम किया और फिर अमेरिका में नौकरी शुरू की। जब मैंने शुरुआत की तो मुझे इसकी कोई नहीं थी कि मुद्दों से निपटने के लिए खेल को कैसे उपयोग करना है। जोकि सीधे खेल के दायरे में नहीं थे। पर आखिर में हमारी मेहनत रंग लाई और अब सब बढ़िया ढंग से चल रहा है।

अमर उजाला 

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